लोगो का दर्द और फोटो सेशन 

||लोगो का दर्द और फोटो सेशन||




यह संस्मरण आज कोरोना संकट में वैसे ही है जैसे वह आपदा का मंजर था। इस आपदा में भी मुझे वही संकट नजर आ रहा है। यानि आम लोगो की समस्या कोरोना संकट में उसी प्राकृतिक आपदा जैसे है।



बंगाण क्षेत्र का नाम सुनते ही एक बारगी दिल व दिमाग पलभर के लिए थम जाये। क्योंकि बचपन से ही कितनी कहानियां व किस्से इस क्षेत्र की सुन्दरता और सांस्कृतिक, धार्मिक परिवेश को लेकर सुनी है। एक लम्बे अन्तराल के बाद मैं पंहुच गई बंगाण क्षेत्र में। रू-ब-रू हुई बंगाण की सुन्दरता और सम्पन्नता से। पर इन्ही दिनों कुदरत ने हमें प्राकृतिक सौन्दर्य का दीदार कहां करने दिया, यहां तो प्रकृति ने विद्रुप रूप धारण कर रखा था।


हालंकि यह यात्रा अगस्त 2019 की रही है है। जो मात्र दो दिन की ही थी, यानि 17 व 18 अगस्त को। हालात बेकाबू थे, कि बारिश के कहर ने पूरे बगांण क्षेत्र को अपने आगोस में ले रखा था। लोग कराह रहे थे, बाढ और बारिस का खतरा लगातार बढ ही रहा था। तबाही का मंजर मेरे आंखो के सामने से गुजर रहा था। यहां की पूरी सभ्यता की रोजी रोटी (स्वरोजगार) के साधनो का तबाह होना भविष्य के लिए बुरे संकेत दे रहे थे। इस क्षेत्र के लोगो ने कभी भी नहीं सोचा था कि आसमान से बरसते ये आग के गोले उन्हे तबाह कर देंगे।
सीमान्त जनपद उत्तरकाशी का मोल्डी गांव आराकोट के बाद सबसे पहला गांव है। जिसे कोठीगांड पट्टी का प्रवेश द्वार भी कहते हैं। ये गांव दोनो तरफ से खतरे की जद में है। नीचे नदी का कटाव और ऊपर से पहाड़ दरक रहा था। जबकि यहां के लोग इतने सम्पन्न और खुशहाल थे, मानो इनकी सम्पन्नता और खुशहाली को किसी की नजर लगी हो। पर कुदरत का करिश्मा है कि कब और कहां ये खुशियां दफन हो जाये। इस बात से आंकलन लगा सकते हैं कि मोल्डी गांव और बंगाण क्षेत्र में एक तरफ प्राकृतिक सौन्दर्य दूसरी तरफ लोगो की सम्पन्नता यहां पर चार चांद लगाये हुए थे। 


मैं बात कर रही हूं बंगाण में आई 2019 की प्राकृतिक आपदा की। मैं तो भ्रमण करने गई थी सो इन्ही दिनो कुदरत ने यहां जो कहर बरपाया उसे भूले भी नहीं भुला सकती। नगवाडा में एक ऐसा मंजर देखने को मिला जो हर पत्थर दिल को पसीज जाये। राह चलते बदबू (संणाध) ने दूभर कर रखा था। मै और मेरे सहयोगी वर्गिश बमोला जब चलते हूए कदम बढा रहे थे, ऐसा लग रहा था कि पता नही कब किसके सिर व शरीर पर हमारा पैर पड़ जाये। लोग कह रहे थे कि लाशें अभी भी मलबे में बहुत दबी पडी है। कुछ लोग चूना डालने में व्यस्त थे, ताकि बदबू से थोडी निजात मिल सके। यहां रातभर की बारिश से सभी सडके बह चुकी थी। जगह-जगह प्रशासन ने जेसीबी लगा रखी थी। 


अब हम टिकोची की तरफ बढते चले। इस दौरान रास्ते में हमारी मुलाकात कुछ स्थानीय महिलाओं से भी हुई। ये महिलाऐं राधा स्वामी सत्संग से वापस घर को लौट रही थी। हमे पलभर के लिए उन पर गुस्सा भी आ रहा था और हंसी भी आ रही थी। गुस्सा इसीलिए कि हम देवभूमि के लोग इन आडम्बर बाबाओं के सत्संग पर क्यों विश्वास करते है। स्थानीय कुल देवता महासू का सत्संग उन्हे क्यों नही भाता। हंसी इसीलिए आ रही थी कि लोग उनके क्षेत्र में आपदा राहत के लिए दूर-दूर से पंहुच रहे हैं कि ये महिलाऐं बेपरवाह आडम्बर बाबाओं की सत्संग में व्यस्त है। हमसे रहा नहीं गया और उन महिलाओं से बातचीत की। बातचीत का यह सिलसिला काफी देर तक चल। आस-पास के गांवों का हालचाल जानने की कोशिश की और हम आगे बढते चले गये। 


इसी बीच कुछ कश्मीरी, नेपाली मजदूरों से मुलाकात हुई। हमने नेपालियों के बच्चों से गांवो के नाम पूछे। वे कौन-कौन से गांव है। वे बताने लगे कि सबसे ऊपर डगोली गांव है। इस गांव में सभी ब्राहमण जाति के लोग रहते है। यहां के नौटियाल ब्राहमण पबासी महासू महाराज के पुजारी हैं। डगोली गांव का मंजर बार-बार मन को कचैट रहा था। ग्रामीणो की खेती पूरी बह चुकी थी। साथ ही स्वास्थ्य महकमें का एक मात्र आर्युवैदिक अस्पताल था जो जमींदोज हो चुका था। 


टिकोची पंहुचे, थोड़ा सा सुस्ताऐ और प्राथमिक विद्यालय पंहुच गये। यहां आपदा राहतकर्मी मौजूद थे। जिनमें कुछ अध्यापक, कुछ पुलिसकर्मी, स्वास्थ्यकर्मी आदि स्यवं सेवको से बातचीत का सिललिा आरम्भ हुआ। बातचीत खत्म करके हम मुख्य बाजार की तरफ बढने लगे। जैसे ही हम वहां पंहुचे, वहां खडे राजपाल चौहान सर, जो कि वर्तमान मे टिकोची इन्टर कॉलेज मे पीटीआई है पर नजर पड़ी। हम उनको नजर अंदाज करना चाह रहे थे। कारण यह था कि वे इससे पहले नौगांव इन्टर कॉलेज मे तैनात थे। उन्होंने भी हमे देख लिया और वे हमारी तरफ बढने लगे। श्री चैहान ने हमे इस आपदा की कहानी वहीं पर समझा दी। हम साथ हो लिए और टिकोची इण्टर कॉलेज पंहुच गये। यहां पूरा कलेज परिसर मलबे से पटा पड़ा था। मात्र चार कमरे बचे थे, वह भी लोक निमार्ण विभाग की मदद से साफ हुए थे। अब इन्ही कमरो में कुछ दिन के लिए वैकल्पिक व्यवस्था पर कक्षायें चलाने को प्रशासन ने कहा था। पता चला कि स्कूल की जो भोजन माता थी उनका भी इस आपदा में पूरा परिवार खत्म हो गया। आपदा का मंजर बहुत ही डरावना था। मकानों और दुकानो मे चारों तरफ मलबा पटा पड़ा था।


उसी दिन मोल्डी, नगवाडा और टिकोची मे इंडियन रेडक्रास सोसाइटी की टीम भी दंवाइयों का वितरण कर रही थी। यहां इस स्वास्थ्य शिविर में दवाइयों का वितरण कम और फोटोग्राफी ज्यादा हो रही थी। इस दौरान रेडक्रास सोसाइटी टीम में कुछ कार्यकर्ता कैमरा लेकर तैनात थे। फिल्मी की सूटिगं की तरह शिविर की फाटोग्राफी कर रहे थे। बाकायदा इनके गले मे आईडी कार्ड लटकाये हुए थे। लोग शिविर में कह रहे थे कि इन दंवाइयों से उनका कुछ नही होगा, उन्हे ऐसी दंवाइंयो की आवश्यकता है जिनसे कमसे कम चार दिन तक भूख न लगें। रेडक्रॉस सोसाइटी की तरफ से अजय पूरी टीम का संचालन करते हुए नजर आ रहे थे और वे मुझे बार बार देख रहे थे। अब क्यो देख रहे थे, यह उनसे जानना पड़ेगा।