लॉकडाउनः राशन के लिए कर्ज में दबे 60 फीसद मजदूर परिवार


||लॉकडाउनः राशन के लिए कर्ज में दबे 60 फीसद मजदूर परिवार||




-दून की 15 बस्तियों में गरीबों की मदद करते हुए दिहाड़ी मज़दूर परिवारों के बीच सर्वेक्षण





-59 प्रतिशत मजदूर परिवारों ने कहा कि राशन का जुगाड़ उनके लिए सबसे बड़ी समस्या



-64 फीसद परिवार बोले कर्ज लेना पड़ा, 80 प्रतिशत बोले सबसे अधिक खर्चा राशन पर





सब्र की इक हद भी होती है तवज्जो दीजिए,

गर्म रक्खें कब तलक नारों से दस्तरख़्वान को ।-अदम गोंडवी


लॉक डाउन से गरीब मजदूर परिवारों को खाने के इंतजाम तक के लिए कर्ज लेना पड़ रहा है। जी हां , दिहाड़ी मजदूरों के बीच काम करने वाले जन संगठन चेतना आंदोलन के ताजा सर्वेक्षण में यह भयावह सच सामने आया है।सर्वे के मुताबिक देहरादून में हर पांच में से तीन गरीब परिवारों को कर्ज़ा लेना पड़ा है, पांच में से तीन के लिए अभी भी राशन सबसे बड़ी समस्या है। लॉक डाउन एक महीने से ज्यादा खिंच जाने से मज़दूरों की स्थिति बद से बदतर हो रही है।



 

चेतना आंदोलन विपक्षी दलों व जनसंगठनों के संयुक्त मंच जन हस्तक्षेप के बैनर तले "हर गरीब-मेहनतकश को राहत दो" अभियान 18 अप्रैल से चला रहा है।



 

जन हस्तक्षेप के बैनर तले 25 अप्रैल से 28 अप्रैल तक देहरादून की 15 बस्तियों में गरीबों की मदद करते हुए 329 दिहाड़ी मज़दूर परिवारों के बीच एक सर्वेक्षण भी किया गया। सर्वेक्षण में मजदूरों से पूछा गया था कि लॉकडाउन होने की वजह से उनको कौन सी सबसे बड़ी समस्या हो रही है। सर्वेक्षण में 194 यानी 59 प्रतिशत मजदूर परिवारों ने कहा कि राशन का जुगाड़ उनके लिए सबसे बड़ी समस्या है। 79 यानी 24 फीसद परिवारों ने कहा कि रोजाना का खर्च उनकी सबसे बड़ी समस्या है । 27 यानी 8 फीसद परिवारों ने कहा कि बीमारी और उसका इलाज उनकी सबसे बड़ी समस्या है। जबिक



 

4 यानी 1.2 प्रतिशत परिवारों ने कहा कि बच्चों का खर्चा सबसे बड़ी समस्या है। जब मजदूर परिवारों से पूछा गया कि क्या लॉकडाउन होने की वजह से उन्हें कहीं से कर्ज़ा लेने की ज़रूरत पड़ी? तो 209 यानी 64 प्रतिशत परिवारों ने कहा कि उनको कर्ज़ा लेना पड़ा। जबकि 120 यानी 36 प्रतिशत परिवारों ने कहा कि उन्हें कर्ज़ लेने की ज़रूरत नहीं पड़ी।



 

जब उनसे पूछा गया कि इस वक़्त उनका सबसे अधिक खर्च किस चीज़ पर हो रहा है तो 262 यानी 80 प्रतिशत परिवारों ने कहा कि उनका सबसे अधिक खर्चा राशन पर हो रहा है । जबकि 28 यानी 9 फीसदी परिवारों ने कहा कि उनका सबसे अधिक खर्चा बच्चों के किताबों पर हो रहा है । 26 यानी 8 प्रतिशत परिवारों ने कहा कि उनका सबसे ज़्यादा खर्चा बीमारी पर हो रहा है वहीं बाकी परिवारों ने कुछ अन्य खर्चों के बारे में बताया। चेतना आंदोलन के शंकर गोपाल ने बताया कि इन आकड़ों से कुछ महत्वपूर्ण बातें सामने आ रही हैं। उनका कहना है कि प्रशासन और तमाम संस्थाओं के प्रयासों के बावजूद, अधिकांश गरीब लोग अभी भी राशन को लेकर परेशानी की स्थिति में हैं। पांच में से चार लोग राशन पर खर्च कर रहे हैं और पांच में से तीन लोगों को राशन की वजह से समस्या हो रही है। पांच में से तीन परिवारों को लॉकडाउन की वजह से कर्ज़ लेना पड़ा है। अगर लॉकडाउन की अवधि शहरों में और बढ़ेगी तो बहुत मुश्किल हो जाएगी। फिर जून से बारिशें भी शुरू हो जाएंगी । ऐसे श्रमिक वर्ग के लोग कैसे रोज़गार कर पाएंगे और लिया गया कर्ज़ लौटा पाएंगे? उनका कहना है कि अगर सरकार राज्य को बढ़ती हुई गरीबी और मुसीबतें से बचाना चाहती है तो तुरंत कुछ कदम लेने की ज़रूरत है। सर्वेक्षण से पता चलता है कि इन कदमों को उठाने की सख्त ज़रूरत है। इसके साथ साथ प्रवासी मज़दूरों के लिए राज्य सरकार तुरंत व्यवस्था करे जिससे वे घर लौट पाए - चाहे वे उत्तराखंडी हो जो उत्तराखंड के बाहर फसे हैं, या वे दूसरे राज्यों के लोग हो जो उत्तराखंड में फसे हैं।



सरकार को सुझाव



 


- युद्धस्तर पर बिना किसी शर्त के सारे पंजीकृत निर्माण मज़दूरों को 1000 रुपये मिलें., चाहे उनकां पंजीकरण नवीनीकृत हुआ हो





– सभी को राशन निःशुल्क राशन मुहैया कराया जाए इसमें किसी तरह का वर्गीकरण न हो।



– जिनके पास राशन कार्ड नहीं है , उन्हें तत्काल आपातकाल राशन कार्ड मिले



ऐसे लोगों की जानकारी प्रशासन के पास मौजूद है क्योंकि प्रशासन उनके पास राशन किट पहुंचवा रही है।



- राज्य सरकार केंद्र से आर्थिक पैकेज मांगे ताकि कल्याणकारी कार्यक्रम चलाए जा सकें



-आयकर भरनेवालों को छोड़ हर परिवार को प्रति माह न्यूनतम 7000, महिला के नाम पर मिले



- गरीब परिवारों के लिए हर महीने एक गैस सिलिंडर मुफ्त व बिजली -पानी के बिल से छूट मिले



- बच्चों को घर तक मिड डे मील पहुंचाने की सुविधा होऔर किताबें मुफ्त में उपलब्ध कराई जाए





– ग्रामीण इलाकों में मनरेगा के अंतर्गत हर परिवार को न्यूनतम 150 दिन काम दे।