पापा की याद में : मोहित नौटियाल 
||पापा की याद में : मोहित नौटियाल||


आज एक बहुत पुराना किस्सा याद आ गया। एक बार मेरी तबियत बहुत ज्यादा बिगड़ गई थी। मामला इतना सीरियस था कि मुझे ये तक ध्यान नहीं कौन मुझे अस्पताल ले गए और किस-किस अस्पताल में ले गए। लास्ट में मुझे नौगांव अस्पताल के लिए रेफर कर दिया था। मैं उस दौरान बड़कोट में रहता था। वहां से किसने गाड़ी बुक की और कौन-कौन मेरे साथ था मुझे ये भी ध्यान नहीं। मैं बेहोश था। शायद मुझे अगले दिन या फिर दो दिन बाद होश आया था(मुझे ठीक से याद नहीं)। जब मेरी आंख खुली तो मेरे सामने मेरे पापा थे। हल्की खुली आंखों से मैंने उनको देखा वह बहुत ज्यादा परेशान बैठे थे। उनकी निगाह एक बार मेरी तरफ और फिर दूसरी निगाह अस्पताल की छत की ओर झांक रही थी। वैसे पापा ज्यादा धार्मिक तो नहीं थे लेकिन उस दिन मानो भगवान से मेरी ज़िन्दगी की और स्वस्थ होने की मिन्नतें कर रहे थे। वो मेरी हालत को देखकर बहुत घबरा गए थे। ये किस्सा मुझे इसलिए याद नहीं कि मेरी तबियत बहुत खराब हुई थी बल्कि इसलिए याद है कि उस समय पिता का वो प्यार देखने को मिला जो कभी भी और दिनों में उन्होंने जताया नहीं था। साथ ही उन्होंने मुझे ज़िंदगी की असली अहमियत समझाई। उनकी दुआ और प्यार ने मुझे मौत की चंगुल से बचा लिया।

 

ऐसा ही एक किस्सा वर्ष 2018 के लास्ट में शुरू हुआ। गांव में हमारे मकान का काम चल रहा था जोकि लगभग पूरा हो चुका था। घर में सबकुछ ठीकठाक चल ही रहा था कि अचानक पापा की तबीयत खराब हो गई। मैं देहरादून में था बड़े भाई हेमंत का फोन आया कि पापा की तबीयत खराब हुई है और वह देहरादून आ रहे हैं। पापा को कभी कोई गंभीर बीमारी नहीं थी तो मैंने सोचा चेकअप के लिए देहरादून आ रहे होंगे। मेरी उनसे कोई बात नहीं हुई थी तो मैं उनकी स्थिति की गंभीरता को समझ नहीं पाया था। जब वह देहरादून आए तब मैंने जो देखा उससे मैं अंदर तक हिल गया था। उन्हें देखते ही मुझे रोना आ गया। नौगांव से देहरादून आते आते उनकी तबीयत बहुत बिगड़ चुकी थी। उन्हें हॉस्पिटल में भर्ती कराया। डॉक्टर ने जांच के बाद कहा ऑपरेशन होना है। हमारा पूरा परिवार सहम गया था। करीब डेढ़ हफ्ते बाद पापा स्वस्थ्य होकर घर लौटे। गांव में तीन चार दिन बाद फिर से उनकी तबीयत बिगड़ गई। फिर डॉक्टर को दिखाने के बाद मैंने उन्हें देहरादून में ही कुछ दिन रोकना चाहा लेकिन वह नहीं माने और गांव चले गए। करीब एक हफ्ते बाद उनके स्वास्थ्य में सुधार आने लगा था। सभी निश्चिंत हो गए थे कि अब सब ठीक हो गया है। लेकिन हमारे परिवार की असली परीक्षा तो इसके बाद होने वाली थी। एक माह बाद जनवरी 2019 में पापा को बुखार की शिकायत हुई। कुछ दिन उन्होंने दवाइयां ली लेकिन ठीक नहीं हुए। शरीर में पीलापन आने लगा तब पता चला कि उन्हें पीलिया है। वह देहरादून आए। कई दिन अस्पताल में रहने के बाद वह फिर थोड़ा ठीक हुए। डॉक्टर ने उन्हें डिस्चार्ज किया और पापा फिर गांव जाने की जिद पर अड़ गए। उस दौरान मेरे ताऊ जी का देहांत हुआ था। पापा को भाई के गुजर जाने का बहुत अफसोस हुआ था। कुछ दिन बाद ही उनकी भी तबीयत खराब होने लगी। पीलिया फिर से बढ़ने लगा था।

 

वह गांव से देहरादून आ गए। इस बार मुझे उनके आने का वो दिन बहुत अच्छी तरह याद है। देहरादून पंहुचते ही वह कमरे पर बैठे भी नहीं थे कि बोल पड़े, चल बेटे पहले डॉक्टर के पास घूम आते हैं फिर कल मैं वापस चला जाऊंगा। उनको लगता था कि मेरे बार-बार आने से बच्चों को परेशानी हो जाती होगी। इसलिए वह जल्दी जल्दी डॉक्टर को दिखाकर वापस गांव जाना चाहते थे। मैंने उनको समझाया आज आराम करो कल डॉक्टर के पास जाएंगे। वह एकदम नॉर्मल दिखने की कोशिश कर रहे थे। लेकिन बीमारी तो बीमारी होती है। अगले दिन हॉस्पिटल गए तो पता चला कि पीलिया बहुत ज्यादा बढ़ा हुआ है उनकी कई और दिक्कतें भी सामने आई । इसके बाद अस्पताल पर अस्पताल बदलते गए लेकिन उनके स्वास्थ्य में सुधार नहीं आया। अब पूरा परिवार उनके स्वस्थ होने की दुआएं कर रहे थे। हम सब लाचार थे सब कुछ भगवान और डॉक्टर के हाथ में था। मेरे पापा दवाई खाने तक से डरते थे लेकिन अब पूरे बदन में हर दिन सुइयां लग रही थी पेट के ऊपर नली लगी हुई थी। हम सभी घबरा गए थे। करीब दो महीने तक इलाज चलने के बाद पापा ने कहा मुझे अच्छा महसूस हो रहा है। सभी रिपोर्ट भी अब नॉर्मल आ रही। लग रहा था हमारी दुआएं कबूल हो गई हैं। पापा स्वस्थ होकर ऋषिकेश एम्स से देहरादून लौटे। एक हफ्ते बाद रूटीन टेस्ट के लिए उन्हें अस्पताल जाना था। पापा कमरे पर आकर कहने लगे दो दिन गांव घूम के आता हूं। इस बार मैंने उन्हें नहीं जाने दिया। मैंने कहा जब पूरी तरह स्वस्थ न हो गए तब तक गांव नहीं जाएंगे। पापा भी मान गए थे। पूरे हफ्ते वह चुप नहीं रहे बस अपने प्लान बता रहे थे जो आगे उन्होंने करने थे। हॉस्पिटल जाने से एक दिन पहले आस पास के लोग पापा से मिलने आए थे। करीब चार घंटे उनके साथ बैठकर उन्होंने मेरी और मेरे भाइयों की खूब तारीफ की। मां गांव में थी तो फोन पर पापा की लगभग एक घंटे उनसे बातचीत हुई।

 

मां उनसे मिलने देहरादून आने की ज़िद कर रही लेकिन पापा ने उनको यह कह कर मना कर दिया कि वह कल डॉक्टर को दिखाने के बाद घर आ जाएंगे। रात को मैं ऑफिस से आया और पापा के साथ हर रोज की तरह बैठकर बात करने लगा। अगले दिन उनके साथ छोटे भाई ने अस्पताल जाना था। उनके शरीर में काफी कमजोरी आ चुकी थी तो मैंने उनसे कहा कि जब डॉक्टर से मिलोगे तो खाने के बारे में जरूर पूछ लेना कि क्या क्या खा सकते हैं। उन्होंने भी हर बात का अच्छे से जवाब दिया और उसके बाद हम सो गए। वह सुबह उठे और छोटे भाई के साथ अस्पताल निकलने की तैयारी करने लगे। मैं नींद में था लेकिन सब कुछ सुन रहा था। पापा छोटे भाई से कह रहे थे कि आराम से बात कर मोहित की नींद डिस्टर्ब हो जाएगी...... और वह अस्पताल के लिए चल दिए। लगभग 12 बजे मुझे एम्स ऋषिकेश से छोटे भाई का फोन आया कि पापा की तबीयत बहुत बिगड़ गई है उन्हें इमरजेंसी में भर्ती किया गया है, आप हॉस्पिटल आ जाओ। मैं कुछ भी समझ नहीं पाया कि आखिर… क्या हुआ? कैसे हुआ? और क्यों हुआ? मैं बस जहां खड़ा था वहीं बैठ गया बहुत घबराहट होने लगी थी। पांच मिनट बाद मैंने डॉक्टर से बात की तो उन्होंने बताया कि हार्ट अटैक पड़ा है।

 

और........ ठीक एक साल पहले आज के ही दिन पापा मुझे, मेरे परिवार और इस दुनिया को छोड़ कर चले गए।

पिता की दुआ और प्यार में इतनी ताकत होती कि जब मैं बहुत ज्यादा बीमार था तो कुछ ही दिन में अस्पताल से एकदम ठीक होकर घर आ गया। हमारी दुआएं तो सिर्फ उन्हें अस्पताल से निकल कर एक हफ़्ते साथ रहने का समय दिला सकी।

पापा ज़िंदादिल इंसान थे.... अब सिर्फ उनके साथ बिताए पलों की यादें दिल में हैं...... जो हमेशा बनी रहेंगी.