प्रेम और विश्वास से


||प्रेम और विश्वास से||


जीवन चलता है,
प्रेम और विश्वास से ,
कम में भी,
अधिक के आभास से।
इक-दूजे का सम्मान करें,
करें कटु वचनों का त्याग।
स्नेह जल से मन सिंचित हो,
बुझे अंहकार की आग।
तनिक भी विचलित न करें,
अपनों को परिहास से,
ऐेसे ही चलता है जीवन,
प्रेम और विश्वास से।
तर्क-कुतर्क बस रहने दो,
मन के भावों को कहने दो।
व्यर्थ ना जायें कसमें वादे,
बंधे रहें प्रेम के धागे।
महकायें बगिया जीवन की,
इक दूजे के साथ से।
ऐेसे ही चलता है जीवन,
प्रेम और विश्वास से।
करने दो उनको खींचातानी,
ये उन लोगों का काम है।
कितने वादे, कितनी कसमें,
जिनके  होठों का काम है।
सुलझाये रखना रिश्तों को,
अपनी बुद्धि के प्रकाश से 
ऐेसे ही चलता है जीवन,
प्रेम और विश्वास से।
नोट- ये रचना काॅपीराइट के अंतर्गत आती है, कृपया प्रकाशन  से पूर्व लेखिका की संस्तुति अनिवार्य है।