बात गंगा अवतरण की 

|| बात गंगा अवतरण की|| 


आज बात करते हैं जनकल्याण के लिए ही सुरंगों में बहने को मजबूर हुई माँ गंगा की

 

ये इंसान की फितरत ही है या उसका अटूट विश्वास व उसकी दृढ़ इच्छाशक्ति और हिम्मत। जनकल्याण के लिए ही राजा भागीरथ की चार पीढ़ियों ने अपने पूर्वजों के कल्याण व उनके उद्धार के लिए माँ गंगा को स्वर्ग से पृथ्वी पर अवतरण के लिए अथक तपस्या की।



 

राजा सगर, उनके बाद अंशुमान और फिर महाराज दिलीप तीनों ने मृतात्माओं की मुक्ति के लिए घोर तपस्या की ताकि वह गंगा को धरती पर ला सकें और गंगाजल से अपने पूर्वजों को मुक्ति दिला सके। किन्तु इनमें से कोई भी सफल नहीं हो पाया और अपने प्राण त्याग दिए।



 

बाद में महाराज दिलीप के पुत्र भगीरथ ने गंगा को धरती पर लाने के लिए घोर तपस्या की और उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर एक दिन ब्रह्मा जी प्रकट हुए और भगीरथ को वर मांगने के लिए कहा। तब भगीरथ ने गंगा जी को अपने साथ धरती पर ले जाने की बात कही और कहा कि वह गंगाजल से अपने साठ हजार पूर्वजों की मुक्ति करना चाहता है। तब ब्रह्मा जी ने कहा कि मैं गंगा को तुम्हारे साथ भेज तो दूंगा लेकिन उसके अति तीव्र वेग को सहन कौन करेगा? इसके लिए तुम्हें भगवान शिव की शरण लेनी चाहिए वही तुम्हे रास्ता दिखाएंगे।



 

ब्रह्माजी के आदेश मानकर भगीरथ ने भगवान शिव की तपस्या एक टांग पर खड़े होकर की। भगीरथ के तप से प्रसन्न होकर महादेव गंगाजी को अपनी जटाओं में रोकने को तैयार हो जाते हैं और गंगा को अपनी जटाओं में रोककर एक जटा को पृथ्वी की ओर छोड देते हैं। इस प्रकार से भगीरथ को गंगा के पानी से अपने पूर्वजों को मुक्ति दिलाने में सफल हो सके।



 

जनकल्याण व लोककल्याण के लिए स्वर्ग में स्वच्छंद विचरण करने वाली, ब्रह्मा जी के कमण्डल में वाश करने वाली, भगवान विष्णु के कदमों में विचरण करने वाली और उसके बाद पृथ्वी पर खुले आसमान के नीचे हिमालय से होकर पर्वतों, घाटियों और विशाल मैदानों से गुजरने वाली माँ गंगा ने कभी कल्पना भी नहीं कि होगी कि उसकी अविरलता को कभी पृथ्वी पर बाँधा जाएगा और उसका सफर घुप्प अंधेरी सुरँगों से होकर गुजरेगा।।



 

जनकल्याण व लोककल्याण के लिए ही माँ गंगा अपने ही मायके में सुरंगों में बहने को मजबूर हुई।। अपने उदगम गोमुख से मात्र 100 किलोमीटर अविरल बहने के बाद उत्तरकाशी के मनेरी में माँ गंगा की अविरल धारा को इंसान ने लोककल्याण व जनकल्याण के लिए रोक दिया।। इस जगह से माँ गंगा लगभग 15 किलोमीटर का सफर घुप्प अंधेरी सुरँगों के माध्यम से होकर पूरा करती है और 90 मेघावाट विद्युत उत्पादन के बाद उत्तरकाशी शहर में तिलोथ के पास अपने मूल में लौटतीं हैँ,,,, मात्र 1 किलोमीटर बहने के बाद फिर से शुरू हो जाता है माँ गंगा का घुप्प अंधेरी सुरँगों में बहने का एक और दर्दनाक सफर,,,,,,,शेष भाग दो में।।

ये दृश्य हैं मनेरी उत्तरकाशी के जहाँ माँ गंगा की अविरल धारा को रोका गया.