ग्राम स्वास्थ्य पोषण दिवस मनाय जाने की पैरवी


||ग्राम स्वास्थ्य पोषण दिवस मनाय जाने की पैरवी||


खाद्य सुरक्षा एवं स्वास्थ्य व पोषण को लेकर के तरुण पर्यावरण विज्ञान संस्थान के माध्यम से एक दिवसीय बेवीनार का आयोजन किया गया है। इस आयोजन में लगभग एक दर्जन विशेषज्ञों ने हिस्सा लिया है।


उत्तरकाशी में कार्यरत तरुण पर्यावरण विज्ञान संस्थान ने टीडीएच के सहयोग से इस  वेबीनार को संपन्न किया है। इस दौरान विशेषज्ञों ने बताया की ग्रामीण स्तर पर स्वास्थ्य और पोषण की बड़ी समस्या है, ऐसे कार्यक्रमों को क्रियान्वयन करने के लिए संयुक्त प्रयास किए जाने चाहिए।


तरुण पर्यावरण विज्ञान संस्था के संस्थापक नागेंद्र दत्त ने कहा जिला स्तरीय इस बेवीनार बैठक में खाद्य सुरक्षा एवं स्वास्थ्य व पोषण हेतु किए जा रहे कार्यक्रमो तक कैसे पहुंच बनाई जाए। विषय को प्रस्तुत करते हुए नागेंद्र दत्त ने कहा कि ग्रामीण स्तर पर आजीविका, पोषण, स्वास्थ्य और खाद्य सुरक्षा की समस्या लोगों के सामने खड़ी रहती ही है।


सामाजिक कार्यकर्ता रणवीर सिंह राणा ने कहा की पोषण व आजीविका के लिए जो कार्य इस दौरान किए जा रहे हैं, उन्हें लोगों तक पहुंचाने के लिए एक सशक्त नेटवर्क की आवश्यकता है।


उत्तरकाशी के सहायक कृषि अधिकारी सुरेश राणा ने वेबीनार को संबोधित करते हुए जानकारी दी कि कृषि विभाग काश्तकारों को बीज, पौध, प्रशिक्षण आदि की सुविधा उपलब्ध कराता है। इस हेतु कृषकों को आधुनिक कृषि यंत्रों के लिए कृषि विभाग 50 प्रतिशत तक का अनुदान भी देता है। उन्होंने जानकारी दी कि किसी भी काश्तकारों के समूह को कृषि विभाग 10 लाख रुपए तक का सहयोग भी कृषि यंत्रों के लिए देता है, जिसमें 80 प्रतिशत अनुदान है।


रिलायंस फाउंडेशन के निदेशक कमलेश गुरुरानी ने कहां की ग्रामीण समुदाय आज भी पहुंच से दूर है, यही नहीं गांव-गांव में कनेक्टिविटी का भी अभाव बना हुआ है, हमें ऐसी परिस्थितियों के मध्य कार्य करना होगा। उन्होंने सुझाव दिया कि दो स्तर पर कार्य करने की आवश्यकता है। जैसे मौजूदा हालात क्या है, और भविष्य की रणनीति कैसी हो? उन्होंने मौजूदा हालात पर बताया कि उत्तरकाशी सीमांत जनपद में कोरोना काल के दौरान 22000 लोगो ने घर वापसी की हैं। अगले तीन महीने के बाद अब यही 22000 प्रवासी लोग फिर से जिले से पलायन करेंगे। जबकि रिवर्स माइग्रेशन की बात हो रही है। इस तरह कुल वापसी में से 10 से 15 फीसदी लोग ही यहां रुक पाएंगे। ऐसे मे इन लोगों के लिए रोजगार, आजीविका, स्वास्थ्य व पोषण की व्यवस्था कैसे करनी होगी, इस पर भविष्य में व्यवस्थित कार्यक्रम बनाने की आवश्यकता है। उन्होंने भविष्य की रणनीति पर सुझाव दिया कि खाद्य सुरक्षा पर अभी भी लोगों की पहुंच नहीं बन पाई है, इसलिए उत्तरकाशी जैसे जनपद में व्यवसायिक कृषि या नगदी फसल को  प्रोत्साहन देने की आवश्यकता है, यह रणनीति का अहम हिस्सा होगा, और यही राहत का कार्य भी होगा।


कमलेश गुरुरानी ने आगे सुझाया कि अब से अगले 3 महीने के लिए कार्य करने की नितान्त आवश्यकता है। क्योंकि कोरोना काल में जो समस्या लोगों के सामने खड़ी हुई थी, वह और तेजी से बढ़ने वाली है। इसलिए इस विषय की पैरवी करनी होगी। उन्होंने कहा कि हर घर में पोषण गार्डन हो, यानी कि जो पारंगत रूप से सागवाड़ा थे। क्योंकि इससे अमुक परिवार को भरपूर पोषण मिलेगा, जबकि अब गांव के लोग भी बाजार से सब्जी खरीद कर जा रहे हैं। अर्थात सगवाड़ा को विकसित करने की प्रबल आवश्यकता है। उनका सुझाव है कि नए कार्यों के बजाय परंपरागत कार्यों को बढ़ावा देने की आवश्यकता है। जिससे लोगों को त्वरित लाभ मिल सके, और स्थानीय उत्पाद भी लोगों की आजीविका का साधन बन सके।


जड़ी बूटी शोध संस्थान के गजेंद्र पवार ने बताया कि मौजूदा समय में जिस तरह का संकट लोगों के सामने आया है, उससे बचने के लिए स्थानीय उत्पादों को ही आजीविका का हिस्सा बनाना होगा। उन्होंने सुझाया कि इस पहाड़ी जनपद में बड़ी इलायची, अदरक, मेथी आदि खाद्य पदार्थों को लोग कृषि कार्यों का हिस्सा बनाये। यह ऐसे उत्पाद हैं जिनसे मनुष्य की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है, साथ ही इन उत्पादों से आर्थिक संसाधन भी जुड़ते है, जबकि इन उत्पाद को जंगली जानवरों का खतरा भी नहीं रहता है। उन्होंने कहा कि यह जड़ी बूटियां हैं जो स्वास्थ्य लाभ के लिए भी काम करती है और काश्तकार को आर्थिक संसाधन भी दिलवाती है। इस पहाड़ी क्षेत्र में तुलसी की खेती को भी बढ़ावा दिया जा सकता है। इसके अलावा बड़ी इलायची और अखरोट की खेती यहां पर बहुतायत में की जा सकती है। उन्होंने बताया कि मुख्यमंत्री जड़ी-बूटी कार्यक्रम के तहत आयुष मिशन योजना संचालित की गई है। जिसमें काश्तकार को 70 फीसदी अनुदान दिया जाता है, यानी दो नाली जमीन पर तीन लाख की अनुदान राशि मिलती है।


श्री भुवनेश्वरी महिला आश्रम के परियोजना प्रबंधक अजय पवांर ने कहा कि मौजूदा समय में ग्रामीणों के साथ स्वास्थ्य व पोषण को लेकर सामूहिक कार्य करने होंगे, इसके लिए सरकारी स्तर पर भी समन्वय स्थापित करना होगा। इन कार्यों के लिए कार्यकर्ताओं को एनआरएचएम का अधिक से अधिक लाभ उठाना होगा और एनआरएलएम के तहत मातृत्व स्वास्थ्य पर विशेष ध्यान देना होगा। मौजूदा समय में ऐसा संकट खड़ा हो गया कि लोग एक दूसरे से मिल नहीं सकते हैं, इसलिए वैकल्पिक रास्तों को भी तलाशना होगा। उन्होंने सुझाव दिया कि ग्राम स्तर पर गठित ग्राम स्वास्थ्य पोषण समिति को भी जागरूक करने की आवश्यकता है। इसलिए हर वर्ष ग्राम स्वास्थ्य पोषण दिवस मनाया जाना चाहिए। यह दिवस 1 सितंबर से 7 सितंबर तक राष्ट्रीय पोषण सप्ताह के दौरान ही मनाया जाना चाहिए। जबकि राज्य पोषण मिशन  की जानकारी भी ग्रामीण स्तर तक नहीं पहुंच पा रही है।


प्रगतिशील किसान दलबीर सिंह चैहान ने वेबीनार को संबोधित करते हुए अपने अनुभव बांटे। उन्होंने बाकायदा वीडियो के मार्फत अपने खेत में उगाई गई फसल को वेबीनार में मौजूद लोगों के सम्मुख रखा। दलबीर सिंह ने कहा कि वह 1 साल में छः लाख रुपये नगदी फसल से कमाते हैं। हाल ही में उन्होंने छप्पन कददू से 60 हजार रुपये कमाए है। वह 12 नाली जमीन पर नगदी फसल का काम करता है। बताया कि वह नगदी फसल को  बहुविविधता के रूप में करता है। सिंचाई के लिए बनाए गए टैंक को एक तरफ वह खेतों की सिंचाई करता है, दूसरी तरफ मछली पालन भी किया जाता है। बस आर्थिक संसाधनों को जोड़ने का किसानों का यह सरल तरीका है। उन्होंने सुझाव दिया कि नगदी फसलों को हम लोग वैज्ञानिक खेती के रूप में करें, तो वही आज की आवश्यकता है।


सामाजिक कार्यकर्ता प्रेमा बधानी ने कहा कि कोरोना संकट ने लोगों को खानपान सिखा दिया है। आज जैविक उत्पादों की नितांत आवश्यकता है। उन्होंने प्रयोग के तौर पर अपनी दो नाली जमीन पर जैविक खेती की है। सिर्फ 3 माह में मटर व बीन को उगाया तो बाजार खेत में ही पहुंच गया है। लोगों ने खेतों से ही ताजी और जैविक सब्जी खरीदी है। इस तरह भी पोषण की प्रवृत्ति हमें स्वयं में बढ़ानी होगी।


अमन संस्था की नीलिमा भट्ट ने कहा की वर्तमान समय में आजीविका का संकट बढ़ गया है इसलिए काश्तकार को सरकारी स्कीम के साथ जोड़ने की आवश्यकता है। उनका सुझाव था कि राज्य स्तर पर स्वास्थ्य, आजीविका एवं पोषण को लेकर एक दबाव समूह का गठन करना होगा, जो दबाव समूह कुपोषण की शिकायतों पर कार्य करेगा। यह भी सुझाव था कि यह दबाव समूह महिलाओं को किसान का दर्जा दिलाने का भी काम करेगा।


संदीप उनियाल ने उत्तरकाशी आपदा प्रबंधन जनमंच के कार्यों का उदाहरण दिया। कहा कि कोरोना काल में इस मंच ने स्वास्थ्य, पोषण और आजीविका के लिए काश्तकारों के साथ कार्य किया है। काश्तकारों को इस मंच ने उनके ही खेत पर जाकर उन्हें उनके उत्पाद का भुगतान करवाया है। यह उदाहरण आने वाले दिनों में कार्यक्रम का हिस्सा बनना चाहिए। आर स्टीफन दियाली ने कहा कि कोरोना संकट के दौरान जो सफल उदाहरण सामने आए हैं उन पर आगे कार्यक्रम बनना चाहिए


वेबीनार के अंत में संबोधित करते हुए अमन संस्था के संस्थापक रघु तिवारी ने कहा कि ग्रामीण स्तर पर स्वास्थ्य, पोषण, आजीविका के लिए एक सशक्त संगठन की आवश्यकता है। जो दबाव समूह के रूप में और सूचना पहुंचाने के रूप में काम करें। अंत में तरुण पर्यावरण विज्ञान संस्था के संस्थापक नागेंद्र दत्त ने सभी सहयोगियों का धन्यवाद किया और सुझाया कि आने वाले समय में संयुक्त रुप से प्रयास करने होंगे, पैरवी करनी होगी, जानकारी पहुंचाने होगी, इसलिए कार्यकर्ताओं का एक संयुक्त संगठन बनाना होगा, जो आने वाले समय में आम लोगों की पहुंच सरकार तक बनाने में एक सेतु का कार्य करे।