जैसा संबध मायके से वैसा संबध जंगल से

कल्याण सिंह रावत और मैती आन्दोलन (प्रथम किश्त)

 



आज विश्व की प्रमुख चिंताओं में धरती के पर्यावरणन की चिंता सबसे ऊपर है। विकसित देशों और वैश्विक संगठनों के बजट का बड़ा हिस्सा पार्यावरण सुरक्षा के नाम पर खर्च होता है। भारत जैसा विकासशील राष्ट्र अपने संसाधनो का बड़ा हिस्सा पार्यावरण की सुरक्षा के नाम पर ब्यय कर देता है।

 

इस धरती के पर्यावरण और सुरक्षा को लेकर आज किसी प्रकार की कमी नहीं है। सूचना, तर्क, वैज्ञानिक तथ्यों, धारणाओं, वृक्षों के महत्व, धरती के पर्यावरणीय खतरों की वैज्ञानिक जानकारियां, संसाधन, पैसा-पाई, नियम-कानून, नियमावली, आदेश, अभियान, चिंता, सजा, डर सब-कुछ है लेकिन परिणाम अनुकूल नहीं। पर्यावरण को लेकर जितना संवेदनशील दुनिया को हो जाना चाहिए उतना नहीं है।


इसका कारण?

कई कारण हो सकते हैं। इनमें से एक है इंसानो के काम का तरीका। वो सिर्फ पैसा-पायी, बजट, आदेश, कानून, नियमावली, चिंता, सजा, डर से ही कार्य नहीं करता। वो बड़े-बड़े काम भावनाओं के वशीभूत भी कर जाता है। भावनात्मक लगाव हो तो कार्य तन-मन-धन, बिना किसी लाभ-हानि और संसाधन के अनवरत रूप से करता चला जाता है। इंसान से परिवार और समाज तक जाते हैं तो भावनाओं के द्वारा किये जाने वाले कार्य हमें और भी स्पष्ट रूप से दिखने लगते हैं। बहुत बड़े-बड़े काम, नियमित रूप से किये जाने वाले काम, अच्छे काम भी और बुरे काम भी।

 

भावनाओं का विध्वंसक दिशा में भड़कना जहां इंसनी जीवन के लिए खतरनाक हो सकता है वहीं भावनाओं को एक बेहतर दिशा देना बहुत उपयोगी भी है। भावनात्मक रूप से किया जाने वाला कार्य कालान्तर में सामाजिक परम्परा का रूप धारण कर लेता है। एक बार किसी कार्य को करने की परम्परा बन गई तो फिर काम खुद-ब-खुद होता चला जाता है। यह इंसानी जीवन में कार्यनिष्पादन की सबसे टिकाऊ प्रक्रिया है। वृक्षों को लगाने और उनके पोषण को लेकर इसी भावनात्मक लगाव को पैदा करने और इसे परम्परा बनाने का प्रयास कर रहे हैं कल्याण सिंह रावत ‘मैती’।

 

और यही है मैती आन्दोलन

इस आन्दोलन के मूल में यही प्रयास है कि पर्यावरण की रक्षा का विचार, वृक्षारोपण और उसका पालन-पोषण इंसान की कोमल भावनाओं से जुड़ जाय। मैती आन्दोलन यह भाव जगाने और महसूस कराने की कोशिश है कि वृक्ष भी शिशु की तरह होते हैं। शिशु को जन्म देना ही पर्याप्त नहीं, उसके लालन-पालन-पोषण प्रक्रिया भी महत्वपूर्ण और जिम्मेदारी का कार्य है। जब तक बच्चा अपने पैरों पर खड़ा नहीं हो जाता तब तक उसे निरन्तर देखभाल की जरूरत पड़ती है। तभी वो घर-परिवार-समाज और राष्ट्र को कुछ देने की स्थिति में पहुंचता है। इसी प्रकार वृक्ष भी हैं। रोपण के बाद उन्हें भी पर्याप्त देखभाल की जरूरत होती है।

 

इसके लिए कल्याण सिंह रावत ने चुना विवाह के अवसर पर नवदम्पति द्वारा वृक्षारोपण का कार्य। विवाह इंसानी जीवन की महत्वपूर्ण घटना है। भारत, उत्तराखण्ड और बेटियों के संदर्भ में इसकी भावनात्मकता और संवेदनशीलता बढ़ जाती है। विवाह के रीति-रिवाज, रश्में और परम्पराएं, इन सब का निर्वहन हम बिना किसी नफा-नुकसान का विचार किये शदियों से करते चले जा रहे हैं। ये सब हमारी परम्परा का अभिन्न हिस्सा बन गया। विवाह के रस्मों के बीच नवदम्पत्ति द्वारा वृक्षारोपण को एक रश्म, रिवाज और परम्परा बनाने की कोशिश है मैती आन्दोलन।