कल्याण सिंह रावत और मैती आन्दोलन

||कल्याण सिंह रावत और मैती आन्दोलन (दूसरी किश्त)||

 



मैती का अर्थ

मैत का अर्थ है मायका। लड़की जहां पैदा होती है वो गांव-कस्बा मैत होता। गांव के पेड़, पहाड़, नदियां, खेत, जीव, जन्तु, पश,ु पक्षी, सब मैती कहलाते हैं। जैसे मैती मुल्क, मैती डांडा, मैती आदमी। उत्तराखण्ड में मैती शब्द बहुत भावनात्मक है। इसमें प्यार और अपनापन घुला होता है। यही मैती आन्दोलन की आत्मा है।

मैती आंदोलन की कार्यप्रक्रिया

 

सबसे पहले गांव-कस्बे में मैती ग्राम गंगा समिति का गठन किया जाता है। इस कार्य में गांव या कस्बे के पूर्व में गठित अन्य महिला संगठन, युवा संगठन भी सहयोग करते हैं। इस समिति के गठन से लेकर संचालन की प्रमुख जिम्मेदारी महिजाएं संभालती हैं। निकटवर्ती बैंक या डाकघर में मैती ग्राम गंगा समिति का खाता खोला जाता है। जिसका संचालन समिति की अध्यक्ष तथा कोषाध्यक्ष के द्वारा संयुक्त रूप से किया जाता है।

मैती आन्दोलन की प्रमुख गतिविधि है विवाह के अवसर पर नवदंपति द्वारा किया जाने वाला वृक्षारोपण।

 

मैती आन्दोलन इस वृक्षारोपण को विवाह की महत्वपूर्ण रस्म के रूप में स्थापित करने में कामयाब हो रहा है। विवाह की दूसरी रस्मों की तरह यह कार्य भी महत्वपूर्ण रस्मों की तरह ही सम्पन्न किया जाता है। निमंत्रण कार्डों पर भी मैती वृक्षारोपण कार्यक्रम की तिथि तथा समय अंकित किया जाने लगा है।

वृक्षारोपण हेतु ‘मैती ग्राम गंगा समिति’ के पदाधिकारी पास की किसी नर्सरी से एक अच्छी प्रजाति के फलदार पौधे की व्यवस्था करते हैं। निर्धारित दिन और समय पर नवदंपति से उसकी शादी की यादगार में उनके घर के आसपास जहां भी जमीन उपलब्ध हो, वृक्षारोपण का कार्य संपन्न कराया जाता है। इसमें गांव-कस्बे की समस्त बेटियां-महिलाएं प्रतिभाग करती हैं। इस अवसर पर दूल्हा पक्ष लगाए गए पौधे की सुरक्षा एवं देखभाल के लिए कुछ धनराशि ‘मैती ग्राम गंगा समिति’ को देता है। इस राशि को समिति अपने खाते में जमा कर देती है।

 

इस प्रकार गांव में जैसे-जैसे बेटियों की शादी होती जाती है गांव की भूमि पर बेटियों के विवाहों के यादगार वृक्षों की संख्या बढ़ती जाती है। समिति के कोश में भी इजाफा होता है। समिति इस कोश का उपयोग यादगार पौधों की देखभाल और सुरक्षा में करती है। ग्राम स्तरीय अन्य समितियां देख-रेख में सहयोग देती हैं। लेकिन सबसे बड़ा योगदान होता है उस बेटी के परिजनों और उसकी मां का जिसके विवाह की यादगार के रूप में वह पेड़ लगाया गया है। मां की ममता पेड़ पर आंच नहीं आने देती। बेटी जब भी मायके आती है उस पेड़ को बढ़ता फलता-फूलता देख कर खुश होती है। यही मानवीय भावना मैती आन्दोलन की खुराक है। ‘मैती ग्राम गंगा समिति’ को प्राप्त धनराशि का उपयोग गरीब बेटियों की सहायता, स्वास्थ्य, स्वच्छता तथा शिक्षा जैसे महत्वपूर्ण कार्यों में भी किया जाता है।

 

ससुराल में भी लगता हैं पेड़

दुल्हन ससुराल पहुंचती है तो वहां मंगरे (प्राकृतिक जल स्रोत) पूजन की रस्म अदायगी होती है। उसके बाद ‘मैती ग्राम गंगा समिति’ की बेटियां दुल्हन को पेड़ उपहार में देती है और दुल्हन द्वारा रस्मों की तरह ही वृक्षारोपण की रस्म का निर्वहन भी किया जाता है। ससुराल में भी इस वृक्ष की देखभाल व सुरक्षा का दायित्व नवदंपति के परिजन और मां निभाती है। भला एक मां अपने बेटे के विवाह की यादगार को कैसे आंच आने देगी।

 

प्रवासी भी लगाते हैं यादगार वृक्ष

शहरों और विदेशों में रहने वाले प्रवासी भी अपने बच्चों की शादियों में पेड़ लगाने की परंपरा का निर्वाह करते हैं। वे अपने पैतृक गांव में गठित ‘ग्राम गंगा समिति’ के नाम धनराशि भेजते हैं। समिति नव दम्पति के नाम पर उनकी जमीन पर एक यादगार वृक्ष लगाती और उसकी देखभाल करती है। इसकी सूचना एवं फोटो वे संबंधित को भेज देते हैं।

 

गलत परम्पराओं का विरोध भी

गलत परंपराओं के स्थान पर नयी अच्छी परम्पराएं शुरू करने का आन्दोलन भी है मैती। मैती से जुडे़ लोग शादियों में जूता छुपाकर दूल्हे से पैसे लेने की सौदेबाजी और मुख्य प्रवेश द्वार पर रिबन काट कर स्वागत करने जैसी परम्पराओं को बंद करने को भी प्रेरित करते हैं। साथ ही सगाई को संक्षिप्त करने, दहेज का विरोध, भोजों पर अनाज की बर्बादी रोकने हेतु जागरूक करना भी इस आन्दोलन का हिस्सा है।

 

वैज्ञानिक तथ्यों और धारणाओं से भी परिचित कराना

इस आन्दोलन को वृक्षारोपण, जल जमीन और जंगल को लेकर वैज्ञानिक अवधारणाओं, तथ्यों के साथ-साथ तार्किक रूप से भावनाओं की जागृति का आन्दोलन भी कहा जा सकता है। मैती आन्दोलन पर्यावरण से सीधे तौर पर, जमीन से जुड़े लोगों तक इस तरह की जगरूकता फैलाता है। बहुत सारे वैज्ञानिक तथ्यों, अवधारणाओं और सूचनाओं को शेयर करना और चर्चा करना भी इस आंदोलन का प्रमुख हिस्सा है। यथा-

 

1- विवाह के बाद नवदंपति का पहला शिशु जन्म लेता है। उसकी पहली आवश्यकता प्राणवायु अर्थात आक्सीजन है। आपके द्वारा लगाया गया यादगार वृक्ष इस अमूल्य उपहार को प्रदान करता है।

2- बेटी अपने मैत की प्राकृतिक संपदा का जन्म से वयस्क बनने तक उपयोग करती है। उस धरती का ऋण है बेटी पर। विवाह के अवसर पर एक पेड़ धरती पर रोप कर बेटी धरती की ऋण से भी मुक्त हो जाती है।

3- एक 50 वर्ष उम्र का पेड़ प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से लगभग 1700000 (सत्रह लाख रुपए) तक की सेवाएं प्रदान करता है।

4- वृक्ष समृद्धि के कारक हैं, हमारी धरती के रक्षक। पानी के स्रोतों को सूखने से बचाना, जलधाराओं का पुनर्जीवन, शुद्ध हवा, ताजे फल, जानवरों को चारा पत्ती की पूर्ति, गांव के बच्चों, महिलाओं का बेहतर स्वास्थ्य और शिक्षा इन सबके उन्नयन में कहीं न कहीं वृक्ष और बेहतर पर्यावरण अपनी भूमिका निभाते हैं।