जगमोहन राणा बिट्टू युवा व नवोदित कवि है। हम उनकी यह नई रचना हू-ब-हू प्रकाशित कर रहे है।
||कोरोनाकाल के वास्ते||
संस्कारों को भूल गए थे जो लोग,
उनको याद दिलाया यह रोग।
शहरों की हवा में घुल गए थे जो लोग,
गांव की याद दिला गया करोना महारोग।
पिज्जा, बर्गर के चक्कर में हम,
कंदमूल, फल-फल भूल गए।
कोरोना की महामारी से अब हम,
सब कुछ वही छोड़ गए।
शहरों की चकाचैंध में, अपना घर बार छोड़ गए।
हाथ जोड़कर नमस्ते करना,
अपनी संस्कृति भूल गए।
धूप, अगरबत्ती न जला कर हमने,
आज अपनी संस्कृति को दगा दिया।
रूम, स्प्रे बॉडी स्प्रे करके हमने,
आज अपनी संस्कृति को भगा दिया।।
यदि इन सब से बचना है तो,
एक अनोखी डाल को अपनाना जरूरी है।
जब भी छींको खांसों तुम,
मुंह पर रुमाल लगाना जरूरी है।
अपनी प्रतिरक्षा बढ़ाना,
नित्य प्रतिदिन व्यायाम करना।
हर घंटे साबुन से हाथ धोना,
सामाजिक दूरी बनाये रखना।
अभी और तभी कोरोना को मत भूलो,
देह व हाथ ना मिलाना कोई,
सामाजिक दूरी से हाथ और गले मिलों।
अभिवादन व नमस्ते,
यही है भारतीय संस्कृति,
द्वोश, राग व भेद भूलकर,
बस! कोरोनाकाल में हम इतना हम समझते।।