कुवां कफनौल मोटर मांर्ग पर मिली प्राचीन शिव गुफा

||कुवां कफनौल मोटर मांर्ग पर मिली प्राचीन शिव गुफा||


पुरातत्व महत्व के स्थल और इससे जुड़ी सामग्री उत्तराखण्ड राज्य के किसी न किसी कोने में मिल ही जाती है। सीमान्त जनपद उत्तरकाशी के नौगांव विकासखण्ड अन्र्तगत सिमलसारी गांव के बच्चों ने गांव के पास के ही जंगल में जमीन के भीतर एक गुफानुमा आकार में कई शिवलिंग देखे है। बच्चों ने गांव पंहुचते ही अपने-अपने मां-बाप को इसकी जानकारी दी है। लोग इस जगह को देखने एकत्रित हुए तो यहां जमीन के भीतर एक गुफा है जिसके अन्दर कई शिवलिंग स्थापित हैं।


ज्ञात हो कि अगले दिन से इस गुफा को देखने के लिए लोगो का तांता लगना आरम्भ हो गया है। लोग गुफा के भीतर सीधा नही जा पाते है, सिर झुकाकर या शरीर का अगला हिस्सा अथवा पांव अन्दर डालकर लेटते हुए गुफा में प्रवेश किया जा सकता है। इस गुफा के भीतर दो तरह के दृश्य चैंकाने वाले है। पहला यह कि गुफा के भीतर जो शिंवलिग है वे ऐसे लगते हैं कि मानो किसी ने यहां इन्हे स्थापित किया हो। शिवलिंग की आकृतियां छोटी बड़ी सभी प्रकार की है। दूसरा यह कि इस गुफा के भीतर यानि गुफा को कवर करने वाला धातु/पत्थर पर जैसे आप चोट मारते है, इसकी आवाज कांस के जैसे बजती है। यहां वीडियो में देख सकते है।



अब यह दृश्य क्षेत्र में कौतुहल का विषय बना हुआ है। कुछ लोग इस गुफा का प्रसंग लाखामण्डल से जोडते है। हालांकि यह गुफा लाखामण्डल से कोई 20 किमी के फासले पर ही है, यहां से लाखामण्डल की दिशा सामने दिखती है। यही नहीं जिस क्षेत्र में यह गुफा निकली है और जहां पर है वहां के नाम भी ऐसे है कि दरअसल ऐसी धरोहरो का यहां मिलना लाजमी है। यह गुफा सिमलसार के पास के जंगल तियां वीट के अन्र्तगत और गैर गांव को जाने वाले पुराने रास्ते पर है। जहां का नाम स्थानीय लोग खाणी खाव (खाणी खाला) कहते है। इससे आगे लगभग 3-4 किमी की खड़ी चढाई चढकर एक जगह घाण्डुवा ओडार (घण्टीयों की गुफा) है। इस क्षेत्र में ऐसे कई नाम हैं जो किसी न किसी खास नाम का उचारण करवाते है।


आम तौर पर देखा जाय तो खाणी खाव का सीधा अर्थ है कि यहां पर कभी किसी प्रकार की विशेष खान रही होगी, वह चाहे मूर्तीकला की हो या कोई अन्य। वैसे भी इस क्षेत्र के गांव गांव में पुरातत्विक और स्थापत्यकला के जीवित नमूने दिखाई देते है, जिन्हे लोग देवतुल्य मानते हैं और इनकी किसी न किसी देवता के रूप में पूजा होती है। तियां, बजलाड़ी, धारी-कलोगी, हिमरोल, दारसौं आदि दर्जनों गांव में आपको पाण्डवकालीन सभ्यता की कथाई और ढांचागत नमूने दिखाई देते है।


कुलमिलाकार स्थानीय लोग अब इस स्थल को धार्मिक स्वरूप के तौर पर पूजने लग गये है। जैसे इस गुफा की सूचना अगल-बगल गांव में पंहुची लोग यहां माथा टेकने आ रहे है। क्षेत्र के जागरूक लोग भी इस स्थान को अब धार्मिक महत्व का बताने लग गये है। कफनौल डामटा वार्ड की जिला पंचायत सदस्य पूनम थपलियाल, ग्राम प्रधान सिमलसारी सुरेश कुमार, पालुका गांव की प्रधान श्रमति रीना राणा, धारी के प्रधान विशालमणी डोभाल, कफनौल के प्रधान चन्द्रशेखर सिंह पंवार, सामाजिक कार्यकर्ता व उद्यान पण्डित भरत सिंह राणा, राम प्रसाद नैथानी, धनीराम थपलियाल, पिताम्बर दत्त डोभल, चन्द्रमोहन सिंह पंवार, विरेन्द्र कफोला, जयेन्द्र सिंह राणा, रणवीर सिंह रावत, संजय थपलियाल, विपिन थपलियाल, मनोज कुमार, रमेश इन्दवाण, जवाहर सिंह चैहान आदि लोगो का कहना है कि यह क्षेत्र पहले से ही धार्मिक महत्व का रहा है, जिसके संबन्ध में कई दन्त कथाऐं लोक में मौजूद है। उनका कहना है सरकार को ऐसे स्थानो को पर्यटन, और धार्मिक पयर्टन के रूप में विकसित करना चाहिए। जो स्थानीय स्तर पर रोजगार पैदा कर सकता है। कहा कि इस हिमालय राज्य में धार्मिक पर्यटन की अकूत संभावनाऐं है।



खाणी खाव पर शिव गुफा
विकासखण्ड मुख्यालय नौगांव से मात्र 25 किमी के फासले पर तियां वीट के अन्र्तगत खाणी खाव नामक सथान पर एक प्रकृतिक गुफा सिमलसारी के कुछ बच्चो को मिली। उन्होने इस गुफा के भीतर शिवलिंग देखे। सूचना पंहुचने पर यहां लोग माथा टेकने पंहुच रहे हैं। गुफा के भीतर शिवलिंग है, कुछ पत्थरो के टुकड़े हैं जिन्हे छूने मात्र से कांसे जैसे धातु की आवाज आती है। इसी गुफा के भीतर मिट्टी का एक विशाल दीपक भी है। ऐसे कई आकृतियां और सामग्री दिखाई दे रही है।


वैज्ञानिक मत
जहां पर चुना की मात्रा या चूने के पहाड़ हो वहां इस तरह की आकृतियों का मिलना कोई अचम्भा नहीं है। यहां पूरा पहाड़ ही चूना पहाड़ है जो यहां की पत्थरो की बनावट बताती है। नौगांव रेंज के रेंज अधिकारी साधुलाल का कहना है कि प्राकृतिक विध्वंश के सहस्रो वर्ष बाद उतराखण्ड हिमालय में पुरातत्विक महत्व के अंश मिलना लाजमी है। इतिहास गवाह है कि इस क्षेत्र में प्रकृति ने कई बार ऊथल-पुथल की है। इस तरह से यहां जमीन के अन्दर और शिवलिंग दबे संभावना होगी। वैसे भी उत्तराखण्ड हिमालय धार्मिक पर्यटन के लिए ही जाना जाता है। इस तरह से यहां धार्मिक पर्यटन को ही बढावा मिलना चाहिए। इधर जिला प्रशासन उत्तरकाशी ने पुरातत्व विभाग को इसकी जानकारी प्रेषित कर दी है। क्षेत्र के लोगो का मानना है कि इस जगह की वैज्ञानिक जांच व पुरातत्व सर्वेक्षण होना ही चाहिए।



कैसे पंहुचे
देश के किसी भी कोने से देहरादून तक हवाई व रेल मार्ग है। देहरादूने से सिमलसार पुल तक 120 किमी है। देहरादून से मसूरी, जमुनापुल, नैनबाग, डामटा, बर्नीगाड़ होते हुए सिमलसारी पुल तक बस, टैक्सी आदि यातायात की 24 घण्टे सुलभ सुविधा है। इसी तरह यदि उत्तरकाशी या धरासू बैण्ड से यहां पंहुचना हो तो ब्रहमखाल, राड़ी टाॅप होते हुए बाया कफनौल, धारी-कलोगी, सिमलसारी पुल तक पंहुचा जा सकता है। राड़ी टाॅप से यह स्थान मात्र 32 किमी के फासले पर है। राड़ी से बड़कोट की तरफ नहीं जाना है, बल्कि कुवां कफनौल मोटर मार्ग पर जाना है। यहां पंहुचने के लिए चारो तरफ से यातायात की बहुत ही अच्छी सुविधा है। हिमांचल की तरफ से आने वाले यात्री बाया पुरोला, नौगांव बर्नीगाड़ होते हुए सिमलसार पुल तक पंहुचा जा सकता है। विकासनगर से आने वाल यात्री यहां विकासनगर से बाड़वाला, हथियारी, जुड्डो, जमुनापुल और नैनबाग, डामटा, होते हुए बर्नीगाड़ तक पंहुचा जा सकता है। बर्नीगाड़ से यह स्थान मात्र 15 किमी के फासले पर है। इस स्थान का नाम खाणी खाव है, मगर सिमलसारी पुल तक पंहुचना ही होता है, फिर लगभग 500 मीटर पैदल मार्ग तय करके इस पवित्र स्थान तक पंहुचा जा सकता है।