ओप्पो-अलीबाबा वाला स्वदेशी राग!


||ओप्पो-अलीबाबा वाला स्वदेशी राग!



 

मेरे जैसे बहुत सारे लोग केवल देश में बनी हुई नहीं, बल्कि अपने पड़ोस में और प्रदेश में बनी हुई चीजें खरीदना चाहते हैं, लेकिन चिंता की बात यह है कि भारत के बाजार में मौजूद लगभग 14 फीसद उत्पादों का रिश्ता सीधे तौर पर चीन के साथ है यानी हमारे मार्केट में हर सातवां उत्पाद या सर्विस चीन के पैसे से अथवा चीन की कंपनियों द्वारा उपलब्ध कराई जा रही है। इस स्थिति के लिए कौन जिम्मेदार है ? व्यापारी, आम नागरिक या सरकार की नीतियां! फिर भी राष्ट्रवादी होने और स्वदेशी होने का अद्भुत पाखंड ढोने की जिम्मेदारी हम और आप जैसे लोगों के पास ही है। ये अद्भुत बात है।

 

हमारे आसपास के जो लोग लॉकडाउन के इस पीरियड में अपने बच्चों को पढ़ाने के लिए बायजूज की सेवा ले रहे हैं, भुगतान करने के लिए उनके पास पेटीएम है, उनके हाथ में ओप्पो, एमआई या शिओमी का फोन है, वे भी पक्के राष्ट्रवादी बने घूम रहे हैं। जिनके लिए अलीबाबा सपनों की कंपनी है, जो बिग बास्केट और जोमैटो के बिना एक दिन नहीं रह पाते, उनके कंधे पर भी स्वदेशी का झंडा बराबर फहरा रहा है। और इतना ही क्यों, घूमने के लिए ओला हो, संगीत के लिए गाना हो और खाने के लिए स्विगी की सर्विस हो तो स्वदेशी का रंग और पक्का हो जाता है।

 

पर, जरा रुकिये इन सब मे भी चीन का पैसा लगा है। इन दिनों टिकटॉक को लेकर काफी चर्चा होती रही और इस ऐप को नेस्तनाबूद कर देने की हवा बहुत तेजी से फैली। इस हवा को फैलाने के लिए शेयरइट और शेयरचैट की भी मदद ली जा रही थी, यह बात अलग है कि इन दोनों में भी चीन का पैसा लगा हुआ है। हम सब की ज़िंदगी में चीन के दखल की बात और आगे तक जाती है। जब आप वोल्वो में सवारी करते हैं तो उस आनंद की अनुभूति के पीछे भी चीन ही है। स्नैपडील और जस्टमनी भी बहुत लोगों को याद होगा। टिकटनाउ, मायगेट और इनके साथ हंगामा डिजिटल, सिटी मॉल इन सबकी गर्भनाल भी किसी न किसी स्तर पर चीन के साथ जुड़ी हुई है।

 

मुझे इस बात की घोषणा करने में कोई दिक्कत नहीं कि मैं पक्का राष्ट्रवादी और स्वदेशी हूं। बशर्ते, सलाह देने वाले और सोशल मीडिया पर क्रांति करने वाले एक बार अपना गिरेबान जरूर झांक लें। ये जरूर देख लें कि आज के दिन उन्होंने चीन के कौन से माल और कौन सी सर्विस का उपयोग किया है। संभव है, कुछ लोग इस पोस्ट का मतलब भी चीनी उत्पादों का समर्थन करना मान लें, लेकिन यह वो अनपढ़ जमात है, जिसे इस बात का दूर तक एहसास नहीं है कि भारत के दूरसंचार बाजार पर चीन का नियंत्रण कायम हो चुका है।

और यह नियंत्रण कोई एक दिन में पैदा नहीं हुआ है। इसमें कई साल लगे हैं और इसके लिए मेरे या आपके जैसे आम नागरिक जिम्मेदार नहीं है, बल्कि वही सरकारें जिम्मेदार हैं जो हमसे परम देशभक्त स्वदेशी और राष्ट्रवादी होने की उम्मीद करती हैं। (जबकि, हमें राष्ट्रभक्त होने के लिए किसी सरकारी आह्वान की जरूरत नहीं है!)

 

बरसों से आदत है कि कोई सामान खरीदने से पहले उसका मेड इन जरूर चेक कर लेता हूं। आश्चर्य होता है कि भारत में बिकने वाले नेल कटर के मार्केट पर दक्षिण कोरिया और जापान का कब्जा है। जिन मेट्स पर हम लोग योग करते हैं, उनमें से हर दूसरी मेट चीन से बनकर आ रही है।

 

हमारे घर में मौजूद सस्ता फर्नीचर, सस्ते टीवी और अन्य इलेक्ट्रॉनिक सामान भी चीन में बने हुए हैं या भारत में मौजूद चीनी कंपनियों के उत्पाद हैं। गंभीरता से सोचिए कि चीन नाम का यह देश हमारी निजी जिंदगी में किस स्तर तक घुस गया है और यह भी सोचिए कि इसका मुकाबला करने के लिए हमारे पास कौन से विकल्प हैं। क्या चीन की तुलना में थाईलैंड, वियतनाम, दक्षिण कोरिया या अन्य किसी देश में बना हुआ सामान खरीद कर हम स्वदेशी हो जाते हैं! यदि हाँ, तो ऐसी सोच आपको मुबारक हो!

 

मैं उस दिन की कल्पना करता हूं कि जब मुझे चीन की तुलना में अपने देश का बाजार ज्यादा टिकाऊ और बेहतर स्वदेशी उत्पादों से भरा हुआ दिखाई दे। पिछली दीपावली पर आस-पड़ोस के दबाव के कारण स्वदेशी लड़ियां ढूंढने निकला तो चीन के विकल्प में थाईलैंड और वियतनाम की बनी हुई झालरें तो मिली, लेकिन देशी विकल्प गायब थे। आज देश का बहुमत सरकार के साथ है, फिर ऐसी क्या वजह है कि लोगों से एक देश विशेष के उत्पादों से दूर रहने को कहा जा रहा है। इस अद्भुत आत्ममुग्धता और पाखंड में ही हमारी जिंदगी कटती रही है और आगे भी करती रहेगी।

 

ओप्पो और अलीबाबा वाले स्वदेशी की जै हो!