’राजपूर नहर’’ दून का अतीत'
||'राजपूर नहर’ दून का अतीत||

 


इसे नोस्टेलजिया कहें या अपने अतीत से प्यार या फिर विकास के रास्ते में मनुष्य के विभिन्न पढ़ाव ये तो पता नही पर कभी कभी अतीत में झांकना अच्छा लगता है। सिर्फ अच्छा लगने के लिये ही अपने अतीत को देखने से बेहतर है कि अतीत को समझते हुए भविष्य के विकास का रास्ता तय किया जाये। अस्सी के दशक के बाद हमने असीमित उपभोक्तावादी, असंतुलित, अनियोजित, विकास के रास्ते में जाकर पर्यावरण का तो नुकसान किया ही है साथ ही अपने पूर्व की महत्वपूर्ण धरोहरों को जमींदोज भी कर दिया है। अपने शहर देहरादून के साथ भी ऐसा बहुत कुछ हुआ है। अंग्रजों में लाख बुराइयां रही हों किन्तु इस देश के इतिहास की धरोहरों को समझने और संरक्षित करने में उनका योगदान अविस्मरणीय है।

 

मेरा घर गुरू राम राय दरबार साहिब के करीब ही है। दरबार साहिब तो अब कहा जाता है असल में यह गुरू राम राय का ढेरा है। पंजाब में गुरू के स्थान को ढेरा ही कहा जाता है। इसी वजह से इस शहर को ढेरा कहा जाने लगा फिर ढेराडून से देहादून में परिवर्तित हो गया। खेर यह अलग इतिहास है आज इस पर नही फिर कभी। यहां आज भी एक तालाब है। अस्सी बयासी तक इस तालाब में पानी नहर से आता था। यह नहर शहर के बीचोंबीच पल्टन बाजार से होती हुई इस तालाब तक आती थी। इसके अवशेष अभी भी दफन है। नहर का वजूद तो नही रहा पर कुछ जगह के नाम इस नहर की याद दिलाते रहेते हैं जैसे नहर वाली गली, धारा चौकी, कैनाल रोड़, ई सी रोड़ आदि आदि। यह ’राजपुर नहर’ के नाम से जानी जाती थी।

 

यहां की खेती बागवानी को हरा भरा और उपजाउ बनाने के बनी राजपूर नहर देहरादून की सबसे प्राचीन नहर थी। इस नहर का निर्माण स़त्रहवीं सदी में रानी कर्णावती ने कराया था। यह नहर बारीघाट में रिस्पना राव से पानी लेकर काठबंगला, जाखन होती हुई दिलाराम बाजार में दो शाखाओं में बंट जाती थी। एक शाखा नगर के मध्य भाग में मंदिरों के तालाबों को पानी देती हुई दरबार सहाब तक व दूसरी पूर्व की तरफ जाने वाली ईस्ट कैनाल डालनवाला के खेत बागों की सींचती हुई आराघर होती हुई मोथरोवाला तक जाती थी। आज यह नहर देहरादून के कंक्रीटी विकास की भेंट चढ़ गई। देहरादून जिले में खेती का विकास अंग्रेजों के आगमन के बाद हुआ। इसके लिये उन्होंने जमीदारों को विशेष ग्रांट भी दी थी और सिंचाई के लिये नहरों का निर्माण भी कराया था। यहां यह बात ध्यान देने योग्य है कि अंगे्रजों के आने से सौ साल पहले रानी कर्णावती द्वारा बनाई राजपुर केनाल ही ब्रिटिश शासकों के लिये प्रेरणा स्रोत बनी। अब आप रानी कर्णावती की क्षमताओं का अंदाजा लगा सकते हैं।

 

रानी कर्णावती गढ़वाल के शासकों में बहादुर कुशल नेतृत्व वाली सख्त शासक रही हैुं। यद्यपि गढ़वाल के राजाओं के वंशावली में उनका जिक्र नही आता है, शायद यह महिला होने के कारण हो पर रानी कर्णावती के किस्से बहुत प्रचलित हैं। गढ़वाल के प्रसिद्ध इतिहासकार शिव प्रसाद डबराल जी ने लिखते है कि 1635 ई में राजा महिपति शाह की मृत्यु के बाद रानी कर्णावती ने राज्य व्यवस्था अपने हाथ में ले ली थी क्योकि उस समय उनका पुत्र प्थ्वीपति शाह की आयु कम थी। उनको नक्कटी रानी भी कहा गया। उस समय दून के अच्छे दिन थे। दून की राजधानी नवादा थी। इन्ही रानी कर्णावती ने इस नहर को बनाया था जिसकी जिर्णोद्धार का काम बाद में अंग्रेजों ने किया। इसी रानी के नाम पर देहरादून का करनपुर गांव बसाया गया। रानी कर्णावती के प्रतिनिधि अब्जू कुवंर के नाम से अजबपूर गांव बसाया गया था। इस दृष्टि से यह नहर कृषि व नहरों के इतिहास में पुरातात्चिक महत्व की थी जो विकास की दौड़ में अंधे हाकिमों के चलते आज गायब हो गई है।

 

इस नहर के वर्तमान हालात को देखने के लिये आज सुबह मैने अपनी साइकिल उठाई और निकल पड़ा इस विलुप्त नहर के किनारे किनारे। सुमन नगर काठ बंगला तक नहर गायब थी। उसक आगे नहर के भग्नावेश दिखाई दे गये। ी [ पानी के बहने का कल कल स्वर सुनकर मन प्रसन्न हुआ। आखिर ी [स्म्फत पंद्रह सोलह किलोमीटर की साईकल यात्रा कर

 

मैं इस नहर के हैड तक पहुंच गया था। जहां आज भी जंक लगे चेन पूली वाली शटर और विरान कमरा अपनी दुर्दशा की दास्तां बयां कर रहे थे।