वी.सी. दरवान सिंह नेगी की पुण्यतिथि पर विशेष 

||वी.सी. दरवान सिंह नेगी की पुण्यतिथि पर विशेष||




24 जून 2020 को प्रथम विक्टोरियाक्रास महानायक दरवान सिंह नेगी की 70 वीं पुण्यतिथि है। उन्होंने न सिर्फ युद्ध के मोर्चे पर अपनी वीरता और जांबाजी दिखायी बल्कि सेवा निवृति के बाद सामाजिक मोर्चे पर भी अपना जो योगदान दिया वो अविस्मरणीय है।

 

जुलाई 1914 में प्रथम विश्वयुद्ध छिड़ गया था। भारत से गढ़वाल राइफल्स की दो सैन्य टोलियों को इस युद्ध में हिस्सा लेने के लिए भेजा गया। अक्टूबर में दोनो टोली फ्रांस पहुंची। वहां ब्रिटिश सैन्य टुकड़ियों के बीच दीवार बनी जर्मन सेना को कोई नहीं हिला पा रहा था। दोनों टुकड़ियों को जर्मनी के कब्जे वाले फ्रांस के हिस्से को खाली कराने का लक्ष्य दिया गया। इस इलाके में जर्मन सेनाओं के कब्जे के कारण ग्रेट ब्रिटेन के नेतृत्व वाली दो सैन्य टुकड़ियां आपस में नहीं मिल पा रही थीं तथा एक दूसरे की सहायता नहीं कर पा रही थी।

 

गढ़वाल राइफल्स की इन टोलियों में नायक दरवान सिंह नेगी भी थे। अपनी फौज के साथ दरवान सिंह फ्रांस की युद्धभूमि में पहुंचे। वहां फेस्टुवर्ट के समीप खाइयों के भीतर 25 दिन तक लगातार युद्ध करते रहे। 23 नवम्बर, 1914 को इनकी टुकड़ी आराम करने के लिये अपने डेरे पर लौट ही रही थी कि अचानक टोली को वापस आने के आदेश हुए।

 

जर्मनी की फौज ने अंग्रेजों की एक महत्वपूर्ण खाई के कुछ भाग पर कब्जा कर लिया था और उन्हें वहां से खदेड़ने के सारे प्रयास विफल हो गए थे। गढ़वाल राइफल्स की पहली टोली ने धावा बोला। उसके बाद दूसरी टोली पहली टोली की सहायता के लिये कूद पड़ी। दूसरी टोली में स्वयं दरवान सिंह भी थे। संगीनों से वार करते हुए इनकी टोली उन टेढ़ी-मेढ़ी खाइयों में अन्त तक बढ़ती ही चली गयी। दूसरी तरफ से जर्मनी लगातार बमवारी कर रहा था। इससे घायल होने के बावजूद गढ़वाल राइफल्स के वीर जवान नायक दरवान सिंह आगे बढ़ते चले गए। इनके जबरदस्त प्रहारों से शत्रुओं की लाशें ज़मीन पर गिरती गयीं। फ्रांस की कड़कती ठण्ड भी गढ़वाल राइफल के इन वीर जवानों के हौसलों को ठण्डा नहीं कर सकी। आधी रात के बाद लगभग 4 बजे करीब 300 गज लम्बी खाई जर्मनी के चंगुल से आजाद करा ली गई। आमने-सामने की इस लड़ाई में जर्मनी के अनेक सैनिक मारे गए। 105 सैनिक कैद कर लिए गए। 3 तोपें, अनेक बन्दूकें तथा बहुत-सी युद्ध सामग्री को भी इन वीर जवानो ने अपने कब्जे में ले लिया।

 

इस असाधारण वीरता और अदम्य साहस के लिए नायक दरवान सिंह नेगी को ब्रिटिश साम्राज्य का सर्वोच्च सैन्य सम्मान ‘विक्टोरिया क्रॉस’ से सम्मानित किया गया। किंग जॉर्ज पंचम एवं क्वीन मेरी ने 5 दिसम्बर, 1914 को स्वयं युद्ध के मैदान में पहुंच कर विक्टोरिया क्रॉस से नायक दरवान सिंह को सम्मानित किया। किसी भी भारतीय सैनिक को मिलने वाला यह पहला पदक था। नायक दरवान सिंह नेगी की वीरता के चलते गढ़वाल राइफल्स को ‘बैटल आफ फेस्टूवर्ट इन फ्रांस’ का खिताब दिया गया।

 

ऐसे वीर और पराक्रमी दरवान सिंह नेगी का जन्म 4 मार्च 1887 में चमोली गढ़वाल के कड़ाकोट पट्टी के कफारतीर गांव में हुआ था। इनके पिता का नाम कलम सिंह नेगी था। कलम सिंह नेगी खेती-किसानी करते थे। दरवान सिंह नेगी का ननिहाल कड़ाकोट पट्टी में ही तुनेड़ा गांव में था। इनके नाना की आर्थिक स्थिति अच्छी थी। उन दिनो उधर कहीं आसपास स्कूल नहीं था। दरवान सिंह की पढ़ाई में रूचि को देखते हुए नाना ने दरवान सिंह को अपने घर बुला लिया और उन्हें अक्षर ज्ञान कराया। परिस्थितियां पढ़ाई के अनुकूल न होने के कारण दरवान सिंह ज्यादा नहीं पढ़ पाए। अन्य पहाड़ी बच्चों की तरह दरवान सिंह भी बचपन में ही खेती किसानी में अपने पिता का साथ देते और फौज में भर्ती होने के सपने देखते। युवावस्था की दहलीज पर कदम रखते ही ये लैन्सडाउन जाकर फौज में भर्ती हो गये।

 

विक्टोरिया क्रॉस सम्मान मिलने के बाद जब सम्राट जॉर्ज पंचम ने दरवान सिंह नेगी से कुछ मांगने को कहा तो उन्होंने गढ़वाल मंडल के कर्णप्रयाग में प्रथम विश्व युद्ध के शहीद सैनिकों की स्मृति में अंग्रेजी माध्यम के मिडिल स्कूल की स्थापना करने और ऋषिकेश से कर्णप्रयाग तक रेलवे लाइन बिछवाने की मांग की। सम्राट जॉर्ज पंचम दरवान सिंह की इस मांग से अचम्भित हो गए। उन्होंने सोचा ये कैसा आदमी है? अपने लिए जागीर, धन-दौलत कुछ नहीं! अपने मुल्क के लिए मांग रहा है। उन्होंने तत्काल उनकी दोनो मांगें स्वीकार कर ली। सन् 1918 में कर्णप्रयाग में वार मेमोरियल एंग्लो वर्नाक्यूलर मिडिल स्कूल की स्थापना की गई। रेल लाइन का सर्वे भी सन् 1919 से 1924 के बीच पूर्ण करा लिया गया।

 

दरवान सिंह नेगी को फौज में हवलदार, जमादार एवं सुबेदार की पदोन्नति मिली। इनके शौर्य और पराक्रम से भारतीय सेना में एक अभूतपूर्व उत्साह का संचार हुआ। दरवान सिंह सन् 1923 में पेंशन प्राप्त कर अपने गांव कफारतीर आ गये। युद्ध के मोर्चे के बाद अब ये सामाजिक मोर्चे पर लड़ाई लड़ने लगे। अपने गांव व क्षेत्र में जहां भी कोई सामाजिक कार्य होता ये उसमें बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेते। वे एक मददगार और अच्छे इंसान के रूप में लोकप्रिय हो गए। लोग इन्हें प्यार और सम्मान से वी.सी. साहब और सुबेदार साहब के नाम से जानते और सम्बोधित करते।

 

वीसी दरवान सिंह सन् 1931 से 1935 तक गढ़वाल जिला बोर्ड के निर्वाचित सदस्य रहे। जिला सैनिक परिषद के भी सम्मानित सदस्य रहे। इन्होंने कई होनहार व निर्धन छात्रों को स्वयं आर्थिक सहायता दी तथा अन्यत्र से भी दिलायी। इनकी सहायता से कई गढ़वाली युवकों को अच्छी नौकरियां प्राप्त हुईं। सन् 1946 में इन्होंने अपने साथियों की सहायता से अपने गांव के निकट पैंतोली में जूनियर हाई स्कूल की स्थापना की। उस स्कूल के लिए भवन बनाने और पैंसा जुटाने में इन्होंने बहुत परिश्रम किया।

 

24 जून, 1950 को वीसी दरवान सिंह नेगी का देहावसान हो गया। इनकी वीरता, शौर्य और सामाजिक योगदान को याद करने के लिए वर्ष 2018 में राजकीय इण्टर कालेज कर्णप्रयाग का शताब्दी समारोह धूम-धाम से मनाया गया। यह विद्यालय वीसी दरवान सिंह के प्रयासों से वार मेमोरियल एंग्लो वर्नाक्यूलर मिडिल स्कूल के रूप में सन् 1918 में स्थापित हुआ था। यह आज इण्टर कालेज बन चुका है। इस विद्यालय से अब तक हजारों छात्र शिक्षा प्राप्त कर देश-विदेश में जनसेवा करते हुए क्षेत्र का नाम रोशन कर रहे हैं। यह वीसी दरवान सिंह नेगी का ही सद्प्रयास था कि आज कर्णप्रयाग तक रेलवे लाइन बिछाने का कार्य भी शुरू हो चुका है।

 

युद्ध के साथ-साथ सामाजिक मोर्चे पर भी संघर्ष करने वाले इस अप्रतिम योद्धा की याद में इनके गांव कफारतीर, विकासखण्ड नारायणबगड़, जनपद चमोली में मेला भी आयोजित किया जाता है लेकिन कोरोना महामारी के कारण इस वर्ष मेला स्थगित कर दिया गया है। वार मेमोरियल समिति के संयोजक भुवन नौटियाल ने बताया कि कफारतीर, नारायणबगड़, कर्णप्रयाग, गोपेश्वर, देहरादून, दिल्ली, लखनऊ आदि स्थानो पर सादे समारोह में, शोसल डिस्टेंन्सिग का ध्यान रखते हुए वी.सी. साहब के चित्र के सम्मुख दीप प्रज्ज्वलन कर और पुष्पांजलि देकर उनकी वीरता और सामाजिक योगदान को याद किया जायेगा।