आखीर गैरसैण के लिये गैर क्यों है हरदा?


||आखीर गैरसैण के लिये गैर क्यों है हरदा?

 

गैरसैण आंदोलन का समर्थन करने पर हरीश रावत का विरोध किया जाना मेरी समझ से परे है। ये नाराजगी हो सकती है की गैरसैण राजधानी क्यों घोषित नही की गयी लेकिन यह तारीफ भी होनी चाहिये की हरीश रावत ने मात्र ढाई साल के अपने कार्यकाल में राज्य के सिमीत वित्तीय संशाधनों से ही गैरसैण के समीप भराड़ीसैण में एक विशाल विधानसभा भवन, विधायक आवास एवं सचीवालय का निर्माण भी कराया। जो गैरसैण राजधानी आंदोलन का आज बड़ा तर्क संगत आधार बन गया है।



 

इस राज्य में सात मुख्यमंत्री हुऐ जिनमें से दो अब इस दुनिया में नही हैं लेकिन बाकी तो जिंदा है, कभी उनसे भी सवाल पूछो उन्होंने गैरसैण के लिये क्या किया। बुरी तरह चुनाव हारने के बाद भी जो व्यक्ति लगातार जनता से मिल रहा हो क्या वो इतना बड़ा पापी हो गया की गैरसैण पर समर्थन करने का उसे हक भी नही रहा?



 

बतौर मुख्यमंत्री हरीश रावत की खूब आलोचनायें या प्रशंशायें हो सकती है, लेकिन इन सब बातों से पहले वे इस पर्वतीय राज्य के आम नागरिक भी है। भले हों या बुरे हो आज की तारीक में इस राज्य की वो सबसे बड़ी जीवित राजनीतिक पहचान भी हैं। इस राज्य का किसी भी दल का बड़ा से बड़ा नेता उनके राजनीतिक कद के आगे बौना है।



 

वो उन नेताओं में से नही है जो फेसबुक पर दो आलोचना लिखने वालों पर पुलिस मुकदमा कर देते है। हरीश रावत को रोज उनकी फेसबुक वॉल पर गंदी गंदी गाली देने वाले हजारों लोग है लेकिन वो बुरा नही मानते और ना ही वो सरकार पर सवाल उठाना या लिखना बंद करते है।क्यों की वो बोलने की आजादी का मतलब जानते हैं।



 

सरकारी सिस्टम के खिलाफ हो रहे हर आंदोलन तक, हर कमजोर से कमजोर आवाज तक वो जा रहें उनका हौसला बढ़ा रहें है, इसमें बुराई क्या है? हरीश रावत को क्या सब छोड़ छाड़ कर घर बैठ जाना चाहिये ? ताकी ये बौनी अक्ल की राजनीतीक सोच वाली सरकार जो मन में आये वो कर सके? ईश्वर ने जब तक हरीश रावत को लड़ने की ताकत दी है उन्हें लड़ना चाहिये। उनसे कोई भी चुनाव जीत जाये लेकिन उनसे बड़ा नेता नही बन सकता।



 

नोट- इस पोस्ट के विरोध में आपकी आलोचनाओं का स्वागत है- Vijaypal Rawat