ऐसे आया अस्तित्व में सलाहकार परिषद


||ऐसे आया अस्तित्व में सलाहकार परिषद||


साल 2012 की बात है। इन दिनों से 2019 तक राज्य के पांचो जनजाति के लोग सरकार के विरोध में इस बात को लेकर थे कि राज्य में जनजातिय सलाहकार परिषद का गठन होना नितान्त है। अब पिछले वर्ष यानि 2019 मे जनजातिय सलाहकार परिषद का गठन हो चुका है। लगभग पांच वर्ष के संघर्ष के बाद जनजातिय समुदाय की यह पहली सफलता कही जा सकती है।


राज्य की पांचो जनजातियो ने भूमि अधिकार मंच नाम से संयुक्त संगठन का रूप 2012 में दिया। यह संगठन पिछले तीन वर्षो से जनजातिय सलाहकार परिषद के गठन और वनअधिनियम 2006 को क्रियान्वयन की मांग करते आया हैं। इसके साथ-साथ जनजातिय समुदाय के लोग मांग करते आये है कि सरकार जनजातिय बजट को पूर्ण रूप से खर्च नहीं कर पा रही है। जो वित्तिय बजट में हर वर्ष लैप्स होता आया है। 


भूमि अधिकार मंच
मुख्य रूप से भूमि अधिकार मंच उत्तराखंड की पांचो जनजातियों एवं अन्य वनाश्रित समूहों का एक गैर राजनैतिक संगठन है जिसका उद्देश्य इन जनजातियों के अधिकारों की रक्षा के लिए आवाज उठाना है।


राज्य की जनजातियां
उत्तराखंड में मुख्यतः पांचो जनजातियों को यदि आनुपातिक क्रम में देखे तो थारू उत्तराखंड की कुल जनजाती आबादी का 33 प्रतिशत है , इसी तरह से  जौनसारी क्रमश 32.5 , बोक्सा 18.3, भोटिया 14.2 तथा वनराजी जिनकी सामाजिक और आर्थिक स्थिति अत्यंत चिंताजनक है की जनसंख्या 750 ही मात्र है।



संघर्ष का एक छोटा सा सफर
सन 2007 में फाइंड योर फीड जो कि एक अंतर्राष्टीय गैर सरकारी संगठन है ने उत्तराखंड में जनजातियों के सामजिक और आर्थिक उत्थान के लिए भूमि परियोजना नाम से एक कार्यक्रम आरम्भ किया है। जिसका मुख्य उद्देश्य इन जनजातियों को आर्थिक सशक्तिकरण प्रदान करना था। इन्हे विकास की मुख्य धारा से भी जोडऩा था। सो कार्यक्रम मूलतः स्वयं सहायता समूहों के माध्यम से आयजनित गतिविधियों पर केन्द्रित किया गया। यह महसूस किया गया कि आर्थिक स्थिति के कारण जनजाति समुदाय के अपने ग्राम स्तर व् राज्य स्तर के अन्य मुद्दों की लड़ाई रह जाती है। इसलिए संगठनात्मक कौशल के लिए कार्यक्रम बनाये गये। जो अपने अधिकारों की बात सरकार के सामने पुख्ता तरीके से रख सकें। भूमि कार्यक्रम से उपजे इस विचार ने भूमि विस्तार कार्यक्रम तथा भूमि अधिकार मंच की नींव रखी। 



1. प्राकतिक संसाधनों पर हक हकूक की लड़ाई लड़ना। 


2. वन अधिकार अधिनियम 2006 का क्रियान्वयन।


3.जनजातीय सलाहकार परिषद् व जनजातीय उपयोजना के सक्रिय क्रियान्वयन पर संवाद कार्यक्रम।


4.मानवाधिकारों को सुनिश्चित करने के लिए लोकतान्त्रिक प्रक्रियाओं में भागीदार बनना।


5.जनजातियो का सशक्तिकरण। 




वनाधिकार 2006 को लेकर व अन्य कार्य
जिला पिथौरागढ़ में 2009 में 106 व्यक्तिगत एवं 4 सामूहिक वनाधिकार 2006 के तहत दावे प्रपत्र उपखंड समिति धारचूला एवं डीडीहाट में जमा कर दिए गए थे। इस प्रक्रिया के बाद नवम्बर 2012 एवं जनवरी 2013 में तहसील धारचूला एवं डीडीहाट के अंतर्गत आने वाले वन क्षेत्रो का सीमांकन किया गया। धारचूला तहसील से 26 एवं डीडीहाट तहसील से 19 दावे प्रपत्रों को जिला स्तरीय समिति पिथौरागढ़ मार्च 2013 को भेजा गया। धारचूला तहसील के 7 एवं डीडीहाट तहसील के 11 दस्तावेजो में कमी के कारण ग्राम स्तरीय वन समिति को वापस भेज दिए। 45 दावे प्रपत्रों की स्वीकृति राज्य सरकार द्वारा मिल गयी।


सामूहिक खेती के हक के लिए भारत सरकार द्वारा गदरपुर में वर्ष 1964 में हरीपुरा जलाशय के निर्माण हेतु गाँव मटकोटा वासियों की सम्पूर्ण भूमि को तात्कालिक सरकार द्वारा अध्याप्त कर लिया गया था। भूमि अधिकार मंच की शिफारिश से लोगो को उक्त भूमि पर कृषि कार्य करने की पुनः अनुमति मिल गयी।
खेमपुर गाँव की सावित्री देवी की जमीन पर कुछ लोगो ने कब्जा कर लिया था। भूमि अधिकार मंच से जुड़े कार्यकर्ताओं ने पुलिस थाने में सम्बंधित लोगो के खिलाफ रिपोर्ट लिखवाई। पुलिस द्वारा कार्यवाही हुई और सावित्री देवी को उनकी जमीन वापस दिलाई गयी।


भूमि अधिकार मंच ने राज्य स्तर पर नीतिगत मामलो को सरकार के साथ एक संवाद कायम करने का प्रयास किया है। जनजाति सलाहकार परिषद् का गठन ना होना मंच ने सरकार का ध्यान कई मर्तवा आकृषित किया। पूर्व मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा व पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत तक ने कई बार परिषद् के गठन की घोषणा की है। अतएव 2019 में अन्ततः जनजातिय सलाहकार परिषद अस्तित्व में आ ही गया है।