भारत में दलित होना महापाप है

||भारत में दलित होना महापाप है||

 


यहां दलितों की जिंदगी महत्व ही नहीं रखती। अत्यचार तो हर जगह पर हर कमजोर तबकों, लोगों पर होता है लेकिन उनके लिए अंतिम विकल्प जनसमूह तो हैं लेकिन भारत का दलित एक ऐसा प्राणी है जिसके लिए खुद दलित सचेत नहीं और बाकि अन्य के लिए मैटर नहीं करते चाहे वह न्यायिक संस्थायें हों, सरकारें हो, जनता हों या फिर क्रांतिकारी लोग हों।



 

पुरोला पुलिस द्वारा निर्दोष पर की गई बर्बरता ने एकबार फिर से यह बहस कि छेड़ दी कि हमारी संस्थायें बहुत बेकाबू हैं। खासकर पुलिस, इनके पास जिस जनता की सुरक्षा की जिम्मेदारी होती है उसे वह जिम्मेदारी की तरह इस्तेमाल नहीं करती बल्कि तानाशाही, दबंगई, गुंडागर्दी और एक रौब, ऐंठन की तरह जनता के बीच मे बनाये रखना चाहती है। इसके पीछे योग्यता, भर्ती प्रक्रिया, राजनीतिक हस्तक्षेप से लेकर अन्य भी कई कारण होते हैं।



 

बहरहाल! हुआ यह कि मनवीर नाम एक विकृत मानसिकता का व्यक्ति किसी महिला से फोन पर अश्लील बातें करता है, महिला ने उस छिछोरे की पुलिस से शिकायत की, पुलिस आधी रात को उस युवक को फोन करती है वह युवक पुलिस को धमकी देता है कि उखाड़ लो जो तुम्हें उखाड़ना है और हिम्मत है तो मेरे गांव आकर दिखाओ। यह युवक सवर्ण समाज से होता है इसलिए उसमें इतनी ऐंठन भी है।



 

वह युवक अपना नाम मनवीर बताता है। युवक पुलिस को जिस गांव का नाम बताता है वह गांव पुलिस क्षेत्र के अन्तर्गत नहीं आता है बल्कि पटवारी क्षेत्र के अंतर्गत आता है बावजूद इसके बिना ग्राम प्रहरी से सम्पर्क साधे, बिना किसी अनुमति के रात 12 बजे पुलिस अपने मिशन मनवीर पर निकल पड़ती है। पुलिस अपराधी को जानती है या नहीं यह नहीं मालूम लेकिन पुलिस गुस्से में होती है इसलिए तमाम नियमों को ताक पर रख देती है।



 

भारत के गांव, देहात, नगर आदि में रात के समय ज्यादातर पुलिसवाले नशे में ही मिलते हैं, प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार यहां भी लगभग यही दशा थी। भारतीय पुलिस पर फिल्मों का असर कुछ ज्यादा ही रहता है। इसलिये फिल्मी सीन की तरह गाड़ी निकालकर बिना वर्दी के, बिना अनुमति के, बिना जानकारी के ही अपने मिशन पर निकल पड़ते हैं।



 

रास्ते मे उन्हें दो लोग प्यारे लाल व उनका सुपुत्र श्रवण मिलते हैं जो रात के समय खेत की सिंचाई हेतु नहर के पास बैठे हैं और अपने खेत में पानी जोड़ रहे हैं। आजकल क्यारी की रोपाई हेतु गांवों में अक्सर रात को ही यह कार्य किया जाता है। पुलिस जो बिना वर्दी में थी अपनी गाड़ी रोकती है और कहती है मनवीर! साले, रुक। ये दोनों पिता, पुत्र डर जाते हैं क्योंकि इन्हें लगता है गांव के ही कोई दबंग लोग हैं जो नशे में गाली गलौज कर रहे हैं इसलिए ये अनदेखा करते हैं और इधर-उधर हो जाते हैं।



 

पुलिसवाले दौड़कर उनकी तरफ आते हैं और डंडों से पिटाई शुरू कर देते हैं। वे चिल्लाने लगते हैं कि हमने कुछ नहीं किया, लड़का कहता है मैं मनवीर नहीं हूं मैं श्रवण हूँ और ये मेरे पिताजी हैं। मनवीर दूसरे गांव का लड़का है हम तो यहीं के गरीब लोग हैं साहब। इतना सुनते ही पुलिसवाले जातिसूचक शब्दों में गालियां देना शुरु करते हैं और डंडे से लड़के का हाथ तोड़ देते हैं।



 

पिताजी बचाव हेतु दूसरों से मदद को भागकर आगे निकलते हैं तो पुलिस पीछा करती है और श्रवण भी भाग निकलता है। आगे चलकर पूर्व प्रधान श्याम लाल के घर मे पनाह लेते हैं। श्यामलाल बाहर निकलकर पुलिस को समझाने का प्रयास करते हैं तो श्यामलाल जी को चांटा मारती है और प्यारे लालव श्रवण को अधमरा कर देती है। युवक श्रवण बेहोश हो जाता है और पुलिस बिना अपराधी को पकड़कर वापस लौट जाती है।



 

अगले दिन जब आसपास के लोगों को इसकी खबर मिलती है तब सभी लोग पुलिस चौकी पहुंचते हैं, युवक का मेडिकल कराया तो हाथ टूटा हुआ पाया और शरीर पर बहुत गहरी चोटें लगी है। अगले दिन मुख्य आरोपी को भी पकड़ लिया जाता है लेकिन सवाल यह है कि पुलिस ने इतनी बर्बरता कैसे कर दी? किस आधार पर पुलिस उस क्षेत्र में घुसी? यदि श्रवण अपराधी भी होता तब भी वह ऐसे व्यवहार नहीं कर सकती थी फिर बेगुनाह होकर भी केवल शक के आधार पर ऐसा करना की यह न्यायोचित है?



 

पुलिस विभाग दोषी पुलिस कर्मियों व एसआई चन्द्रशेखर नौटियाल पर क्या कार्यवाही करेगी? पीड़ितों को न्याय तथा उचित मुआवजा देगी या नहीं? आगे इस तरह से पुलिस कानून अपने हाथ मे नहीं लेगी और अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन करेगी इसकी क्या उम्मीद करें? दलितों के साथ अकारण ही आये दिन दुर्व्यवहार, प्रताड़ना, मारपीट होती है इसपर कैसे लगाम लगेगी पुलिस के साथ साथ सभी के लिए यह विषय चिंतनशील है कि दलित लाइवज मैटर।