छवि 


|| छवि || 


जब तक

राजनीति देती रहेगी

अपराध को संरक्षण

अपराधियों का करेगी

पालन पोषण !!





नैतिकता का

चीरहरण होगा

मर्यादा का मर्दन

नारी का शीलहरण होगा

पीड़ित जनता का होता

रहेगा शोषण !!



जब तक सदन में

चुनकर जाते रहेंगे

माफिया और अपराधी

जब तक दुराचारी

पहुंचेगे संवैधानिक पद पर

पहने बर्दी खादी

चरित्रहीनों का होगा

जब तक

राजनीति में पदार्पण !



तब तक जन गण मन वालों

लोकतंत्र की नींव है आधी!

जनतंत्र के सपनों की

होगी बदहाली बर्बादी ।



अपराधिक

राजनीति जनती

है राजदार

उसकी सर परस्ती में

पलते हैं अपराध

जब तक होती रहेगी

अपराधियों

की खातिरदारी !

उनसे मिले चन्दे में

रहेगी पर्दादारी

अवैध कामों में जारी रहेगी

छूपी साझी हिस्सेदारी!!



गठजोड़ है नापाक

एक दूजे पर बलिहारी!

अपराधिक छवि

दागी वर्दी और खोटी खादी

पड़ेगी लोकतंत्र पर भारी!!



महिलाओं दलितों बंचितों को

कैसे मिलेंगे उनके अधिकार

सिफर से वे कैसे पहुंचेगे शिखर

आम से कैसे बनेंगे खास !

कैसे संभव होगा

हाशिये पर पड़े

लोगों का विकास !!



स्वार्थ और अपराध की

राजनीति ही उड़ाती है

नियम कायदे

कानूनों का उपहास !

सत्ता की

महत्वाकांक्षा गढ़ती है

अपराधिक इतिहास !!



राजनीति की आस्तीन में

पलते दागदार प्रतिनिधि

कथनी में उनके

भले हो जांच का जोश !

छुपाते फिरते सदा अपने

अपराधिक दोष

पावर में दागी सफेद पोश

देते है व्यर्थ संवैधानिक

व्यवस्था को दोष !!



न्यायिक व्यवस्था में

जब तक रहेगा

भ्रष्टाचार का झोल !

अपराधियों को

मिलता रहेगा

सुरक्षा का खोल

चुकाना पड़ेगा गणतंत्र को

अव्यवस्था का मोल!!



जर्जर होने लगे जब

लोकतंत्र का चौथा पहिया !

फिर जनतंत्र

मजबूत कैसे होगा भइया !!



जनता को हांका जायेगा

भेड़ों के माफिक !

कार्य होंगे लोकतन्त्र के विरुद्ध

अपराधिक मन माफिक!!





लोकतंत्र में मौजूद है

अव्यवस्था के

उपचारों की दवाई !

स्वच्छ छवि का हो चुनाव

अपराधिक छवि की हो विदाई !!


 

कवि - वरिष्ठ पत्रकार व् साहित्यकार है 

यह कविता सर्वाधिक सुरक्षित है प्रकाशन से पूर्व अनुमति लें