धुर परवादून की खूबसूरत जाखन नहर

||धुर परवादून की खूबसूरत जाखन नहर||

 


देहरादून एयर पोर्ट से ऋषिकेश जाते हुऐ रानीपोखरी से पहले नदी पड़ती है। यह नदी बरसात को छोड़कर अक्सर सूखी ही नजर आती है। इस नदी का नाम जाखन है। जाखन नदी टेहरी जिले में कद्दूखाल चम्बा के मध्य स्थित पहाड़ियों बनाली से निकलती हुई देहरादून के दक्षिण पूर्व में सौंग व सुसवा से मिलती हुई गंगा में समा जाती है। रानी पोखरी के पास सूखी जाखन नदी को देखकर कोई यह नही कह सकता कि इस नदी से कोई नहर भी निकलती होगी जिसमें बारह महिने पानी बहता है। पर यह सच है कि इस नदी से एक नहर निकलती है जो बेहद खूब सूरत है और जिसका नाम जाखन कैनाल है। परवादून के पूर्वोत्तर में बसे प्राचीन गांव बसन्तपुर, भोगपुर से होती हुई रानी पोखरी में यह नहर मुख्य सड़क मार्ग को पार कर घमण्डपुर की तरफ बढ़ जाती है।

 

कैप्टन काॅटले ने देहरादून में जल संसाधन की उपलब्धता और उससे सिंचाई पर सन् 1945 में एक नोट लिखा था कि परवादून के पूर्वोत्तर वाले कोने में स्थित जाखन नदी में इतना पानी है जिसको नहर में डालकर परवादून की और अधिक भूमि को सिंचित किया जा सकता है। कैप्टन काॅटले को तो इस इलाके में भ्रमण करने का समय नही मिला पर नहर बनाने की परियोजना तत्कालीन दून कैनाल के सुपरिंटेडेन्ट मि0 आर ई फोरेस्ट ने तैयार कर ली थी और 1855 में नहर निर्माण का काम शुरू हो गया। सन् 1863 ई0 में खरीफ की फसल के लिये नहर चालू कर दी गई थी। लगभग 31 किमी लंबी जाखन नहर और इससे निकलने वाली शाखाओं कुल कमांड क्षेत्र 2562 एकड़ था। उस काल में बनी दून की पांच नहरों में इस नहर की खूबसूरती कुछ अलग ही थी। इस नहर पर बने बड़े बड़े झााल यहां से होकर गुजरने वाले आदमी का घ्यान बरबस अपनी और खींच ही लेते थे। आज पर्यावरण और पारिस्थितिकी के प्रति आंखें बंद कर हो रहे तथाकथित विकास के चक्कर में इस नहर का बहुत बड़ा भाग भी भूमिगत कर दिया गया है।

 

काफी समय से मन में इस नहर के किनारे किनारे पटरी पर चलते हुऐ इसके हेड शुरूआती मुहाने तक जाने की इच्छा थी। आखिर 25 जून 2020 को वह दिन आ ही गया और मैं व इंन्द्रेश निकल पड़े जाखन कैनाल पर घूमने के लिये। इंद्रेश नोटियाल सुंदर वाला रायपुर में रहते हैं। मैंने अपनी साईकिल उसके घर खड़ी कर दी और वहां से नौटियाल की बाइक पर चल पड़े। इस जगह से रायपुर थानो मार्ग से भोगपुर पहुंचना ज्यादा आसान है। पहाड़ की तलहटी से होकर गुजरने वाला यह रास्ता रमणीक है। आज महाराणा प्रताप स्पोर्ट कालेज के आगे से सौंग नदी पार करते हुये सौड़ा सरोली भोपालपानी थानो के रास्ते हम भोगपुर पहुंच गये। भोगपुर दून का पुराना गांव है। किसी जमाने में टिहरी रियासत में पड़ने वाले आस पास के ग्रामीणों का यह बाजार और रात्रि विश्राम स्थल हुआ करता था। यहां आज भी अच्छा खासा बाजार है और बड़े मीडिल स्तर तक शिक्षा की सुविधा विशेष रूप से लड़कियों की शिक्षा तो यहां ब्रिटिश काल से ही रही है। भोगपुर में ही अपने साहित्याकार प्रसिद्ध कहानीकार मित्र नवीन नैथानी जी का भी घर है। नैथानी जी के घर तो जाना ही था फोन पर बात भी हो गई थी और वह हमारा इंतजार भी कर रहे थे। तो सबसे पहले नवीन भाई के घर ही गये। चाय की चुस्की के साथ उनके शारिरिक स्वास्थ्य को लेकर तथा यहां वहां की खूब बातें हुई। अपने स्वास्थ्य पर बात करते हुये वे ठेठ सहज ग्रामीण भोगपुरिया अंदाज में कहने लगे ’’जिसने बावन मरोड़ का पानी पिया हो उसका इम्यून सिस्टम इतना मजबूत तो होगा ही, उसका बिमारी क्या बिगाड़ लेगी। दरअसल उन्हें इम्यून सिस्टम कम रखने की दवा लेनी पड़ती है। हम वापसी में आने को कह कर वहां से चल दिये।

 

पास ही रखस्वाल गांव में सिंचाई विभाग का पुराना सन् 1891 में बना विश्राम गृह हैं। यह विश्राम गृह खूबसूरत व आधुुनिक सुविधाओं से लैस हैं इसके चारों तरफ अच्छे किस्म के आम के पेड़ हैं। यहां चोकीदार रहता है। यहां से एक सड़क इठारना के लिये निकलती है। विश्राम गृह को देखने के बाद हम नहर की तरफ निकल गये। चांद पत्थ्र में बाईक खड़ी कर दी। यहां से नहर की पटरी पटरी नहर व नहर के आस पास की वनस्पतियों को निहारते प्रकुति का मजा लेते चलते रहे। आगे बसंतपुर गांव था। यहां कुछ नवयुवक मनरेगा के तहत पुस्ता निर्माण कार्य मे मजदूरी करते मिले। बसंतपुर भी पुराना समृद्धशाली गांव है। यह गडूल ग्राम पंचायत के अन्र्तगत आता है। यहां तिमले के पेड़ में तिमले पके हुऐ थे। तिमले का स्वाद चखकर आगे बढ़े। आगे नहर के उत्तर की तरफ बाला सुंदरी का मंदिर है। यहां इठारना की तरफ से एक गदेरा आता है, जरूरत के हिसाब से जिसकर पानी भी इस नहर में आ मिलता है, शेष बचा पानी नीचे से अपने नेचुरल बहाव में बहता रहता है।

 

यहां कई जगहों पर नहर सर्पिली आकृति में बल खाती हुई नजर आती है। बावन मरोड़ वाली कहावत सामने चरितार्थ होती है। कई जगह नहर डाट के भीतर से गुजरती है। मूल नदी से लगभग तीन सौ फिट की उंचाई पर पहाड़ से लगती हुई पहाड़ी घुमाव के साथ भोगपुर तक लगभग आठ किलोमीटर की यात्रा तय करती है। कई जगह डाट भी सुर्खी से बनी नजर आ जाती है। यहां नहर और उसके रिसाव तथा नमी के कारण उगने वाली वनस्पति व अनेक जीव जन्तु भी प्रचुर मात्रा में मौजूद हैं। सिमालू जगंली करांेंदे की की झाड़ियां अब यहीं देखने को मिलती हैं जो पहले देहरा के सभी गावों में मिल जाया करती थी। हल्की बारीश भी शुरू हो गयी थी, वैसे बरसाती हमारे पास थी ही पर उसे पहनने की नोबत नही आई। सिल्ला चोकी के पास चाय पी व अपने साथ ले गये रोटी सब्जी को खाकर पेट की भूख शांत की। नहर नहर हम आठ किलोमीटर का सफर तय कर तीन साढ़े तीन बजे के लगभग नहर के हैड तक पहुंच गये। इस जगह को न्वारकोट कहते है।

 

आज यहां पुराना हैड जमींदोज हो चुका है उसके स्थान पर नदी में एक बांघ का निर्माण कार्य चल रहा है। नहर में पानी के बहाव को बनाये रखने के लिये सीमेंट के पाइप से नहर में पानी के स्तर को बनाये रखा गया है। नदी में कुछ नौजवान पिकनिक मना रहे थे। कुछ देर रहकर हम वापिस हुये। वापसी हमने जाखन नदी के किनारे बनी कच्ची पक्की सड़क से की। यह रास्ता कम दूरी का है। रास्ते में सन गांव, सुरीधार गांव पड़े। यहां एक टेक्सी मिल गयी जो खाली लोट रही थी। उसके चालक ने हमें भोगपुर तक छोड़ दिया। फिर नवीन नैथानी जी के घर थोड़ा आराम किया चाय पी। उन्होंने अपने पेड़ का कटहल दिया। उस कटहल को लेकर हमने नैथानी जी से विदा ली। इस प्रकार यह दिन भी हमारे लिये शुभ दिन रहा। शाम के आठ बजे के करीब मैं अपने घर पहुंच गया था। करोना के चक्कर में लाॅक डाउन के चलते बाजार में बाजारू रौनक की जगह भूतहा सन्नाटा पसरा था।

 

यात्रा के साथी इन्द्रेश नौटियाल



जाखन नहर की तथ्यात्मक जानकारी का स्रोतः- वाल्टन का गजेटियर आफ दून तथा सिंचाई विभाग उत्तराखण्ड की वेबसाईट।