हर अनुमान झूठा!


||हर अनुमान झूठा!



 

हमारे चारों तरफ कोरोना को लेकर इतनी विरोधाभासी सूचनाएं फैली हुई हैं कि किसी भी निष्कर्ष या अनुमान पर पहुंच पाना संभव नहीं है। कल डॉक्टर नरेश त्रेहन और एम्स के डॉक्टर राजेश मल्होत्रा की बातचीत सुन रहा था। यदि उनकी बातचीत पर भरोसा किया जाए तो भारत में कोरोना के चार करोड़ मामले भी कोई बड़ा संकट पैदा नहीं करेंगे। डॉक्टर त्रेहन का मानना है कि 85 फीसद लोग घर पर ही ठीक हो रहे हैं, 15 फीसद को ही हॉस्पिटल में भर्ती कराए जाने की जरूरत है।

 

4 करोड़ का 15 फीसद 60 लाख होगा। इस समय भारत में लोगों के ठीक होने का प्रतिशत लगभग 65 फीसद पर पहुंच गया है तो इन 60 लाख में से करीब 20 लाख पेशेंट अस्पतालों में दाखिल रहेंगे। यह आंकड़ा भी सामने आया कि वेंटीलेटर की जरूरत आधे प्रतिशत मरीजों को पड़ती है। यानी इन 20 लाख में से केवल एक लाख लोगों को वेंटिलेटर की जरूरत पड़ेगी, जो कि इस वक्त भारत में उपलब्ध हैं। चार करोड़ का आंकड़ा बहुत बड़ा है, इतने मरीज तो शायद पूरी दुनिया में भी ना हो पाएं। तो इसका मतलब यह हुआ कि कोरोना से सावधानी तो जरूरी है, लेकिन भयाक्रांत होने की आवश्यकता नहीं है।

 

एक सूचना दिल्ली के संदर्भ में आई। जहां रिकवरी रेट 83 फीसद तक पहुंच गया। अब दिल्ली में कितने भी मरीज बढ़ जाएं तो भी वहां का स्वास्थ्य सिस्टम स्थिति संभाल लेगा, लेकिन क्या इन आंकड़ों पर इतनी जल्दी भरोसा करके खुश हुआ जा सकता है! उत्तराखंड का उदाहरण देखिए। अब से 15 दिन पहले उत्तराखंड में भी रिकवरी रेट 83 फीसद पहुंच गया था और एक्टिव मरीजों की संख्या 500 से भी कम रह गई थी, लेकिन 15 दिन के भीतर यह रिकवरी रेट 70 फीसद पर आ गया और एक्टिव मरीजों की संख्या 1000 से ऊपर हो गई।

 

असल में सारा गणित टेस्टिंग में छिपा हुआ है। चूंकि, उत्तराखंड में दैनिक टेस्टिंग की संख्या दोगुनी से ज्यादा हो गई इसलिए मरीजों की संख्या भी उसी अनुपात में बढ़ रही है।

 

हम लोग खुश होते हैं कि देखो अमेरिका में 35 लाख मरीज हैं और हमारे यहां केवल 11 लाख हैं, लेकिन हम उस वक्त यह भूल जाते हैं कि भारत के मुकाबले अमेरिका में 4 गुना ज्यादा टेस्टिंग हुई हैं। यदि भारत में भी उतनी ही टेस्टिंग की सुविधा हो तो हमारे यहां मरीजों का आंकड़ा 11 लाख नहीं, बल्कि 40 लाख से ज्यादा होगा। जब बात डरने की हो तो आप इस बात से भी डर सकते हैं कि इस वक्त दुनिया में कोरोना के रोजाना जितने मरीज आ रहे हैं, उनमें हर तीसरा मरीज भारत से है। इसी तरह दुनिया में कोरोना के कारण रोजाना जितनी मौतें हो रही हैं, अब उनमें भारत की हिस्सेदारी एक चौथाई हो गई है। यह एक तरह का चरम ही है। डॉक्टर न जाने यह बात कह कर क्यों डराते हैं कि अभी भारत में कोरोना का पीक पीरियड नहीं आया है।

वैसे भी, कई अनुमानों में यह बताया जा रहा है कि भारत में एक फीसद आबादी पहले से ही कोरोना संक्रमित हो चुकी है और जैसा कि डॉ त्रेहन ने कहा, इनमें से 85 फीसद लोग खुद ही ठीक भी हो चुके हैं। इंग्लैंड के बारे में खबर आ रही है कि वहां लोगों में हर्ड इम्युनिटी पैदा हो गई है। तो क्या भारत भी उसी दिशा में बढ़ रहा है ?

कोरोना के मामले में एक ही बात मदद करती है, वो यह कि आपको जिन आंकड़ों और जिन सूचनाओं से राहत महसूस होती हूं, वही आंकड़े और वही सूचनाएं सबसे बेहतर है।

 

डॉ राजेश मल्होत्रा ने एक बहुत ही बढ़िया बात कही कि जब आप घर से निकलें तो यह मान कर चलिए कि आप के संपर्क में आने वाला हर एक व्यक्ति संक्रमित है, तब आप अपने आपको बचाने पर ज्यादा ध्यान देंगे और जब आप घर के भीतर हों तो यह सोचिए कि आप संक्रमित हैं और पूरा घर आपको बचाना है, तब आप अपने घर के लोगों की सच में मदद कर पाएंगे। अब इसमें कोई संदेह की गुंजाइश नहीं रह गई है कि कोरोना हमेशा के लिए खत्म नहीं होगा। इसका वायरस वैसे ही मौजूद रहेगा जैसे कि बाकी वायरस मौजूद हैं।

 

एक और बात कही जा रही है कि भारत में अभी पीक पीरियड नहीं आया। यह शब्द डर पैदा करता है कि न जाने आने वाले दिनों में क्या होने वाला है। पर अभी एक दूसरी थ्योरी आ गई है, यह बताती है कि भारत में एक ही वक्त में पीक पीरियड नहीं आएगा, बल्कि कुछ स्थानों पर आ चुका है, कुछ पर आने की प्रक्रिया में है और कुछ जगह अभी कई महीने का वक्त लग सकता है। यानी देश के अलग-अलग हिस्सों में अलग-अलग तरह से कोरोना का प्रभाव देखने को मिल सकता है।

 

अब एक बार फिर अपने आसपास निगाह डालते हैं। बीते 4 महीनों में दो बार ऐसा हो चुका, जब यह लगा कि उत्तराखंड जल्द ही कोरोना मुक्त होने जा रहा है, लेकिन अचानक फिर उछाल आता है और प्रदेश की स्थिति अन्य आसपास के राज्यों से भी खराब हो जाती है। उत्तराखंड एक बार फिर चिंताजनक स्थिति में है। एक करोड़ की आबादी वाले राज्य में डेढ़ सौ या दो सौ पेशेंट रोजाना सामने आ रहे हैं। यदि उत्तर प्रदेश से तुलना करें उत्तराखंड की स्थिति वाकई खराब है, लेकिन दिल्ली से तुलना करें तो यही स्थिति अच्छी दिखने लगती है। इन उलझे हुए हालात में उम्मीद ही कर सकते हैं कि आने वाले दिन उतने चुनौती भरे नहीं होंगे, जितने कि आज के दिन हैं।