आज हनी बेटी का जन्म दिन है,

||आज हनी बेटी का जन्म दिन है||



 


बहुत से लोग अपने बच्चों की उपलब्धियों की प्रशंसा करते हैं ,लेकिन मैं इस मामले में ज़रा कंजूस रहा हूं, मेरी छोटी बेटी तो मेरी इस आदत की वजह से मुझसे नाराज़ भी हो चुकी है, मुझे अपनी इस हिचक से बच्चों की नाराज़गी झेलनी पड़ी। खैर कोई बात नहीं लेकिन आज का दिन मेरे लिए वाकई में ख़ास है।



 

9 अगस्त देश के इतिहास के लिए भी और हमारे परिवार के लिए भी बहुत अहमियत रखता है। जब परिवार में दूसरी पीढ़ी का पहला सदस्य जुड़ा, हनी का जन्म हुआ, मेरे लिए तो बहुत यादगार दिन। उस दिन पूरा बाजार एक आंदोलन के कारण बंद था, हनी को 24 घंटे के अंदर एक आवश्यक एंटीबाडी का इंजेक्शन लगना था, सभी दूकाने बंद थीं, किसी तरह शाम को एक कैमिस्ट की दूकान खुलवाकर इंजेक्शन लेकर लगवाया गया था ।



 

हनी की परवरिश भरे पूरे परिवार में अम्मा जी और अब्बाजी सहित बुआओं और चाचुओं के बीच हुई, मैं और पत्नी अपने बच्चों को पालने से करीब करीब दूर ही रहे। आज हनी अपनी बुआओं और चाचुओं को जानती समझती और पूछती है। हल्द्वानी में स्कूलिंग और श्रीनगर में मांस कम्यूनिकेशन में ग्रेजुएशन की पढ़ाई पूरी करके वह एमबीए करने बंगलौर गई और वहीं की हो गई। एमबीए के बाद वहीं उसे एक मल्टीनेशनल कंपनी में जाब मिल गई, उस दौरान वह धीरे धीरे बहुत गम्भीर और समझदार होती गई, इतनी समझदार कि अब उसका दखल पूरे परिवार पर है।



 

उतना मेरा भी नहीं है। परिवार के बीच पली छोटी सी लड़की अब परिवारों में दखल रखती है, अपनी बुआओं, मौसियों और चाचाओं से बात करके उन्हें समझाती है। परिवार में बच्चे कैसे ग्रेजुएट होकर गाइड बनते हैं, हनी को मैं इस तरह देखता हूं।



 

उसके बंगलौर में रहने के कारण हमें भी दक्षिण भारत घूमने और समझने का मौका मिला, लेकिन हनी को दुनिया देखने का मौका मिला। उसने दुनिया तो देखी लेकिन प्रचलित धारणा के खिलाफ। हम समझते थे कि हनी को जब अपनी कम्पनी की तरफ से अमेरिका में, 'इन जाब' एडवांस ट्रेनिंग का अवसर मिला, तो वो शायद अब अमेरिका में ही अपने लिए अवसर तलाशेगी, लेकिन नहीं, हनी को विदेश से लगाव नहीं था, वह वहां की दुनिया बस देखने और अनुभव करने गई थी। उसने अमेरिका के महानगरों को नहीं देखा, चमकती हुई रंगीन दुनिया नहीं देखी। उसने वहां रंगीन पहाड़ों वाले ग्रांड केनेयियन के जंगल देखे, सहरा देखा और घाटियां देखीं।

 

हनी कैलीफोर्निया में उस महिला एन्ने मैरी में मिलकर आई जिसने पिछले दो ढाई दशक से अपने घर में कचरा नहीं किया, जिसका जीवन कचरा और पैकिंग के सामानों के बिना भी आसानी से चल रहा है। आधुनिक समय में जब अघुलनशील कचरे से पूरी दुनिया परेशान हैं ऐसी जिंदगी यक़ीनन एक मिसाल है।



हनी को उससे मिलने का आईडिया यूं हीं नहीं आया वह जब छोटी थी तो वो हमारे प्लास्टिक कचरे के विरूद्ध होने वाले अभियानों और पर्यावरण कार्यक्रमों में भाग लेती थी। यह बात वह अमेरिका जाकर नहीं भूली।

 

अमेरिका में अपनी ट्रेनिंग के दौरान एक दिन वह फ्लाईंग क्लब में बच्चों को हवाई सैर कराने के कार्यक्रम में स्वयं सेवक के रूप में शामिल हुई, और बच्चों को हवाई सैर कराने के बाद खुद भी पायलट के साथ बैठ कर हवा में उड़ गई, कस्बे में रहने वाले हम जैसों के लिए यह सब कल्पना से परे था।



 

लेकिन बाद में हनी ने अपनी नौकरी छोड़कर हमें चौंका दिया, हमारे हिसाब से मल्टीनेशनल कंपनी में अच्छी भली नौकरी थी, मगर हनी ने अपने शौक और पैशन को पूरा करने के लिए आसानी छोड़ दी और स्वतंत्र होकर अपनी कम्बूचा (फर्मेन्टेड टी) बनाने की यूनिट खड़ी कर दी, अब वह कम्बूचा बनाती और बेचती है और लोगों को कम्बूचा बनाने की ट्रेनिंग देने के लिए घूमती है। पहले जगह देश विदेश जाती थी, आजकल वर्चुअल यह काम कर रही है। फर्मेन्टेशन फूड व पेय में रूचि रखने वाले और विश्व विद्यालय के छात्रोंं को वह कम्बूचा और हिमालयन फूड के टिप्स दे रही है।



 

हालांकि मुझे उसके नए काम में बहुत दिलचस्पी है लेकिन मैंने जब उसे चिढ़ाने के लिए, पढ़े फारसी बेचे तेल की तर्ज पर एक बार कहा 'पढ़े एमबीए बेचे चाय'। तो उसने बाकायदा तर्क देते हुए बताया कि चाय बेचना भी बढ़िया काम है, बंगलौर में एक चाय बेचने वाली यूनिट की अनेक स्टाल हैं और वहां लाइन लगाकर लोग चाय पीने आते हैं।

 

हम 25-30 साल पहले की मानसिकता लिए नहीं समझ पाते कि आजकल की युवा पीढ़ी कितना आगे की सोच सकती है।