हौंसलाफजाई करता यह जौनसारी लोक गीत


||हौंसलाफजाई करता यह जौनसारी लोक गीत||



यह जौनसारी जनजाति क्षेत्र का लोक गीत है, जिसे हारूल कहते है। जो सुनकर रौंगटे खड़े कर देता है। एक मां अपने बेटे का उत्साह कैसे बढाती है। क्योंकि उनकी रीत है कि उस मेले में जाना है और वीरता का परिचय देकर वापस आना है। वह मेला जो बहुत ही दूर यानि दूसरे मुल्क में आयोजित होता है। इस बीच के प्रसंग को गीत में पिरोया गया है।


जो बई जोवारीऐ गीहूँ लई गेरी ऐ गेरी - गेरी, ऐजी आई पोरोटीया बैटा हारूलों तैरी, इजे बोलो माईऐ लाईदे खारेणी चैई, ऐ पोरोटीय बेटा खारेणी चैई, ओ मईले मैरे कपडे दिया चैई ऐ धौए, पोरोटीया बैटा चैईए धौईए। 


अर्थात बहुत ही दु-रू-ह रास्ता, बेहड़ जंगल, कोई जान पहचान नहीं, कोई संचार के साधन नहीं, दूसरा क्षेत्र एकदम नया क्षेत्र, बहुत ही अलग, लोगो की भाषा तक अलग। पर, परोटिया बेटा की जिद है कि वह उस क्षेत्र को देखना चाहता है, वहां के रीति रिवाज जानना चाहता है। 


कैडुरे शाऊटीया बैटा सरेलो बाँधों, औ...पोरोटीया बैटा सरेलो बाँधों, कपेडीयू धोईके बैटा कोई गाँवे जान्दो, औ पोरोटीया बैटा कोई गाँवें जान्दो, बाजे रे बजेणुआ बैटा बाजेला बाणों, पोरोटीया बैटा बाजो लो बाणों, कपेडीयूँ धोई कैई बैटा जातेरू जाणू, औ पौरोटीया बैटा जातेरू जाणों, मैरे भाई जाणों की मरीणों मैरे, पौरोटीया बैटा जाणों की मरीणों।


अर्थात अगर उसे कोई पसन्द आ जाये तो शादी भी रचा ले आयेगा। कई दिनों बाद वह जंगल नदी पार करके वहां पंहुचेगा। वैसे भी उनके क्षेत्र से जो वहां गया था वह वापस नहीं आया। पर परोटिया बेटा अपनी मां से वादा कर रहा है कि वह वापस आयेगा। मां अब उसके कपड़े राख से बनी छोई (आज का कपड़े धोन वाला लिक्वीड तत्काल राख से बनाते थे) से धुल दे। वह जाने की तैयारी कर रहा है। साथ में कह भी रहा है कि उसे मालूम नहीं कि वह वापस जिन्दा पंहुचेगा कि मृत शरीर। सब ईश्वर के भरोसे।


गीत की बेदना बता रही है कि कई वर्षो पूर्व जब लोगो के पास कोई आवागमन के साधन व संचार के साधन नहीं थे, लोग एक ही भू-भाग पर अपना जीवन बसर करते थे, ऐसे वक्त यदि वे कहीं दूसरे क्षेत्र में जाने की सोचते थे तो उन्हे यह सब सताता था जो इस लोक गीत में बयां कर रखा है। इस लोक गीत में जौनसार क्षेत्र में किसी भी आयोजन में सभी लोग सामूहिक स्वर में तांदी नृत्य करते है और बहुत ही संवेदनस्वरूप् में।