वैरासकुंड -यहीं पर रचा था " शिव तांडव स्त्रोत

||वैरासकुंड -यहीं पर रचा था " शिव तांडव स्त्रोत||



- जहां शिव भक्त आचार्य भी और महाप्रतापी भी रावण ने की अपने आराध्य को प्रसन्न करने के लिये घोर तप।





- दसों शीश को किया था अर्पित ।





- यहीं पर रचा था " शिव तांडव स्त्रोत




 

हिमालय का कंकर कंकर शंकर है । हिमालय केवल पर्वत श्रृंखला का नाम नहीं है। आध्यात्म और धर्म तथा मान्यताओं की ऐसी भूमि भी है । जिसे न सिर्फ मानव ने जिज्ञासा और जिजीविशा वश अपनी ओर आकृष्ट किया है । अपितु देवताओं ने भी इसे " शक्ति . ज्ञान , का केन्द्र माना है ।



 

भगवान शिव को कैलाश हिमालय इतना प्रिय है कि उनका नाम ही कैलाश वासी हो गया । इस हिमालय में देवादिदेव शिव के अनेक मंदिर , तप स्थली और लीला स्थली है । भगवान शिव की एक ऐसी पवित्र साधना स्थली है । " वैरास कुंड "।

 

जिसे शिव की जीवन्त साधना साधना स्थली भी कहा जाता है ।

यह वह स्थल है । जिसके बारे में मान्यता है कि भगवान शिव के परम भक्त और महा प्रतापी लंकापति रावण ने अपने आराध्य देवाधिदेव भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिये यहां पर सहस्त्र वर्षो तक घोर तप किया था । और अपने दशों शीश ( इन्हे चार वेदों का परम ज्ञान और छ इंद्रियों के निग्रह के रुप के रुप में समझा जा सकता है ) भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिये अर्पित किये थे ।



 

किस रूप में यहां भगवान !



वैरास कुंड में भगवान शिव का जो रूप है । उसे वशिष्ठेश्वर महादेव के रूप में जाना जाता है । हिमालय की संस्कृति और यहां के आध्यात्म पर लेखनी के हस्ताक्षर शिवराज सिंह रावत " निशंग " लिखते हैं । कि इस स्थान पर भगवान शिव वशिष्ठेश्वर महादेव के रूप में साधना रत हैं ।



 

क्या है विशिष्ठ !

वैरास कुंड वशिष्ठेश्वर वही स्थान है । जहां पर रावण ने शिव को प्रसन्न करने के लिये " शिव तांडव स्त्रोत " को रचा था . । " जटाटवी गलजज्वलज प्रवाह पा वितस्थलै ----

 

शिव के प्रति अनुराग और अगाध भक्ति को देखते हुये उनके द्वारा रचित " शिव तांडव स्त्रोत " का जो भी जब भी सस्वर पाठ करता है । तो स्त्रोत के अंत में यह अवश्य कहता है -- अथ श्री रावण विरचित शिव तांडव स्त्रोतम । बिना इस वाक्य के शिव तांडव स्त्रोत पूरा माना ही नहीं जाता ।



 

आज भी प्रमाण हैं

वैरास कुंड वशिष्ठेश्वर मंदिर के निकट एक पत्थर पर रावण के दश शीसों का प्रतीक बिम्ब भी हैं । रावण को दशासन भी कहा जाता है । इसी लिये इस पूरे क्षेत्र को दश मोलि और बाद में दशोली भी कहा जाता है । यूं वर्ष भर यहां भगवान शिव के दर्शन पूजा होती है । पर हर वर्ष सावन माह के सोमवार को यहां पर भक्त अपने आराध्य भगवान शिव के दर्शन के लिये अवश्य पहुंचते हैं । चमोली जिले में यह स्थान । नन्दप्रयाग से वाहन से यहां पहुंचा जा सकता है ।