|| अनुसूचित जाति के छात्रों को प्रवेश नहीं ||
वर्ष 1967 में जौनसार बावर क्षेत्र को अनुसूचित जनजाति क्षेत्र में संवैधानिक रूप में आरक्षित किया गया है। इसलिए जनजातियों के उत्थान के लिए सरकार द्वारा विभिन्न विकास की योजनाएं देहरादून के इस जनजातीय क्षेत्र में संचालित की जाती है। उत्तराखंड राज्य बनते बनते जौनसार बावर जनजाति क्षेत्र में जातिवाद की बू बाहर आने लगी, जिसका हस्र यह हुआ कि इस जनजातीय क्षेत्र में निवास कर रहे अनुसूचित जाति समुदाय को तरह-तरह से जातिवाद का दंश झेलना पड़ रहा है।
ज्ञात हो कि वर्तमान समय में देहरादून जनपद के चकराता विकासखंड अंतर्गत ग्वासा पुल में संचालित औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान में अनुसूचित जाति के अभ्यर्थियों को प्रवेश तक नहीं दिया गया है। यहाँ मौजूद प्रधानाचार्य संविधान की दुहाई देता फिर रहा है कि इस संस्थान में सिर्फ जनजाति समुदाय के बच्चो को ही प्रवेश दिया जाएगा। इस तरह से जनजातीय क्षेत्र में पनप रहा जातिवाद का जिन साफ दिखाई दे रहा है।
उल्लेखनीय है कि जौनसार बावर आरक्षित क्षेत्र में अनुसूचित जाति के समुदाय की आर्थिक राजनीतिक एवं सामाजिक स्थिति बहुत ही दयनीय है। बता दें कि जब यह क्षेत्र अनुसूचित जनजाति के रूप में आरक्षित किया गया था तो सोचा गया था कि यहां पर किसी जातिवाद या भेदभाव आदि जैसी स्थिति नहीं होगी। यहां के बाशिंदे समान रूप से अपना रहन सहन करते होंगे। जनजातीय समुदाय के जैसे रहते होंगे। मगर जिस तरह से जौनसार बावर क्षेत्र में विकास की योजनाएं क्रियान्वयन होने लगी उस हिसाब से जौनसार बावर क्षेत्र में अनुसूचित जाति के समुदाय में हताशा ही नजर आ रही है।
ज्ञात हो कि उत्तराखंड राज्य बनने के पश्चात साल 2003 में जब हनोल मंदिर में अनुसूचित जाति समुदाय के लोग प्रवेश नहीं कर पा रहे थे तो क्षेत्र में बहुत बड़े आंदोलन ने रूप लिया था। तब प्रशासन ने यह निर्णय लिया कि धार्मिक स्थलों पर ऐसा भेदभाव असंवैधानिक है। यह भी बताया गया यह तो जनजातीय समुदाय है, यहां भेदभाव कैसे। किन्तु यह सिलसिला आगे चला और कई बार यहां जौनसार बावर जनजाति क्षेत्र में जातिवाद की लड़ाइयां सामने आई। कुछ वर्ष पहले जौनसार बावर के अनुसूचित जाति समुदाय के सामाजिक कार्यकर्ता दौलत कुंवर देव डोली के साथ मंदिर प्रवेश कर रहा था उन्हें स्थानीय ग्रामीणों की मार पिटाई खानी पड़ी। यही नहीं जौनसार बावर जनजातीय क्षेत्र में आज भी अनुसूचित जाति के समुदायों को अनुसूचित जनजाति का प्रमाण पत्र प्राप्त करना बहुत बड़ी बात हो चुकी है।
कुल मिलाकर ग्वासा पुल में संचालित औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान में अनुसूचित जाति के समुदाय के बच्चों को प्रवेश नहीं देना 21 सदी में सवाल खड़ा करता है। कांग्रेस के जागरूक कार्यकर्ता एडवोकेट ध्वजवीर सिंह ने इस बावत एक ज्ञापन सरकार को प्रेषित किया है। कहा कि क्षेत्र में अमानवीयता का व्यवहार किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि यदि जौनसार बावर जनजातीय क्षेत्र में यही हालत रही तो उन्हें न्यायालय का दरवाजा खटखटाना पड़ेगा। इधर उत्तराखंड सरकार में सचिव डॉक्टर भूपेंद्र अलग कौर ने एक पत्र प्रेषित किया। जिसमें बताया गया की जनजाति कल्याण विभाग से जितने भी आश्रम पद्धति विद्यालय संचालित किए जा रहे हैं उनमें पहले जनजाति समुदाय के बच्चों को प्रवेश दिया जाना चाहिए। जब कुछ सीटें खाली रह जाएगी तो सहज ही अनुसूचित जाति के बच्चों को भी प्रवेश मिलना चाहिए।
ज्ञात हो जब यह जौनसार बावर क्षेत्र अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित है तो यहां पर निवास करने वाले किसी भी समुदाय को इस आरक्षण का फायदा पहुंचना चाहिए, जबकि जौनसार बावर जनजाति क्षेत्र में ऐसा हो नहीं रहा है। संविधान के अनुसार पूरे देशभर में जाति और समुदाय के अनुसार अनुसूचित जनजाति का दर्जा समुदायों को मिला हुआ है। मगर उत्तराखंड के देहरादून जनपद के अंतर्गत सिर्फ जौनसार बावर क्षेत्र को अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिया गया है जो आज भी कई सवाल खड़ा करता है।