अधूरी


|नीरज उत्तराखंडी|


कोई भी जीव हो उसे प्यार की आवश्यकता होती है। वह प्यार जो वह मां, पत्नी और दोस्त से चाहता है। इस कविता में उत्तराखण्ड की जनजातिय लोक भाषा जौनसारी-बावरी में कवि नीरज उत्तराखण्डी ने अन्तरंगी साथी के प्यार बावत  कुछ लाईने दी है। जिसे हम यहां प्रकाशित कर रहे है। कितना अगाध प्यार है उसका, कि वह सिर्फ व सिर्फ उसे ही चाहता है। कहता है कि तू चाहे किसी और को प्यार कर लेना, मगर मुझे नहीं भूलना बगैरह।


 ||अधूरी||

 


तू मू छोड़ी

कसी कैंई

प्यार करे

तू करिया करी !

तस खै

झूरी करिया मरी !!





पर एक शर्त मेरी

जरूर करिया पूरी

मेरी इच्छा

थइया नू अधुरी !

जदूस

तेरी शादी हली

मूस बी

बोइदिया जरूरी !!





चार लाइनी दी

तांऊ कैंई

आपणे जीया की

बात खोलू !

जो तेरी

उमणाई दी बियाए

तथु खै ही

हांऊ रात बोलू!!