जिया दी बसी 

कविता - जौनसारी की उप बोली (बावरी व देवघारी में). हाडखी हाडखी हसे। का मतलब बहुत खुश होना। यानि मनो की निधि मिल गई हो। किसी के चाहने से और उसे दिल में बसाने से उसे हासिल कर लेने से आनंद की अनुभूति होती है वो स्थिति है। हाडखी यानि हड्डी का भी हंसना। प्यार वो संजीवनी है जो रोंम रोंम रोमांचित कर दती है । निर्जीव हड्डियां में सजीव होकर हंसने लग जाती है।

 

     - भावार्थ भी कविहृदय से साभार 



नीरज उत्तराखंडी 

 

||जिया दी बसी||

 


जसकै तू

जीया दी बसे !

तसकी

हाड़खी हाड़खी हसे !!





आंखी तेरी

सुरा की भाडकी

जो बी चाखे

बेहिसाब माचे !

चुटी चुटी कैंई नाचे

जबै नशो उतरे

तबै पश्ताये पाछे !!





बाल तेरे

शावण की कुरेड़

ओठ तेरे हिसर !

जो एक चोटे

चाखीपाए

उम्र भरी

कोदी ना बिसर !!

 


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