कविता - जौनसारी की उप बोली (बावरी व देवघारी में). हाडखी हाडखी हसे। का मतलब बहुत खुश होना। यानि मनो की निधि मिल गई हो। किसी के चाहने से और उसे दिल में बसाने से उसे हासिल कर लेने से आनंद की अनुभूति होती है वो स्थिति है। हाडखी यानि हड्डी का भी हंसना। प्यार वो संजीवनी है जो रोंम रोंम रोमांचित कर दती है । निर्जीव हड्डियां में सजीव होकर हंसने लग जाती है।
- भावार्थ भी कविहृदय से साभार
||जिया दी बसी||
जसकै तूजीया दी बसे !तसकीहाड़खी हाड़खी हसे !!
आंखी तेरीसुरा की भाडकीजो बी चाखेबेहिसाब माचे !चुटी चुटी कैंई नाचेजबै नशो उतरेतबै पश्ताये पाछे !!
बाल तेरेशावण की कुरेड़ओठ तेरे हिसर !जो एक चोटेचाखीपाएउम्र भरीकोदी ना बिसर !!फोटो - साभार instagram