स्टार्टअप : नरेश ने खड़ा किया स्थानीय उत्पादो का बाजार

स्टार्टअप : नरेश ने खड़ा किया स्थानीय उत्पादो का बाजार

इसमें कोई संदेह नहीं कि पहाड़ पर पलायन की खबरे पिछले 18 वर्षो से सर्वाधिक बढी है। सिर्फ खबरे ही नहीं दरअसल रोजगार की तलाश में पलायन करने वालो की संख्या में भी इजाफा हुआ है। पलायन का कारण और किस तरह का पलायन, स्वैच्छिक पलायन या मजबूरी का पलायन आदि सवाल खड़े है। जिसके निवारण की ओर सरकारें लगातार काम कर रही है। मगर राज्य बनने के बाद पलायन निरन्तर जारी है। दूसरी तरफ देखें तो कुछ लोग पलायन को कोई समस्या नहीं मान रहे है। वे कहते हैं कि इस पहाड़ में वे सभी प्राकृतिक साधन उपलब्ध है जिससे स्वरोजगार पाया जा सकता है। दर्जनो युवाओं ने ऐसा ही करके दिखाया है।



ज्ञात हो कि प्राकृतिक सौन्दर्य को समेटे और नगदी फसलों के लिए विख्यात उतरकाशी की यमुनाघाटी में एक युवा ने स्थानीय उत्पादो को बाजार में पंहुचाने का नायाब तरीका निकाला है। वह लगभग 550 ऐसे मझौले किसानो से जुड़ा है जो कम से कम एक और अधिक से अधिक 10 कुन्तल अलग-अलग प्रकार की नगदी फसलो का उत्पादन करते है। वे किसान अलग-अलग मौसम में उस युवा का इन्तजार करते है। की उनके गांव में नगदी फसल को खरीदने वाला नरेश कब आयेगा। सच में यह वही नरेश नौटियाल है जो यमुनाघाटी की नगदी फसलो को बाजार और पहचान दिलाने का बादशाह कहलाता है। नौगांव, पुरोला व मोरी विकास खण्डो के काश्ताकार हो या वहां की महिला स्वयं सहायता समूहों की महिलाऐं। उन्हे बस नरेश नौटियाल का ही इन्तजार रहता है।


पुरोला के गुंदियाट गांव निवासी उच्च शिक्षित कैलाश नौटियाल कहता है कि जब से वह नरेश से जुड़ा है तब से गांव में ही स्वरोगार पा चुका है। वह गांव मंे ही लाल चावल एकत्रित करके नरेश को उपलब्ध करवाता है। उनके स्वंय भी लाल चावल होते है। अपने उपयोग के बाद जो चावल बच जाते है उसे वह नरेश को बेच देते है। किम्मी गांव के हरिमोहन का कहना है कि नरेश उन्हे उनके उत्पादो का दाम हर सीजन में उनके घर पंहुचा देता है। इसी गांव की कामनी राणा व सुनिता राणा का कहना है कि जब से उनके स्थानीय उत्पाद बाजार में पंहुचने लगे तब से किसानी करने के तरीको में भी आमूलचूल परिवर्तन आया है। स्थानीय उत्पादो को बाजार में पंहुचाने का श्रेय भी वे नरेश नौटियाल को ही देते है। वे आगे कहती है कि इधर स्थानीय उत्पादो ने नगदी फसल का रूप लिया और उधर महिलाओं की आर्थिक स्थिति में भी काफी सुधार आने लग गया है।


यमुनाघाटी के ही नैणी गांव के भगवान सिंह व पीसाऊ, गांव के चैन सिंह का कहना है यदि नरेश उनके उत्पादो को नहीं खरीदता तो वे उक्त फसल का उत्पादन ही बन्द कर देते। कहते हैं कि उनके क्षेत्र में तो लोगो ने मण्डुवा का उत्पादन लगभग बन्द ही कर दिया था। पर अब पिछले 10 वर्षो से मण्डुवा के उत्पादन करने में लोगो की दिलचस्पी इसलिए बढी है कि उनके मण्डुवा के उत्पादन से उनके हाथो में नगदी आ रही है। वे किसान इस बात का प्रमाण दे रहे हैं कि जिस भी फसल का वे उत्पादन करते हैं वह सभी विशुद्ध रूप से जैविक हैं। क्योंकि वे अपने खेतो में खाद के इस्तेमाल हेतु अपने ही पालतु पशुओं व भेड़-बकरियों का गोबर डालते है। उनका मानना है कि रासायनिक खाद से एक बार फसल का उत्पादन खूब बढ जाता है, मगर वह खेत आने वाले समय के लिए बंजर ही हो जाता है। ऐसे उनके क्षेत्र में कई उदाहरण है।



उल्लेखनीय हो कि नरेश तो अब उन सीमान्त और मझौले किसानो का दुलारा बन गया। वह उन किसानो से 15 प्रकार की राजमा ही राजमा खरीदता है। जबकि 60 प्रकार की मोटी दाले और है। 15 प्रकार का मतलब समझना थोड़ा कठीन हो सकता है। यहां पहाड़ के गांव में छः प्रकार की ऐसी राजमा है जो जिसे लोग अपने किचन गार्डन में पैदा करते है। उस राजमा की लम्बी-लम्बी बेल होती है। कुछ राजमा को लोग अन्य फसल के साथ खेतो की मेड़ो पर उगाते है। इसी प्रकार अन्य मोटी दालें भी है। नरेश के अनुसार उसके पास 60 प्रकार की अन्य मोटी दाले जो हैं, जिसे वह उन्ही किसानो से खरीदते हैं जो विशुद्ध रूप से जैविक खेती करते है। इसके अलावा वह अखरोट, जख्या, साबुत मसाले, साबुत हल्दी दाल से बनी हुई बड़ी, दाल की नाल बड़ी, सिलबटे का पीसा हुआ नमक जैसे 150 प्रकार के स्थानीय उत्पादो की सामग्री को नरेश नौटियाल बाजार उपलब्ध करवाता है। इस तरह अनुमान लगाया जा रहा है कि प्रत्यक्ष रूप से 1000 युवाओं के हाथो नरेश के कारण स्वरोजगार प्राप्त हुआ है।


कह सकते हैं कि अकेले नरेश के इस स्वरोजगार के कारण अप्रत्यक्ष रूप से दस हजार की जनसंख्या लाभाविन्त हो रही है। अर्थात 550 परिवारो को स्थानीय स्तर पर स्वरोजगार से जोड़ा गया है। नरेश से बातचीत करने से मालूम हुआ कि वह इस कार्य को स्वयं के संसाधनो से संचालित कर रहा है। वे कहता है कि यदि उसके पास आर्थिक संकट नहीं होता तो पलायन को वह धत्ता बता देता। कहता है कि उनकी यमुनाघाटी में पलायन की कोई समस्या नहीं है पर राज्य के जिन जिन जगहो पर पलायन एक बिमारी का रूप ले रही है वहां स्थानीय उत्पादो का उत्पादन करके बाजार खड़ा किया जा सकता है।


बता दें कि यमुनाघाटी स्थित देवसारी गांव में जन्में नरेश नौटियाल का जीवन बड़ा ही जीवट रहा है। वे पढाई के दौरान से ही संघर्ष का पर्याय बन गया था। खुद ही अपने लिए स्कूली संसाधनो को जोड़ना नरेश की दिनचर्या बनी हुई थी। इस तरह नरेश स्थानीय स्तर पर हार्क नाम की संस्था से जुड़ा। जिसके एक्सपोजर ने नरेश को हिम्मत दी और प्रेरित हुआ, कि स्वरोजगार से ही स्थितियां सुधारी जा सकती है। आखिर वही हुआ और पिछल 10 वर्षो में नरेश ने यमुनाघाटी व गंगा घाटी के स्थानीय उत्पादनो को बाजार में उतारने के व्यवसाय में महारथ हासिल कर डाली। देशभर में लगने वाली प्रदर्शनियों में नरेश के पहाडी उत्पाद अपनी अलग पहचान बना चुके है। दिल्ली के ताल कटोरा स्टेडियम में हर वर्ष व्यापार मेले में नरेश का पहाड़ी उत्पादो का स्टाॅल लगता है। अर्थात संसाधनो के अभाव में भी नरेश का टर्नओवर लगभग 10 लाख रू॰ का बताया जा रहा है।


नरेश कहता है कि वह इस कार्य को कभी भी अकेले अंजाम नहीं दे सकता था, पर उनकी पत्नी उनके साथ उत्पादों की ग्रेडिंग, पैकिंग से लेकर बाजार तक पंहुचाने में कंधा से कंधा मिला के रखती है। उनका यह भी कहना है कि इस कार्य को विशाल रूप देने के लिए बजट की प्रबल आवश्यकता होती है। फिर भी वह इस बात के लिए खुश है कि उनके ही जैसे कुछ युवा इस कार्य को हाथों में लेंगे तो यह कार्य स्वयं ही विशाल होगा। साथ ही उत्पादो की गुणवता भी बनी रहेगी। वे मानते है कि छोटे-छोटे समूहो में ही ऐसे कार्यो की गुणवता व विश्वसनीयता बने रहेगी।