गीर्दा जी कह गये - मेरी कोसी हरी गे कोसी


||गीर्दा जी कह गये - मेरी कोसी हरी गे कोसी||


- उनकी पुण्य तीथि २२ अगस्त पर विशेष||  


जब गीर्दा जी की याद आती है तो मुझे वे दिन याद याते हैं जब हम पहली बार गीर्दा जी के साथ पीएसआई के गेस्ट हाऊस में रहने का मौका मिला। मेरे साथ मेरे स्कूल के दौरान के सहपाठी अमित सावन भी था। गीर्दा जी ने कहा कि बबा तुम तो बाजार घूमने चले जाओ मेरा रात्री का कार्यक्रम आरम्भ होता है। खैर! यह बात 2003 की है जब पहली बार राज्य के लोग जलनीति के संबन्ध में लामबन्द हो रहे थे। हमने अतुल षर्माा के साथ मिलकर श्री सुरेषभाई के सहयोग से एक नाटक ''क्या नदी बिकी'' नाम से बनाया था। इसका सफल मंचन गीर्दाजी के गीतो के साथ राज्यभर में किया गया। इस कारण राज्य में पानी के सवाल को लेकर तो कही जल विद्युत परियोजनाओ को लेकर सवाल खड़े होने लगे। तो कभी पानी के निजीकरण को लेकर और राज्य की जल नीति को लेकर सवाल खड़े होने लग गये। इस आन्दोलन में गीर्दा का हमे संरक्षण ही नही बल्कि निर्देषन भी मिलता रहा।


2005 आते-आते राज्य के पर्यावरण कार्यकर्ताओं, सहित सामाजिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक व रंगकर्मी तथा अन्य चिन्तनषील लोगो ने राज्य की नदी घाटियों की पैदल यात्रा की। सभी नदी घाटियों के ''जल'' को साल 2007 में राम नगर में एकत्रित किया गया। वहां मौजूद हजारो की भीड़ में गीर्दा ने एक गीत से ऐसा ऐलान कर दिया कि राज्य सरकार को एक बार पानी के मसले पर सोचने के लिए विवष होना पड़ा। और साल 2008 को राज्य के नागरिको ने नदी बचाओ वर्श भी घोषित किया। उन्ही दिनों गीर्दा का -कोसी पर रचित गीत-
जोड़ आम बूबू सुणू छी


गदगदानी उं छी
रामनगर पुंजूं छी
पीनाथ बहियू च
रामनगर पौंच्यूछ ......
मेरी कोसी हरी गे कोसी।



एवं- 


चलो नदी तट वार चलो, 
चलो नदी तट पार चलो रे करो यात्रा नदियों की।


इसके अलावा उन्होन एक गीत ऐसा प्रसारित किया की जो आज भी प्राकृतिक संसाधनो के संरक्षण के लिए आन्दोलित कार्यकर्ताओ के साथ खड़ा है-
एक तरफ बर्बाद बस्तिया - एक तरफ हो तुम
एक तरफ डूबती कषितयां - एक तरफ हो तुम
एक तरफ सूखी नदियां - एक तरफ हो तुम
एक तरफ है प्यासी दुनियां - एक तरफ हो तुम


अजी वाह! क्या बात तुम्हारी-


सारा पानी चूस रहे हो 
नदी समन्दर लूट रहे हो
गंगा यमुना की छाती पर
कंकड़ पत्थर कूट रहे हो


गीर्दा जी तुम्हे सत् सत् प्रणाम! अगर हम आपकी विरासत को आगे बढा पायें यही सच्ची श्रद्धांजली होगी। माफ करना चार साल बाद मै लिखने की हिममत कर पा रहा हूं। लोग चार साल से लगातार लिखत कहते और याद करते रहे। नैनीताल समाचार सहित अन्य अखबारो, टीबी चैनलो में भी श्रृखलाबद्ध रूप से लिखा व प्रसारण किया गया। लिखा जा रहा है। परन्तु मै इतना असंवेदनषील हो गया कि चार साल बाद मेरी हिम्मत लिखने की हुई। हम आपके विचारो को आगे बढाने के कार्यो में उन लोगो के साथ हैं जो इस कार्य पर लगे है। पुनः आपको नमन्! यह षिकायत आप तक कैसे पंहुचे कि यहां की राज्य सरकार ऐसे लोगो के नाम पद्मश्री के लिए भेजती है जो सिर्फ नचाड़ व गीतांग है। वे नचाड़ व गीतांग की भी सम्पूर्ण परिभाशा तक नही जानते वे तो मात्र ऐसा काम कर रहे हैं कि-सुणी पाई बल अर् बेची खाई। दरअसल रचनात्मक साथियों को तो गीर्दा को तो पढना ही चाहिए।