सयानी है


||सयानी है||


ये कैसी राजधानी है,


ये कैसी राजधानी है|


हवा में जहर घुलता है,


औ जहरीला सा पानी है||


शरीफों की कहानी को यहाँ कोई नहीं सुनता,


यहाँ सबकी जुबानों पर दबंगों की कहानी है।


ये कैसी राजधानी है||


अगर जीना है तो सुन लो, यहाँ झुकना जरूरी है


सत्ता की य चौखट हैं, जो चमचों की दीवानी है।


ये कैसी राजधानी है||


कहाँ तो सांझ होते ही शहर में नीद होती थी,


कहाँ अब 'सांझ होती है, ये कहना बेईमानी  है|


ये कैसी राजधानी है||


शहर में  पेड़ लीची के बहुत सहमें हुए से हैं


सुना है एक बिल्डर को नई दुनिया बसानी है।


ये कैसी राजधानी है||


न चावल है  न चूना है, न बागों की बहारें हैं,


वो देहरादून तो गुम है, फकत रस्में निभानी हैं।


ये कैसी राजधानी है||


मुखौटों का शहर है ये, जरा बच कर निकलना तुम,


बुढापा बाल रंगता है तो ये कैसी जवानी है?


ये कैसी राजधानी है||


धरना है, प्रदर्शन है औ' रैली  है तो होने दो।


इन्हें खबरें छपानी हैं, उन्हें छुपानी हैं।


ये कैसी राजधानी है||


नदी नालों की  बाहों में विवशता  के घरौंदे  हैं,


गरीबी  गाँव से चलकर यहाँ  होती सयानी है।


ये कैसी राजधानी है||


नोट - यह कविता कापीराइट के अन्र्तगत है, प्रकाशन से पूर्व लेखक की संस्तुति अनिवार्य है