था लुटेरों का जहां गांव , वहीं रात हुई


|| था लुटेरों का जहां गांव , वहीं रात हुई||  
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उत्तराखंड में उत्तरकाशी तथा अन्यत्र 24 घण्टे के भीतर 25 से अधिक मनुष्यों के मरने अथवा लापता होने की सूचनाएं दारुण हैं । सुबह सुबह चार आंसू बहाने के उपरांत कुछ निवेदन करता हूँ । चाहें तो ध्यान दें । पहाड़ी नदी , गाड़ गधेरों के तट पर मकान कभी न बनाएं । पुराने लोग नहीं बनाते थे ।


छाला किनारा कु बासू , कुल कु नासू । नदी तट पर केवल घराट होते थे । वह भी नहर खैंच कर काफी दूर । नदी तटों पर मकान बनना कुछ दशक से प्रारम्भ हुए हैं । ये प्रायः होटल , ढाबे हैं । नदी तट पर कब्ज़ा कर बनाये गए हैं, ताकि अपनी गंदगी और मल मूत्र सीधे नदी में फेंक सकें । तुम जो अपना कबाड़ नदी किनारे फेंकते हो , बरसात में वही जगह जगह फंसता है , और जल प्लावन का हेतु बनता है ।


नदी कभी तुम्हे बहाने और डुबाने को तुम्हारे घर नहीं आती । तुम्हीं उसकी राह में आड़े आते हो। नदी तट पर मकान बनाना और रेल की रेल की पटरी पर मकान बनाना एक जैसा है । चपेट में अवश्य आओगे । नदी तटों को खुरच रहे खनन माफिया को यथा समय खदेडो । खुद भी नदी में खनन न करो ।
नदी के प्रस्रवण क्षेत्र ( कैचमेंट ) में वृक्ष पातन न करो। हमेशा पिछली आपदा याद रखो। अगले साल फिर वहीं पर और बड़ा ढांचा बना देते हो। आपदा राहत का पैसा मिलते ही सीमेंट सरिया खरीद कर फिर से सम्वेदन शील क्षेत्र में उधेड़ बुन करोगे ।
तुम्हारा हितैषी हूँ, इसलिये कड़वी बात बोलता। तुम्हारा विधायक यह सब नहीं कहेगा, क्योंकि आपदा उसके लिए एक निवेश है । वह ठेकेदार से भी पैसे खाता है, इंजीनियर से भी, और तुमसे भी। क्योंकि वोट देते वक्त तुम भी उससे पैसे खाते हो।


आपदा स्थल पर हो, तो मदद में आगे आओ। दो लोग हो तो दोनों सेल्फी लेने में न जुटो। एक सेल्फी लो, और एक मदद करो ।https://www.facebook.com/amita.nautiyal.50/videos/pcb.732545150537191/732544963870543/?type=3&theater