उन्हे उनका दर्द है और उनसे प्यार है


||उन्हे उनका दर्द है और उनसे प्यार है||


साल 2019 के 17 अगस्त की रात और 18 अगस्त की वह मनहूस सुबह मोरी ब्लाक के 20 गांवो के लिए आफत बनकर आई। प्राकृतिक आपदा का यह विभत्स चेहरा लोग कभी ना भूल पायेंगे। प्रकृति ने अपना विद्रुप चेहरा दिखाया, लोगो के दिलो में गहरा घाव छोड़ के चली गई। ऐसा घाव जो कभी भी ना भरने वाला है। किन्तु इस आपदा की घड़ी में जिन लोगो ने राहत में कंधा से कंधा मिलाकर राहत कार्य सम्पन्न किये उन्हे भी यहां के लोग कैसे भूल सकते है। कभी ना भूलने वाले जख्म और सदैव याद आने वाले मनुष्य इस आपदा में सामने रहे।


यहां हम जिक्र कर रहे हैं जिला अधिकारी उत्तरकाशी डा॰ अशीष चैहान का। जिनकी सर्तकता के कारण राहत कार्यो में तेजी आई है। यह भी सच है कि जिला अधिकारी उत्तरकाशी डा॰ आशीष चैहान को मोरीवासी ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण उत्तरकाशीवासी कभी नहीं भूल सकते। खैर यह आपदा की बात है। वैसे भी श्री चैहान जिले के विकास और जिले के दुख-दर्द में सक्रीय रहते है। उनकी ही सक्रीयता के कारण मोरी में आई आपदा के राहत कार्यो में तेजी आई है।



ज्ञात हो कि उत्तरकाशी जिले के मोरी ब्लाक में 20 से अधिक गांवों के लोग इस दौरान आपदा के शिकार हुए हैं। मोरी, आराकोट, टिकोची, माकुड़ी, मौण्डा, सनेल, दुचाणू आदि क्षेत्रों के कई लोग लापता हुए है कई लोग जान गंवा बैठे हैं। कईयो परिवार विस्थापन के कगार पर है। कनेक्टिविटी की कमी के कारण क्षेत्र में कष्टों का सामना करना कोई मजाल नही है। अतएव इसके मद्देनजर सरकारी तंत्र में कितनी जाहन है वह दिखाई दे रही है। मगर एक आदमी मजबूरी की बेड़ियों को तोड़कर तेजी से संकट में आये हजारों ग्रामीणों की मदद करने के लिए बचाव के तमाम प्रयासों को क्रियान्वित कर रहा है। आमतौर पर ऐसी स्थिति बावत तन्त्र में आदेश देने और प्रार्थना करने की गुंजाईश मात्र होती है। फलस्वरूप इसके इस आईएएस अधिकारी ने चार्ज लिया और ग्रामीणों की जान बचाने के लिए आपदा के क्षेत्र में जिले के तमाम अधिकारियों को मुस्तैद कर दिया। जी हां यही है उत्तरकाशी के जिला अधिकारी डा॰ आशीष चैहान।


उल्लेखनीय हो कि विनाशकारी बाढ़ ने जिले के लगभग 52 गावों को देश-दुनियां से अलग-थलग कर दिया। हालांकि श्री चैहान यह सुनिश्चित कर रहे हैं कि कोई भी आपदा प्रभावित राहत से छूट ना पाये। राहत शिविरों में काम कर रहे कार्यकर्ताओं और केंद्रीय बलों के साथ वे हर दिन मीलों पैदल चल रहे हैं। यही नहीं उन्होंने अपना तंबू भी प्रभावित क्षेत्रों में गाढ रखा है। यही कारण है कि लोगो का विश्वास सरकार की तरफ लौट रहा है।


बता दें कि श्री चैहान 2011 बैच के आईएएस अधिकारी है। उन्होंने 2017 में उत्तरकाशी जिले में पदभार संभाला। पिछले अनुभवो के अनुसार श्री चैहान ने राज्य में भूस्खलन, बाढ़ के दौरान लोगों के बचाव में उदाहरण पेश किया है। जब वे 2013 में एक परिवीक्षाधीन अधिकारी थे, उन दिनो भी बद्रीनाथ में यानि केदारनाथ त्रासदी के बाद उन्होंने बचाव प्रयासों का कार्यभार संभाला। 2014 में नैनीताल में एक संयुक्त मजिस्ट्रेट के रूप में, उन्होंने बलिया नाला आपदा के दौरान लोगों को बचाने के लिए एक नजीर राज्य में पेश की है। फिर 2015 में उन्होंने केदारनाथ में कर्नल अजय कोठियाल के साथ राहत आयुक्त के रूप में घाटी को सामान्य रूप से वापस लाने के लिए अद्भुत उदाहरण प्रस्तुत किये। 2017 में उन्होंने कैलाश मानसरोवर यात्रा के दौरान कई जिंदगियों को बचाया। गूंजी-मालपा मार्ग आपदा पर जब आपदा आई तत्काल वे पिथौरागढ़ में सीडीओ के पद पर कार्यरत थे।


इधर तमाम लोग डा॰ आशीष चैहान जिलाधिकारी उतरकाशी की चर्चा करते थकते नहीं है। उनके कार्ये की सराहना करते हैं। यहां जिले के लोगो को गर्व है कि उनके जिले व राज्य में एक ऐसा बहादुर अधिकारी है। कमसे कम उत्तराखंड के युवाओं को उनसे प्रेरणा लेनी चाहिए।


यहां यह उदाहरण काफी है कि जिलाधिकारी डा॰ आशीष चैहान खुद बेस कैम्प आराकोट में मौजूद रहते है। बेस कैम्प से ही प्रातः प्रभावित गांवों के लिए चरणवद्ध रुप से मजदूरों, पीआरडी जवानों के द्वारा रसद पहुचाई जा रही है। अभी हाल ही में यानि 24 अगस्त को दुचाणू, मौण्डा, बरनाली, डगोली के लिए मजदूरों के द्वारा प्रति परिवार को 10 -10 किलो रसद भेजी गई है। इसी तरह अन्य प्रभावित गांवों में भी रसद भेजी जा रही है। इस कार्य हेतु लगभग 300 कर्मचारी विभिन्न विभागो जैसे वन, लोनिवि, पीआरडी व स्थानीय मजदूर लगाएं गये है। 


एक तरफ श्री चैहान राहत सामग्री पर पैनी नजर रखे हुए है, वहीं उनकी चिन्ता सड़क मार्गों व पैदल रास्तों का पुनः निर्माण करवाने की है। जिसकी तैयार उन्होने युद्ध स्तर पर कर दी है। इस हेतु उन्होने अलग अलग टीमें गठित कर दी है। इन तमाम तैयारियो के बवजूद वे आपदा प्रभावित क्षेत्रो के भ्रमण पर निकलते हैं। वे बरनाली, डगोली, मौण्डा के आपदा प्रभावितो से मिले, उनकी समस्या को समझा तथा उन्होने वहां पुनः निर्माण कार्यों की मॉनिटरिंग भी की है। अर्थात यही कह सकते है कि उन्हे उनका (जनता) दर्द है और उनसे (जनता) प्यार है।