अचूक वार, निश्चित हार

||अचूक वार, निश्चित हार||



विषकन्या को लेकर अनेकों दन्त कथाऐं प्रचलित है। सिर्फ व सिर्फ लोगो ने विषकन्या को कथा और किस्सो में ही सुना है, देखा किसी ने नही। अपितु जब बात बन रही है तो कहीं न कहीं विषकन्या भी रही होगी। इसलिए वह कहानियों में आई। कल्पना कीजिए कि विषकन्या बहुत ही सुन्दर, सुडौल शरीर, पतली कमर, पांव और हाथ की बनावट ऐसी की मानो तरासा गया होगा। वैसे भी विषकन्या का एक पक्ष सुन्दरता का है जो बहुत ही सजीला है, मगर दूसरा पक्ष खूंखार है।


कालान्तर हो या आज जब से मनुष्य, प्राणी या जीव जन्तुओं ने आपसी संघर्ष को जीता है या हारा है, ऐसे वक्त में कहीं न कहीं मादा पक्ष को इस्तेमाल ही किया गया है। वह चाहे उसके अन्तरंग रिश्ते के लिए हो या स्पर्श मात्र से अपनी काबिलियत का बखान करने के लिए हो, पर वह सजीला पक्ष विषकन्या के पास ही था। इसके लालच में आकर युद्ध हारना लाजमी था। ऐसा आपने विषकन्या से जुड़ी कथा-कहानियों में सुना होगा। हालांकि मौजूदा तकनीकी युग में विषकन्या का होना और ना होना बहस ही खड़ी कर सकता है। सनद रहे कि तत्कालीन व्यवस्था में कोई बिरले ही विषकन्या या विषपुरूष होंगे जो सज-धज कर किसी को भी अपनी सुन्दरता पर आकर्षित करते होंगे। आज तो समाज में सजना-संवरना अनिवार्य हो गया है। इसलिए विषकन्या जैसी कोई स्थिति मनुष्य के पास नहीं रह गई है।



प्रसंग है कि विषकन्या आधी लड़की और आधी नागिन होती है। कोई कहता है कि विषकन्या के गले में सांपों के जैसी विष-ग्रंथियां होती हैं, और कोई कहता है कि बचपन से ही थोड़ी-थोड़ी मात्रा में विष का सेवन करने से विषकन्या बनी, आदि आदि। वैदिक साहित्य में विष कन्याओं का उल्लेख मिलता है। वैदिक ग्रंथों के अनुसार विषकन्या का प्रयोग तत्कालीन राजा अपने शत्रु को पराजय करने के लिए किया करते थे। ऐसा भी बताया जाता है कि इस रूपवती कन्या को बचपन से ही विष की अल्प मात्रा देकर बड़ा किया जाता था। विषैले वृक्ष तथा विषैले प्राणियों के संपर्क से उसको अभ्यस्त किया जाता था। उसको संगीत और नृत्य की भी शिक्षा दी जाती थी। इस तरह बड़े से बड़े राजा इस विषकन्या के आकर्षण के शिकार हुए हैं।


बारहवीं शताब्दी में रचित 'कथासरितसागर' में विषकन्या के अस्तिव का प्रमाण मिलता है। सातवीं सदी के नाटक 'मुद्राराक्षस' में भी विषकन्या का वर्णन है, 'शुभवाहुउत्तरी कथा' नामक संस्कृत ग्रंथ की राजकन्या कामसुंदरी भी एक विषकन्या ही थी। 16वीं सदी में गुजरात के सुल्तान महमूद शाह के बारे में एक यात्री भारथेमा लिखते है कि महमूद के पिता ने कम उम्र से ही उसे विष खिलाना शुरू कर दिया था, ताकि शत्रु उस पर विष का प्रयोग कर नुकसान न पहुंचा सके। वह कई तरह के विषों का सेवन करता था। वह पान का पीक किसी व्यक्ति के शरीर पर फेंक देता था तो उस व्यक्ति की मृत्यु सुनिश्चित ही हो जाती थी। एक अन्य यात्री वारवोसा लिखते है कि सुल्तान महमूद के साथ रहने वाली युवती की मृत्यु निश्चित थी। इतिहास में दूसरे विषपुरुष के रूप में नादिरशाह का नाम आता है। कहते हैं उसके श्वास में ही विष था। लेकिन यहाँ हम कह सकते हैं कि विषकन्याओं की तरह विषपुरुष इतने प्रसिद्ध नहीं हुए हैं।



गौरतलब हो कि हाल ही में खुलासा हुआ हैं कि बाबा राम रहीम भी अपने डेरे में विषकन्याओं को रखता था। इन विषकन्याओं के आकर्षण के आगोश में आकर वे अन्य लड़कियां बाबा राम-रहीम की शिकार हुई। कारण इसके लोगों की साधारण राय बन गई कि विषकन्या विशेष लडकी ही होती हैं जो अन्य महिलाओं तथा लड़कियों को बहला-फुसलाने का काम करती हैं। पुराने इतिहास 'मुद्राराक्षस' 'कल्किपुराण' तथा 'कथासरितसागर' जैसे ग्रंथों में विषकन्या का उल्लेख मिलता हैं।


राजा चन्द्रगुप्त मौर्य के शासनकाल में रचित महाग्रंथ 'मुद्राराक्षस' में लिखा गया था कि तत्कालीन राजा की आज्ञा पर नगर वधुएं ही लड़कियों को विषकन्या बनाती थी। कौटिल्य के अर्थशास्त्र ग्रंथ में भी एक ऐसा प्रसंग आता हैं, की उनके दुश्मन अमात्य राक्षस ने अपने छल से एक विषकन्या को उपहार स्वरुप चन्द्रगुप्त मौर्य को दिया। चाणक्य की सूझ-बूझ के कारण चन्द्रगुप्त की जान बच गई। कल्किपुराण में विषकन्याओं को कांधली कहा गया हैं। इस प्रकार से देखा जायें तो विषकन्याओं का इतिहास भारत में प्राचीनकाल से रहा हैं।


वर्तमान में विषकन्या तो है नहीं पर विवाह के उपरान्त जन्मकुण्डली के संयोग देखने पर ज्योतिषाचार्य विषकन्या का योग बताते हैं। यह भी अब तक कोई प्रमाण प्रस्तुत नहीं कर पाया। यदि जन्म के समय लड़की या लड़के की जन्मकुंडली में 'विषकन्या' या 'विषपुरुष का योग' बना हो तो विवाह के समय इस दोष की जांच-परख कर लेनी चाहिए। यदि ऐसा नहीं किया गया तो दाम्पत्य जीवन भविष्य में खतरे में पड़ सकता है। ज्योतिषाचार्य बताते हैं कि विवाह पूर्व भद्रा तिथियों द्वितीया सप्तमी एवं द्वादशी तिथियों में जन्म लेने वाली कन्याओं पर विचार करना चाहिए। किसी भी कन्या के जन्म के समय यदि रविवार का दिन हो, द्वितीया तिथि पड़ रही हो व आश्लेषा या शतभिषा नक्षत्र हों तो इन योगों के मध्य जन्म लेने वाली कन्या को ज्योतिष में 'विषकन्या योग' माना गया है। यदि जातिका की कुण्डली में विषकन्या योग के साथ ही गजकेसरी योग भी बन गया हो तो ऐसी दशा में विषकन्या योग का प्रभाव उसकी जिंदगी को प्रभावित नहीं करेगा।


कुलमिलाकर विषकन्या की कहानियां इस बात का प्रमाण देती है कि वह अति आकर्षक  रही होगी। उसकी सुन्दरता के मुरीद हर कोई बनना चाहता होगा। मगर वह इस चाह में हारता या मरता ही होगा। क्योंकि वह तो मनुष्य समाज में खास रूप से ही पैदा हुई है, या किसी उद्देश्य विशेष की पूर्ती के लिए उसे बनाया गया और अवसर आने पर अस्त्र के रूप में प्रयोग किया गया। इसलिए वह विषकन्या हो गई।