गाँव की यादें

||गाँव की यादें||


गाँव की यादें बुलाये मुझे, ।

घर आजा, घर आजा , पुकारे मुझे ।।

गाँव की यादें बुलाये मुझे।

 

वो बचपन का खेला ।

वो मिट्टी का ठेला।।

खेतों में जाकर, वो छिपना छिपाना।

वो तितली पकड़कर, उछलना मचलना ।।

 

वो कपड़े की गुड़िया सुलाए मुझे। घर आजा घर आजा, पुकारे मुझे।।

 

घर से मैं निकला हूँ, पैसे कमाने।

दर दर भटकता मैं, दाना जुटाने।।

 

मेहनत कि रोजी , मुझे मिल गई जब।

बापू की बातें , मेरी सच हुई अब।।

 

मगर मुझको अब भी, ना भाये कोई घर।

वो कंच्चै कि खन खन, बुलाये मुझे।।

 

घर आजा घर आजा, पुकारे मुझे।

 

मैरे दिन का सूरज, ढलता है जब भी।

भूखी रहूँ मैं, ना जाऊँ कहीं भी।।

 

वो चिड़ियों की चूं चूं, वो पेड़ों की सर सर।

मुझे याद आती है माई की गोदी।।

 

मैरी रात होती है, जब भी कहीं पर।

बाँधे रखे मुझको, वो ममता का आँचल।।

 

वो धारे का पानी, खिली पीली सरसों।

वो बाबा की उंगली, सताए मुझे।।

 

घर आजा