||मंहगा हुआ आलू-प्याज, क्या यही है रामराज||
|| ऐसे ही बगडती है देश की आर्थिक व्यवस्था||
आजकल शहरों में लोगो को सब्जी खाने के लाले पड़ गए है। सबसे सस्ती सब्जी आलू और प्याज के भाव आसमान छू रहे है। इस परिस्थिति में भी संकट आम और न्यूनतम आय वाले परिवारो के ऊपर आन पडी है। तात्पर्य यह है कि आजादी के बाद वाली से लेकर अब तक की सभी सरकारे आम लोगो के बजट पर डाका ही डाल रही है।
प्याज 60 से 80 रुपये किलो, आलू 30 से 60 रुपये किलो हो चुका है। कहने का आशय यह है कि यदि उत्पादन की बिक्री में, और भाव में वृद्धि हुई है तो, भी आम नागरिक की आर्थिक स्थिति में कोई सुधार दिखाई नही दे रहा है। सरकारे हैं जो यह बताने में मशगूल है कि वे टैक्स चोरी नही होने देगी, बगैरह बगैरह।
इस बावत लोगो का सवाल लाजमी है कि अब तो छोटे किसान से लेकर बड़े किसान व उधोगो को टैक्स वसूलने से सरकार नही छोड़ रही है। अर्थात बदले में महंगाई से लेकर अन्य मूलभूत सुविधाएं बेपटरी हो गई है। आखिर सरकार किसके और कहां के लिए सुविधा मुहैया करा रही है, जिसका जबाव आना अभी बाकी है।
उल्लेखनीय यह है कि यदि प्याज का भाव बढ़ गया तो, प्याज पैदा करने वाले किसानो की आर्थिक स्थिति में कोई सुधार नही दिख रहा है। आलू के भाव जरूर बढ़े, मगर आलू पैदा करने वाले किसानो की आर्थिक स्थिति जस की तस बनी हुई है। प्रहसन्न यह है कि उत्पादन बढ़ रहा है, उत्पादों के भाव बढ़ रहे है, मगर खाद्य पदार्थो का उत्पादन करने वाले किसानों की हालात यथावत है। परिणाम स्वरूप आखिर देश की आर्थिक व्यवस्था को कौन बिगाड़ रहा है, यही चिंतनीय विषय है।