मेधा पाटकर फिर हड़ताल पर


||मेधा पाटकर फिर हड़ताल पर||


नर्मदा आन्दोलन की प्रमुख और वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर फिर अपवास पर बैठ गई है। उनकी मांग है कि सरदार सरोवर बांध के हजारों विस्थापितांे के पुनर्वास के लिये मध्यप्रदेश सरकार कड़े कदम उठाये। इसके साथ ही संपूर्ण पुनर्वास तक सरदार सरोवर बांध का जलस्तर 122 मीटर तक ही रहे। नर्मदा घाटी में मेधा पाटकर प्रभावित गांव की 24 महिलाओं के साथ अनिश्चितकालीन उपवास पर बैठ गई है। इधर नर्मदा आन्दोलन से जुड़े राष्ट्रीय आन्दोलनो का समन्वयक संगठन एनएपीएम ने मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री मकमलनाथ को इस बावत एक पत्र भी प्रेषित किया है।


ज्ञात हो कि नर्मदा घाटी के सरदार सरोवर बांध के कारण आज भी हजारों विस्थापित परिवार गांव-गांव में अमानवीय रूप से सरदार सरोवर बांध के कारण डूबने का सामना कर रहे है। इस दौरान अब तक निमाड़ और आदिवासी क्षेत्र के तीन गरीब किसानों की मृत्यु भी बांध में डूबने के कारण हो चुकी है। जलाशय में 139 मी0 तक पानी भरने का विरोध सरकार द्वारा भी किया गया था, फिर भी गुजरात और केंद्र शासन से ही जुड़े नर्मदा नियंत्रण प्राधिकरण ने ना तो विस्थापितों के पुनर्वास की बात कही, और ना ही पर्यावरणीय क्षतिपूर्ति की परवाह की है यहां तक कि कोई पुख्ता रिपोर्ट अथवा शपथ पत्र भी पेश नहीं किये गये है। 


गौरतलब हो कि हजारों परिवारों का सम्पूर्ण पुनर्वास भी मध्य प्रदेश में अधूरा है, पुनर्वास स्थलों पर कानूनन सुविधाएँ नही है। ऐसे में विस्थापित अपने मूल गाँव में खेती, आजीविका डूबते देख संघर्ष कर रहे है। बता दें कि मई के अन्तिम सप्ताह में मध्यप्रदेश सरकार के मुख्य सचिव द्वारा नर्मदा नियंत्रण प्राधिकरण को भेजे गये एक पत्र के अनुसार 76 गांवों में 6000 परिवार डूब क्षेत्र में निवासरत है। 8500 अर्जियां तथा 2952 खेती या 60 लाख की पात्रता के लिए अर्जियाँ लंबित है।  



इधर नर्मदा बचाओ आंदोलन के अनुसार 6000 परिवार और 76 गाँव ही नहीं, अपितु डूब क्षेत्र में लगभग 32000 परिवार आज भी निवासरत है जो सरदार सरोवर बांध के खतरे की जद में आते है। बताया जा रहा है कि इन गांवो में विकल्प के कोई साधन नहीं है। इस डूब क्षेत्र में सर्वाधिक वे लोग हैं जो दैनिक श्रमिक भोगी है, जैसे छोटे उद्योग, कारीगरी, केवट, कुम्हार आदि। यदि सरदार सरोवर बांध से इन्हे खतरा बढ जाता है तो वे विकल्प के तौर पर खुद ही आत्म हत्या करना लाजमी समझते है? नर्मदा बचाओ आन्दोलन के लोगो का कहना है कि इन समस्याओ पर पुर्नवास का कार्य बहुत धीमी गति से आगे बढ़ा है। क्योंकि पिछले 15 सालों में काफी गड़बड़ी, धांधली, झूठे रिपोर्ट और भ्रष्टाचार सामने आये है। यहां तक कि पूर्व शासन से सर्वोच्च या उच्च अदालत में प्रस्तुत याचिकाएं वापस करने के आश्वासनों की पूर्ति आज तक नहीं हुई है। अर्थात किसी भी हालत में सरदार सरोवर बांध में 122 मीटर से अधिक पानी नहीं भरा जाना चाहिए।
नर्मदा बचाओ आन्दोलन ने मुख्यमंत्री को प्रेषित पत्र में कहा है कि उन्होने अपने चुनाव घोषणा पत्र मे अपने को बांध प्रभावितो का हिमायती बताया है। यहां तक कि उन्होने प्रत्यक्ष रूप से विस्थापितों के साथ खड़े होकर भी समर्थन दिया था। जबकि मध्य प्रदेश में 1996 में व 1978 के निमाड़ बचाओ आंदोलन के साथ सर्वदलीय सहमति भी इस मुद्दे पर हो चुकी है कि बांध बनने से पूर्व प्रभावितो को व्यवस्थित पुर्नवास और विस्थापित किया जायेगा। 


उल्लेखनीय हो कि 34 साल के अहिंसक संघर्ष की सीमा पर जाकर नर्मदा घाटी में मेधा पाटकर व प्रभावित गांव की 24 महिलाओं का अनिश्चितकालीन उपवास आरम्भ हो गया है। आन्दोलनकारियो का कहना है कि नर्मदा ट्रिब्यूनल और सर्वोच्च अदालत के फैसलों के तहत डूब क्षेत्र के लोगो का पहले सम्पूर्ण पुनर्वास हो, यह सुनिश्चित करना मध्यप्रदेश सरकार की कानूनी जिम्मेदारी है।