|| प्रकृति का बदलाव ||

|| प्रकृति का बदलाव ||



यदि प्रकृति का रूख बदल जाए,


 पुरूषों को कोख मिल जाए।


       सोचो कितना कुछ बदलेगा,


       कितना कुछ संभलेगा।


हर कोई भयभीत होगा, करने से पूर्व अत्याचार।


प्रताडना का अंत होगा, जन्मेगा इक नया विचार।


           तब ना कोई बेटी,


          कोख में ही मारी जायेगी।


          कोई बहू बांझ कहकर,


         न निकाली जायेगी।


दहेज की समस्या, बलात्कार, पुत्र की चाह,


भ्रूण हत्या और नारी होने की आह।


        दूर होगी समाज की हर बीमारी,


        सामाजिक प्रतिष्ठा में,


        होगी दोनों की भागीदारी।


बेटी और बेटे का फर्क मिट जायेगा,


गुनाह से पूर्व ,


मर्यादा का पाठ याद आयेगा।


क्या कभी ऐसा हो पायेगा ?


        विचारणीय प्रश्न,


        जिसका उत्तर कठिन ,


        किन्तु असंभव नहीं।


केवल विचारों को बदलने की आवश्यकता,


 ताकि बनी रही प्रकृति की सत्ता।


सुविचार ,मर्यादा, संस्कृति, संस्कार,


अपने बेटों को भी दे,ये नैसर्गिक उपहार।


यह कविता काॅपीराइट के अंतर्गत आती है। कृपया प्रकाशन से पूर्व लेखक की संस्तुति अनिवार्य है।