वन कानून को नहीं पचा पा रही सरकार


|| वन कानून को नहीं पचा पा रही सरकार|| 


राज्य की जनता चाहती है कि दैनिक उपयोग की चीजे जो वनो से मिलती है वे बिना कानून के उन्हे मिल जानी चाहिए। यदि प्राकृतिक संसाधनो का दोहन करके कोई विकास का काम किया जाता है तो यथा स्थान के ग्रामीणो की स्वीकृति होनी चाहिए। ऐसा अमूमन होता नहीं है कारण इसके सरकार और जनता के बीच अविश्वास की खाई बढती जा रही है। साथ ही कई ऐसी योजनाऐं हैं जो लोगो को विश्वास में लिए बिना लम्बित पड़ी हैं।


हाल ही में मुख्यमंत्री त्रिवेन्द सिंह रावत ने सचिवालय में विभिन्न विभागो की समीक्षा बैठक में इशारा किया कि वन कानून के कारण विभिन्न परियोजनाओं के लिए भूमि स्थानान्तरण के 546 मामले लम्बित पड़े है। उनका मानना था कि राज्य में 71 प्रतिशत क्षेत्रफल में वन है। लिहाजा विकास के कामो बावत राज्य में वन कानून को शिथिल कर देना चाहिए। वे इस बावत केन्द्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्री डाॅ. हर्षवर्धन से मुलाकात कर चुके है। उन्होंने बताया कि भविष्य में वन कानून के कारण विकास के कार्यो को रोका नहीं जायेगा। जबकि सरकारी सूचनाओं के आधार पर राज्य बनने के बाद वनभूमि स्थानान्तरण 3691 मामलो में से 42479.47 हेक्टेयर वन भूमि विभिन्न योजनाओं के लिए स्थानान्तरण हो चुकी है। मौजूदा समय में विकास कार्यो बावत वन भूमि स्थानान्तरण हेतु लोनिवि के 270, एनएचएआई के 14, पीएमजीएसवाई के 169, रोड़ सेक्टर के 07, पेयजल के 22, खनन का 01, ऊर्जानिगम के 02, ट्रांसमिशन लाईन के 05 और 56 अन्य मामले लम्बित है।


सरकारी स्तर के तर्क  
उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने केन्द्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्री डाॅ. हर्षवर्धन से मांग की है कि प्रदेश में वन भूमि हस्तांतरण तथा क्षतिपूर्ति सम्बंधी प्रावधानों में सरलीकरण, डिग्रेडेड फोरेस्ट लैण्ड ही क्षतिपूर्ति वृक्षारोपण के लिये उपलब्ध कराये जाने, भागीरथी इको सेंसेटिव जोन से सम्बंधित अधिसूचना के प्राविधानों में संशोधन किये जाने, केम्पा के प्राविधानों में सरलीकरण, 1000 मीटर से अधिक ऊचाई वाले क्षेत्रों में पेड़ कटान की अनुमति तथा जंगली सूअर से मानव एवं कृषि की रक्षा हेतु जंगली सूअरो को मारने की अनुमति दिये जाने की स्वीकृति राज्य सरकार को दी जानी चाहिए। इसके अतिरिक्त उन्होने वन अधिनियम के नियमों से राज्य में विकास परियोजनाओं में आ रही बाधाओं, प्रदेश के अन्तर्गत नियोजित विकास में सहयोग, बेहतर वन प्रबन्धन तथा मानव एवं कृषि को जंगली पशुओं से क्षति की रोकथाम हेतु भी समुचित उपाय किये जाने की आवश्यकता पर एक प्रस्ताव केन्द्रीय वन मंत्री को दिया है। इस बावत मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने तर्क दिया कि प्रदेश का लगभग 71 प्रतिशत भाग वनाच्छादित होने के कारण विकास परियोजनाओं में न्यून से अधिक मात्रा में वन भूमि की आवश्यकता होती है। परन्तु वन भूमि हस्तांतरण की प्रचलित प्रक्रियाओं को पूर्ण करने में काफी समय लगने से विकास परियोजनाओं की गति धीमी हो जाती है। वन भूमि हस्तान्तरण तथा क्षतिपूर्ति वृक्षारोपण सम्बंधी प्राविधानों में सरलीकरण की भी आवश्यकता बताई है। उन्होंने बताया कि भारत सरकार द्वारा पूर्व में एक हेक्टयर तक वन भूमि हस्तान्तरण के कतिपय प्रकरणों में स्वीकृति निर्गत करने हेतु राज्य सरकार को अधिकृत किया गया था जिसकी अवधि समाप्त हो गयी है। वर्ष 2013 की आपदा के उपरान्त भारत सरकार द्वारा आपदा प्रभावित जनपदों मंे पांच हेक्टेयर तक के प्रकरणों में स्वीकृति प्रदान करने हेतु राज्य सरकार को अधिकृति किया गया था इसकी भी अवधि 2016 में समाप्त हो चुकी है इसके विस्तारीकरण हेतु राज्य सरकार के प्रस्ताव को स्वीकृति प्रदान की जाय। मुख्यमंत्री श्री रावत ने कहा कि आपदा प्रभावित क्षेत्रों में पुनर्निर्माण कार्य अभी भी अवशेष हैं और चारधाम आलवैदर रोड, पी.एम.जी.एस.वाई., ग्रामीण विद्युतीकरण तथा नमामि गंगे आदि परियोजनाओं के लिये वन भूमि हस्तान्तरण के लिए शीघ्र निर्णय की आवश्यकता है। 


सड़क विकास परियोजना
इसी प्रकार भारत सरकार बी0आर0ओ0 की सड़क निर्माण परियोजनाओं एवं केन्द्र सरकार/केन्द्रीय सार्वजनिक उपक्रमों की परियोजनाओं के लिए क्षतिपूर्ति वृक्षारोपण डिग्रेडेड फोरेस्ट लैण्ड पर किये जाने की अनुमति प्रदान की जानी चाहिए। पी.एम.जी.एस.वाई. की सड़क निर्माण परियोजनााअें के साथ-साथ राज्य सरकार की समस्त परियोजनाओं के निमित्त क्षतिपूर्ति वृक्षारोपण हेतु दोगुनी मात्रा में सिविल भूमि की अनिवार्यता की गयी है। मानकों में यह भिन्नता औचित्यपूर्ण है। उन्होने बताया कि प्रदेश का 71 प्रतिशत भूभाग वनाच्छादित होने, शेष अन्य सिविल भूमि में भी अधिकांश भूमि दुर्गम व पथरीली होने के कारण वनीकरण न होने, काफी भूमि आबादी से आच्छादित एवं कृषि/बागवानी कार्यों के निमित्त आवश्यक होने तथा कुल वन भूमि में से भी लगभ 26 प्रतिशत डिग्रेडेड फोरेस्ट होने के कारण ऐसी भूमि में भी अतिरिक्त वनीकरण की अत्यन्त आवश्यकता है। इसके अलावा मुख्यमंत्री श्री रावत ने केन्द्रीय वन मंत्री के समक्ष यह प्रस्ताव रखा कि भारत सरकार द्वारा अन्तराष्ट्रीय सीमा क्षेत्र में लाइन आफ एक्चुअल कन्ट्रोल से 100 कि.मी. एरियल डिस्टेंस बी.आर.ओ. तथा आई0टी0बी0पी0 के लिये दो लेने मार्ग निर्माण की योजनाओं के सम्बंध में वन भूमि हस्तांतरण के सभी प्रकरणों में अनुमति देने हेतु राज्य सरकार को अधिकृत किया गया है किन्तु भारत सरकार के निर्देशों में उक्त व्यवस्था केवल देश के पूर्वी एवं पश्चिमी सीमा के लिये अनुमन्य किया गया है। अतः इन निर्देशों पर पुनर्विचार कर चीन नेपाल सीमा पर स्थित उत्तराखण्ड जैसे उत्तर पूर्वी सीमा क्षेत्रों के लिये भी समान व्यवस्था लागू किया जाना आवश्यक है, चूंकि उत्तराखण्ड का अधिकांश क्षेत्र अन्तराष्ट्रीय सीमा से जुडा है। सीमा क्षेत्र में 100 कि0मी  एरियल डिस्टेंस में पडने वाली समस्त सड़क परियोजनाओं को वन भूमि हस्तांतरण के लिये राज्य सरकार को अधिकृत किया जाय। 


पारिस्थितिकीय वन विकास क्षेत्र
मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने केन्द्रीय वन मंत्री डाॅ. हर्षवर्धन से भागीरथी ईको सेंसटिव जोन से सम्बन्धित अधिसूचना मेें पुनर्विचार अथवा अधिसूचना के प्राविधानों में संशोधन करने का भी अनुरोध किया। भारत सरकार द्वारा जनपद उत्तरकाशी के अन्तर्गत अन्तर्राष्ट्रीय सीमा से लगे गौमुख से उत्तरकाशी तक के 135 किमी लम्बाई के क्षेत्र में मार्ग के दोनों ओर 4,179.59 वर्ग किमी. क्षेत्र को 'भागीरथी प्रास्थितिकी संदेनशील क्षेत्र घोषित किया गया है। इस क्षेत्र के अन्तर्गत 98 प्रतिशत क्षेत्र आरक्षित वन क्षेत्र/संरक्षित क्षेत्र होने तथा मात्र दो प्रतिशत क्षेत्र ही कृषि एवं आवासीय क्षेत्र होने के दृष्टिगत ईको सेंसिटिव जोन सम्बन्धी अधिसूचना में निहित प्राविधानों के अनुसार भू-उपयोग परिवर्तन, पहाड़ी ढ़लानों पर निर्माण, हाईड्रोइलैक्ट्रिक प्रोजेक्ट की स्थापना एवं खनन आदि प्रतिबन्धित होने के कारण इस क्षेत्र के अन्तर्गत सामरिक महत्व के मार्गों सहित चारधाम आॅल वैदर रोड जैसी महत्वाकांक्षी परियोजना के लिए भी भूमि की व्यवस्था कर पाना अथवा स्थानीय लोगों की मूलभूत आवश्यकता से सम्बन्धित अन्य विकास योजनाओं को क्रियान्वित कर पाना कठिन हो गया है। अन्तर्राष्ट्रीय सीमावर्ती क्षेत्रों में पलायन की प्रवृत्ति को रोकने तथा आन्तरिक सुरक्षा  की  दृष्टि  से भी महत्वपूर्ण परियोजनाओं  के निर्माण की सुगमता हेतु ईको सेंसिटिव जोन की अधिसूचना पर पुनर्विचार आवश्यक है। उन्होंने मांग कि है कि जोनल मास्टर प्लान के अन्तर्गत उत्तराखण्ड राज्य के लिए भी भारत सरकार द्वारा उसी प्रकार शिथिलीकरण स्वीकृत किया जाना आवश्यक है जैसा कि महाराष्ट्र ;वैस्टर्न घाट ईको सेंसिटिव जोनद्ध एवं हिमांचल प्रदेश के लिए ईको सेंसिटिव जोन के सम्बन्ध में दिया गया है। 


वन विकास जैसी परियोजना
कैम्पा परियोजनाके प्राविधानों में सरलीकरण हो। इस पर मुख्यमंत्री श्री रावत ने केन्द्रीय वन मंत्री को तर्क दिया कि उत्तराखण्ड जैसे हिमालयी राज्य जहाँ 71 प्रतिशत से अधिक भू-भाग पर वन हैं। जिसका पर्यावरणीय लाभ पूरे देश व विश्व को मिलता है, को अपनी वन सम्पदा के संरक्षण एवं संवर्द्धन की पूर्ति हेतु कैम्पा के एन.पी.वी. मद में अतिरिक्त सहायता का प्राविधान रखे जाने की आवश्यकता है। वर्ष 2017-18 की अनुमोदित वार्षिक कार्ययोजना 192.35 करोड़ के सापेक्ष भारत सरकार द्वारा 96.00 करोड़ की धनराशि अवमुक्त की गई है जिसमें उनके द्वारा विशिष्ट मदों में ही अवमुक्त धनराशि को व्यय किए जाने की शर्तें अधिरोपित की गई हैं। वन सुरक्षा सुदृढ़ीकरण, मृदा एवं जल संरक्षण कार्य, वनाग्नि सुरक्षा एवं प्रबंधन, मानव वन्यजीव संघर्ष रोकथाम, वन एवं वन्यजीव शोध, मानव संसाधन विकास, इत्यादि महत्वपूर्ण गतिविधियों के अंतर्गत भी कैम्पा के अधीन व्यय किए जाने की अनुमति राज्य सरकार की हो।


व्यवसायिक वन कटान
मुख्यमंत्री श्री रावत ने राज्य के 1000 मीटर से अधिक ऊँचाई के क्षेत्रों में पेड़ कटान की अनुमति दिये जाने का भी अनुरोध केन्द्रीय वन मंत्री डाॅ. हर्षवर्धन से कर डाला। उनका तर्क है कि प्रदेश में चीड़ वनों के स्वास्थ्य एवं उत्पादकता में गिरावट के साथ प्रौढ़ चीड़ वृक्षों से अत्यधिक मात्रा में लगातार पिरूल गिरने तथा फायर लाइनों पर चीड़ के प्रौढ़ वृक्ष आ जाने से वनों में अग्नि दुर्घटनाऐं बढ रही है। छत्र (बंदवचल) न खुलने के कारण चीड़ वनों में प्राकृतिक पुनरोत्पादन प्रभावित हो रहा है। चीड़ वृक्ष पड़ोस के अच्छे प्राकृतिक बांज वनों में अतिक्रमण कर रहे हैं, जिससे बांज वनों की गुणवत्ता एवं पर्यावरणीय सेवाएं प्रभावित हो रही हैं। चीड़ वन बगल के खुले कृषि भूमि में भी अतिक्रमण कर रहे हैं। इनका पातन न होने के कारण राजस्व में कमी आ रही है। अतः 1000 मीटर से ऊपर स्थित प्रौढ़ चीड़ वृक्षों को काटने की अनुमति प्रदान की जाय। उन्होंने मांग की है कि जंगली सुअर से मानव एवं कृषि की रक्षा हेतु जंगली सुअरों को मारने की   अनुमति दी जाये। उत्तराखण्ड के समस्त ग्रामीण क्षेत्रों में जंगली सुअरों द्वारा खेती को अत्यधिक नुकसान पहुंचाया जा रहा है। खेती में हो रहा नुकसान पर्वतीय क्षेत्रों से लोगों के पलायन का एक प्रमुख कारण बन रहा है।


वन संरक्षण के प्रति लोक आस्था
चिपको आन्दोलन के बाद सरकार ने निर्णय लिया था कि 1000मी॰ की ऊंचाई पर वनो का व्यवसायिक दोहन नहीं होना चाहिए। क्योंकि ऊंचाई के वन जैवविविधता के भण्डार है जो हजारो सालो में पुर्नजीवित होते हैं। यहीं नही ये ऊंचाई के वन पर्यावरणीय सन्तुलन का काम भी करते है। ऊंचाई के वनो के कारण निचले स्थानो पर बसी बसासत को पानी, जलाऊन लकड़ी व पशुओं के लिए चारा-ईधन की आपूर्ती स्वस्फूर्त होती है। लोगो का अब यह आरोप है कि जितनी भी जल विद्युत परियोजनाऐं बन रही है उनकी रिर्पोटें कुछ कहती है और निर्माण में वे और ही कुछ करवा देती है। इतनाभर ही नहीं निर्माणाधीन और प्रस्तावित ऐसी परियोजनाऐं यह बताने के लिए मुखर जाती है कि जितना वे प्राकृतिक संसाधनो का विदोहन करेंगे उसकी प्रतिपूर्ती वे कैसे करेंगे और विस्थापित तथा पुनर्वास की उनकी क्या योजना है? जिसकी जबावदेही निर्माणाधीन कम्पनीयां सरकारो के सिर फोड़ देती है। राज्य के आम लोगो का यह भी सवाल खड़ा है कि राज्य बनने के बाद वन दोहन से राज्य को कितना राजस्व प्राप्त हुआ है। इसका जबाव तो सरकार नहीं दे पा रही है परन्तु राज्य का निजाम वनदोहन की स्वीकृति के लिए केन्द्र का दरवाजा खटखटाकर आ गया है।


सवाल जनता का जबाव सरकार का
कुलमिलाकर राज्य सरकारो की निर्भरता केन्द्र सरकार पर ही रहती है। आजतक ऐसा उदाहरण नहीं आया कि राज्य सरकार ने खुद के संसाधनो से फलां विकास का काम जनता को समर्पित किया हो। कुछ माह पूर्व राज्य के मुख्यमंत्री ने केन्द्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्री डाॅ. हर्षवर्धन से यह मांग कर डाली कि राज्य को 1000मी॰ की ऊंचाई पर वन कटान की स्वीकृति दी जाये। प्रश्न यह है कि यदि उत्तराखण्ड में जंगल बढ गये हैं तो हिमरेखा पीछे क्यों खिसक रही है? यदि जंगल बढ रहे हैं तो हर वर्ष वृक्षारोपण क्यों करवाया जा रहा है? सरकार को वन कटान की इजाजत चाहिए, पर जो कम्पनीयां बांध बना रही है उन्हे वन कटान की स्वीकृति किसकी संस्तुति पर मिली है? वन संपदा से संबधित कुछ अनसुलझे सवाल हैं जिसका जबाव सिर्फ सरकार के पास ही हैं।