औषधीय खेती - 10 - गुलाब -Rose

(द्वारा -  वर्धमान महावीर खुला विश्वविद्यालय, कोटा
किताब - जलग्रहण विकास-क्रियान्यवन चरण, अध्याय - 10)
सहयोग और स्रोत - इण्डिया वाटर पोटर्ल-


||(गुलाब -Rose ) वानस्पतिक नाम: (Rose Species)||


गुलाब के पुष्प का जगत में एक विशिष्ट स्थान है, इसलिये इसे फूलों का राजा कहा जाता है। इसे सौन्दर्य का प्रतीक समझा जाता है और आदिकाल से ही विश्वभर के उद्यानों में उगाया जाता रहा है। सौन्दर्य के अलावा गुलाब का औद्योगिक महत्व भी है। इससे प्राप्त इत्र, गुलकन्द, गुलाब जल व शरबत का उपयोग व्यापक रूप से किया जाता है। राजस्थान में हल्दीघाटी (खमनोर,) पुष्कर व जयपुर क्षेत्र में क्रमशः चैती गुलाब, बारहमासी गुलाब, लाल गुलाब (गंगानगरी) व्यावसायिक स्तर पर उगाया जाता है। व्यवसायिक दृष्टि से देशी गुलाब एक महत्वपूर्ण पौधा है। इससे आय का मुख्य स्त्रोत इत्र, गुलकन्द, गुलाब जल और कटेफूल से सम्बन्धित उद्योग भी काफी फल-फूल रहे है। गुलाब की मुख्यतः चार सुगन्धित प्रजातियाँ हैं, जो कि तेल निर्माण के उद्देश्य से लगाई जाती है। ये प्रजातियाँ हैं-



  1. रोजा सेन्टीफोलिया, 2. रोजा मास्केटा, 3. रोजा बोरबोनियाना 4. रोजा डेमस्क। उदयपुर तथा अजमेर क्षेत्र में रोजा सेन्टीफोलिया (चैती गुलाब) लगाया जाता है।


भूमि एवं जलवायु


गुलाब के लिए बालुई दोमट से लेकर चिकनी दोमट भूमि, जिसका पी.एच.मान 6 से 8.5 हो उपयुक्त होता है। भूमि में जल का निकास अच्छा होना चाहिए। फूलों की अच्छी मात्रा के लिए प्रचुर मात्रा में धूप व आद्र्रता वाली जलवायु उपयुक्त होती है।


नर्सरी लगाना


गुलाब की खेती के लिए एक वर्ष पुरानी टहनियों से 20-25 से.मी. लम्बे व 1-1.5 से.मी. मोटे दुकड़े कटाई-छुटाई के समय लेते हैं। हर एक कटिंग या टुकड़े में 3-4 आंख का होना आवश्यक है। इन्हें तैयार नर्सरी के 20 5 मीटर क्षेत्रफल में उत्तर की ओर तिरछा लगाया जाता है। इस तरह एक. हैक्टेयर क्षेत्रफल के लिए 10,000 कलमें 1 मीटर 1 मीटर दूरी पर लगाई जाती है। ये पौधें नर्सरी में कलम में जड़ निकालने के लिए जमीन में दबाने से पहले आई.बी.ए (200 पी.पी.एम.) नामक रसायन से उपचारित करें। इस दौरान नर्सरी की उचित देखभाल करनी चाहिए।


पौध रोपण


तैयार खेत में 50 50 50 सेमी. के खड्डे खोद ले। इन गड्ढों की लाइन से लाइन दूरी 1.5 मीटर तथा पौधें से पौधें की दूरी 1 मीटर रखनी चाहिए। प्रत्येक गड्ढे में 5 कि.ग्रा. गोबर की खाद, 150 ग्राम सुपर फाॅस्फेट, 50 ग्राम जिंक तथा 100 ग्राम पोटाश की मात्रा दें। इसके अतिरिक्त दीमक उपचार नियन्त्रण हेतु 4 प्रतिशत एण्डोसल्फान चूर्ण 50-60 ग्राम प्रति गड्ढे दे। पौध लगाने का उपयुक्त समय अक्टूबर से दिसम्बर का होता है। रोपण के तुरन्त बाद सिंचाई करना अति आवश्यक है।


खाद एवं उर्वरक


फूल का उत्पादन बढ़ाने हेतु 8-10 टन प्रति हैक्टेयर सड़ी गोबर की खाद प्रतिवर्ष देनी चाहिए। इसके उपरान्त 200 कि.ग्रा. नत्रजन प्रति हैक्टेयर के हिसाब से अक्टूबर तथा जनवरी में दो भागों में बांट कर दें। यदि सूक्ष्म तत्वों की आवश्यकता हो तो अवश्य देना चाहिए। जब कलियां बनना आरम्भ हो जाये तो इसमें यूरिया 25 ग्राम, 25 ग्राम अमोनिया सल्फेट, 20 ग्राम पोटेशियम सल्फेट के मिश्रण की 25 ग्राम को 10 से 12 लीटर पानी में घोल कर 10 से 15 दिन के अन्तराल पर 2-3 बार छिड़काव कर सकते है। इसके सूक्ष्म तत्वों का भी प्रयोग किया जा सकता है। इसमें खासतौर पर मैग्नीज सल्फेट, आयरन (लोहा), बोरेक्स तथा जिंक सल्फेट अवश्य हों।


सिंचाई


साधारणतया पूरे वर्ष में 12 सिंचाई की आवश्यकता होती है। चैती तथा गंगानगर रेड गुलाब में पौधों की कटाई-छँटाई से जून माह के अन्त तक हर 15 दिन के अन्तर पर सिंचाई की जानी चाहिए।


कटाई-छँटाई


पौध की कटाई-छँटाई रोपण के दो वर्ष बाद की जाती है। इसका उपयुक्त समय दिसम्बर मध्य से जनवरी मध्य तक माना जाता है। भूमि से 50 से.मी. ऊँचाई पर इसको काटा जाता है। कटाई के 70-90 दिन बाद फूल आने शुरू हो जाते हैं।


निराई-गुडाई


कटाई-छंटाई के बाद दिसम्बर से फरवरी तक 2-3 बार गुड़ाई करने से फूलने वाली शाखाएं अधिक निकलती है तथा उचित आकार लेती है। इससे कलिका अधिक तथा स्वस्थ बनती है। इसके अतिरिक्त गुलाब की फसल को खरपतवार से मुक्त रखना चाहिए। वर्ष में 4-5 बार निराई करनी चाहिए।


काईनेटिन का प्रयोग


काईनेटिन नामक रसायन का 20 मि.ली. (20 पी.पी.एम.) ग्राम की दर से कटाई-छंटाई के 30 दिन बाद पहला छिड़काव दूसरा कली बनते समय (पहले छिड़काव के 15 दिन बाद) और तीसरा छिडकाव (दूसरे छिड़काव के 15 दिन बाद) कली बनने के बाद करना लाभप्रद रहता है। इससे फूलों के उत्पादन के साथ-साथ कली को फूलने से पहले गिरने से भी रोका जा सकता है।


उपज


उचित ढंग से गुलाब की खेती करने पर 2-3 टन प्रति हैक्टेयर उपज मिलती है। इसमें तेल की मात्रा 0.03 से 0.045 तक होता है। एक बार पौधा लगाने के बाद इसकी उपज 10-12 साल तक मिलती है।