औषधीय खेती - 12 - ऐस्टर

(द्वारा -  वर्धमान महावीर खुला विश्वविद्यालय, कोटा
किताब - जलग्रहण विकास-क्रियान्यवन चरण, अध्याय - 12)
सहयोग और स्रोत - इण्डिया वाटर पोटर्ल-


||{ऐस्टर} वानस्पतिक नाम (Aster Species)||


भूमि एवं जलवायु


ये एकवर्षीय फूल सर्दियों में उगाये जाते हैं। इसके लिए अच्छे जल निकास वाली बलुई दोमट मृदा अच्छी होती है। इसके लिए पी.एच. मान 6 से 8 के बीच होना चाहिए। बलुई भूमि में गोबर की या जैविक खाद को प्रचुर मात्रा में मिलाना चाहिए।


ऐस्टर किस्मे


विदेशी


ऐजोर, किगो, क्वीन आॅफ दी माकेट, अर्ली बर्ड, बर्ड ब्लू अण्डर, मसागनो कोमेट


भारतीय


पूर्णिमा, वायलेट कुशन, कामिनी, फुले, गणेश, व्हाइट शशंक, फुले गणेश वायलेट, कुले गणेश पिंक


बीज दर


ऐस्टर का बीज 2.5 से 3.00 किग्रा. प्रति हैक्टेयर पर्याप्त होता है।


प्रवर्धन


इसका प्रवर्धन बीज द्वारा होता है तथा सितम्बर-अक्टुबर में लगाया जाता है। इसे क्यारियों में, मिट्टी के ममलों में तथा ट्रेंच में लगाया जाता है। इसके लिए मिट्टी में कम्पोस्ट, बाग की मिट्टी, बलुई तथा गोबर की खाद तथा पत्तियाँ 1:1 ,1:1, 1,1 के अनुपात में मिलाई जाती है। क्यारी 60 सेमी. चैडी तथा सेमी. भूमि से ऊँची होनी चाहिए।


नर्सरी लगाने से पहले बीजों को कैप्टाफ 2 ग्राम प्रति किग्रा. की दर से उपचारित करे। बीजों की कतार से कतार 6 सेमी. की दूरी पर बुवाई करे। बीजों को, सूखी पत्तियों को पीसकर, छानकर ढक दें, हल्का सा पानी दें।


रोपाई


बुवाई के 20 से 25 दिन में पौध जब चार पत्ती की अवस्था के हो जाये तो इन्हें खेत में रोपाई करे। रोपाई करने से पहले नर्सरी में 2 दिन तक पानी न दे। रात के समय रोपण करना सबसे उचित समय है। रोपाई के लिए पौधे से पौधें तथा कतार से कतार की दूरी 30 सेमी. होनी चाहिए।


बाद एवं उर्वरक


गोबर की खाद 3 किग्रा. प्रति वर्गमीटर की दर से जमीन में मिला दें। इसमें 20 ग्राम यूरिया, 60 से 120 ग्राम सुपर फास्फेट तथा 35-50 ग्राम म्यूरेट आॅफ पोटाश भी मिला दें। यूरिया की 1/2 मात्रा रोपण के समय तथा बची मात्रा एक माह बाद दे। यदि आवश्यकता पड़े तो 2 प्रतिशत यूरिया के घोल के रूप में देना ज्यादा अच्छा है। इसके लिए गोबर की खाद तथा तेज की खल 1 से 2 किग्रा. 10 लीटर पानी में एक सप्ताह तक पड़ा रहने दें। इसमें पानी मिलाकर चाय के रंग जैसा बना दिया जाता है तथा छानकर गमलों, क्यारियों में दिया जा सकता है। एक सप्ताह में 1 बार 500 से 100 मि.लीटर प्रति गमला (आकार के अनुसार) फूल आने तक दिया जा सकता है। 


यदि खेत में काफी क्षेत्र में लगा हुआ हो तो प्रति हैक्टेयर में 180 किग्रा नत्रजन दें।


सिंचाई


7 से 10 दिन के अन्तराल पर हल्की सिंचाई दें। हल्की भूमि में सिंचाई 5 से 7 दिन में ही करें। गमलों में पानी एक दिन छोड्कर दें।


रख-रखाव


खरपतवार मुक्त रखने के लिये समय-समय पर निराई-गुड़ाई करें। पौधे के फैलाव देने के लिये सिरे के फुटान को तोड़ दें। यदि फूल का आकार बड़ा लेना हो तो प्रति पौधा कम फूल रखे।


फूलों की तुड़ाई


जब फूल पूरी तरह से खुल जाये तो इन्हें टहनी सहित तोड़ लेना चाहिए। प्रायः इनकी तुलाई शाम के समय करनी चाहिए। इसकी उपज 10 से 12 टन हैक्टेयर प्राप्त होती है।


तुड़ाई उपरान्त सम्भलाव


कट फ्लावर्स को ज्यादा देर तक रखने के लिए सभी पत्तियों को हटा दें। टहनी के नीचे वाले सिरे पर तिरछा काट दें ताकि वो ज्यादा पानी सोख सके। पानी में 60 ग्राम प्रति लीटर सुकोज 250 ग्राम प्रति लीटर हाइड्रोक्सी क्वीनोलीन सिट्रेट $ 70 मि. ग्राम साइकोसिल व 50 मि. ग्राम सिल्वर नाईट्रेट परिरक्षकों का इस्तेमाल करने पर इन्हें लम्बे समय तक ताजा रखा जा सकता है।