औषधीय खेती - 2 - प्लान्टेगों ओवेटा

(द्वारा -  वर्धमान महावीर खुला विश्वविद्यालय, कोटा
किताब - जलग्रहण विकास-क्रियान्यवन चरण, अध्याय - 2)
सहयोग और स्रोत - इण्डिया वाटर पोटर्ल-


||ईसबगोल - वानस्पतिक नाम: प्लान्टेगों ओवेटा||


यह एक महत्वपूर्ण नगदी फसल है। राज्य में ईसबगोल की खेती जालौर, बाड़मेर, जोधपुर व सिरोही जिलों में प्रमुखता से की जाती है। भारत इसका सबसे बड़ा उत्पादक देश है तथा इसक बीज व भूसी का निर्यात करता है। इसकी भूसी दवाई के रूप में कब्ज, डायरिया व पेचिस में काम आती है।


जलवायु एवं भूमि


यह रबी मौसम की फसल है। इसको शीतोष्ण जलवायु की आवश्यकता होती है परन्तु बीजों में ठीक से अंकुरण के लिए 50-25 सेग्रे. तापक्रम की आवश्यकता होती है। इसके लिए भूमि का चुनाव करते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि सिचांई की अच्छी व्यवस्था व जल निकास का अच्छा प्रबन्ध हो। हल्की भूमि जैसे दोमट तथा बलुई मिट्टी पैदावार के लिए अच्छी होती है। भूमि का पी.एच.मान 7-8 तक उपयुक्त होता है।


खेत की तैयारी एवं भूमि उपचार


खरीफ फसल की कटाई के बाद भूमि की 2-3 जुताई करके मिट्टी को भुरभुरी बना लेना चाहिए। दीमक व भूमिगत कीड़ों की रोकथाम हेतु अन्तिम जुताई के समय मिथायल पैराथियान 2 प्रतिशत या क्यूनालफास 1.5 प्रतिशत या एण्डोसल्फान 4 प्रतिशत चूर्ण 25 किग्रा. प्रति हैक्टेयर की दर से मिट्टी में मिला देना चाहिए।


खाद एवं उर्वरक


गोबर की खाद उपलब्ध हो तो खेत में 10-15 गाड़ी गोबर की खाद मिलायें। अन्तिम जुताई के समय 45 किग्रा. नत्रजन और 45 किग्रा. फास्फोरस प्रति हैक्टेयर के हिसाब से 75 सेमी. गहरा ऊर दे। नत्रजन की आधी एवं फासफोरस की पूरी मात्रा बीज की बुवाई के समय दे तथा शेष नत्रजन की आधी मात्रा बुवाई के 30 दिन बाद सिंचाई के बाद दे।


किस्में


ईसबगोल की प्रमुख किस्में हैं- आर.आई.-89- य किस्म 110-115 दिन में पक जाती है तथा 12-16 क्विंटल प्रति हैक्टेयर उपज दे सकती हैं।


बीज की बुवाई


अच्छी उपज के लिए ईसबगोल की बुवाई नवम्बर के प्रथम पखवाड़े में ठीक रहती है। इसका बीज बहुत छोटा होता है इसलिए इसे क्यारियों में छिटक कर रैक चला देना चाहिए या 30 सेमी. की दूरी पर कतारों में बुवाई करनी चाहिए। इसकी बुवाई के लिए 45 कि.ग्रा. बीज प्रति हैक्टेयर पर्याप्त है।


सिंचाई


पहली हल्की सिंचाई बुवाई के तुरन्त बाद कर दे। 5-7 दिन में बीज उगना शुरू हो जाता है। 10-15 दिन बाद एक हल्की सिंचाई और कर दे। इसके बाद 30 दिन के अन्तराल पर सिंचाई करनी चाहिए।


निराई-गुड़ाई


ईसबगोल में दो निराईयो की आवश्यकता होती है। पहली निराई-बुवाई के करीब 20 दिन बाद एवं दूसरी 40-50 दिन बाद करनी चाहिए। निराई के साथ-साथ गुड़ाई करना लाभप्रद रहता है। खरपतवार नियन्त्रण हेतु आइसाप्रोट्यूरोन 0.60 किग्रा. प्रति हैक्टेयर की दर से पूर्व अथवा उगने के बाद उपचार करना चाहिए।


कटाई, मंडाई एवं औसाई


ईसबगोल में 25-125 तक कल्ले निकलते है। पौधों में 60 दिन बाद बालियां निकलना शुरू होती है और करीब 115-130 दिन में फसल पक्कर तैयार हो जाती है। फसल पकने का अनुमान पकी हुई बालियों को अंगुलियों के बीच में दबाकर किया जा सकता है। पका हुआ दाना इस प्रकार दबाने पर बाहर निकल आता है।


फसल की कटाई फसल के पूरी तरह पकने के करीब 1-2 दिन पहले ही कर लेनी चाहिए। कटाई सुबह के समय करें जिससे बीजों के बिखरने का डर न रहे। कटी हुई फसल को 2-3 दिन खलिहान में सुखाकर जीरे की तरह झड़का लें या बैलों द्वारा मण्डाई कर बीज निकाल लें। अच्छी फसल में करीब आधा वनज बालियों का व आधा वनज डन्ठल का होता है। निकले हुए बीजों को सुखाकर बोरी में भर लेना चाहिए।


ईसबगोल का उत्पादन एवं उपयोगी भाग


ईसबगोल की भूसी जिसकी मात्रा बीज के भार में करीब 30 प्रतिशत होती है, सबसे कीमती एवं उपयोगी भाग हैं, बाकी 70 प्रतिशत में 65 प्रतिशत गोली, 3 प्रतिशत खाली एवं 2 प्रतिशत खारी होती है। भूसी के अतिरिक्त तीनों भाग जानवरों को खिलाने के काम आते हैं। चारा भी पशुओं को खिलाने के काम में लिया जाता है।