औषधीय खेती - 5 - क्लोरोफायटन बोरीविलिएनम

(द्वारा -  वर्धमान महावीर खुला विश्वविद्यालय, कोटा
किताब - जलग्रहण विकास-क्रियान्यवन चरण, अध्याय - 5)
सहयोग और स्रोत - इण्डिया वाटर पोटर्ल-


||[सफेद मूसली] वानस्पतिक नामः क्लोरोफायटन बोरीविलिएनम||


कुछ वर्षो से फसलोत्पादन के क्षेत्र में नई फसलों की काश्त पर चिन्तन व उनके परम्परागत खेती में समावेश की सम्भावनाएं बढ़ती जा रही हैं। इस संदर्भ में सफेद मूसली एक उपयुक्त फसल साबित हो सकती है। सफेद मूसली एक जड़ी बूटी है, जो एक महत्वपूर्ण आयुर्वेदिक औषधी है। यह मनुष्य की दुर्बलता व नपुंसकता निवारण में उपयोगी है। दूध पिलाने वाली माताओं का दूध बढ़ाने के लिए भी यह दी जाती है। मेवाड़ में इसे धोली मूसली के नाम से जाना जाता है। यह राजस्थान में कोटड़ा, डया, अम्बासा, सीतामाता, कुंभलगढ़, झरगा, पड़ावली झाड़ोल, सोम, पानरवा, मामेर पीपलखूँट, बारा के जंगलों पायी जाती है। यह जंगलों में धीरे-धीरे खत्म होती जा रही है। जिसे लुप्त होने से बचाने व इसकी खेती करने की तकनीक निकालने के उद्देश्य से भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के सहयोग से अपने देश ने इस फसल के अनुसंधान में अग्रणी होने की भूमिका निभाई है।


जलवायु एवं भूमि


सफेद मूसली की खेती ऐसे क्षेत्र में की जा सकती है जहाँ वर्षा 500 से 1000 मि.मी होती हो। भूमि में आद्र्रता व आद्र्र जलवायु इसकी पत्तियों और जड़ों की बढ़ोत्तरी के लिए आवश्यक है। दोमट मिट्टी वाली जमीन जहाँ पानी का निकास अच्छा हो जिसमें पर्याप्त जीवांश (सड़ी हुई गोबर, पत्तियों की खाद या कम्पोस्ट) व जलधारणा क्षमता हो, इस फसल की खेती के लिए उपयुक्त होती है। खेत को अच्छी तरह जोतकर करीब 30 टन प्रति हैक्टेयर की दर से सड़ी हुई खाद मिट्टी में अच्छी तरह मिला दे। आवश्यकता पड़ने पर जीवांश खाद की मात्रा बढ़ाई जा सकती है। वर्षा आने से पूर्व खेत में 8 इन्च ऊँची डोलियाँ बना ले। डोली से डोली की दूरी एक फीट रखें।


बीज की मात्रा


गूदेदार जड़ जिसमें स्टेम डिसक (जड़ पर स्थित तना) का कुछ अंश ऊपरी सिरे पर लगा हो, अंकुरण के लिए उपयुक्त है। इस प्रकार एक हैक्टेयर की बुवाई के लिए करीब 400 से 600 किग्रा. गूदेदार सफेद मूसली की जड़ों की आवश्यकता होती है या 2,22,000 पौधों की जरूरत होती है। बीज की मात्रा गूदेदार जड़ों की मोटाई व लम्बाई पर निर्भर करती है। बीज हेतु उसे 5 ग्राम से लेकर 10 ग्राम तक के गूदेदार जड़ों के टुकड़े उपयुक्त है।


बुवाई का समय व तरीका


वर्षा प्रारम्भ होने से 10-30 दिन के बीच जंगलों से पौधें लाकर खेत में स्थानान्तरित कर दे। अगर आपके पास गत वर्ष की भण्डारण की हुई गूदेदार जड़े हैं, तो यह जून के मध्य तक अंकुरित हो जायेगी। वर्षा आने पर उन्हें डोलियों के ऊपर पाश्र्व में 15 सेमी. (6 इन्च) की दूरी पर मिट्टी में खड़ी लगा दे। अगर सिंचाई का साधन उपलब्ध हो तो सफेद मूसली जून के मध्य में खेत में लगा दे।


सिंचाई एवं निराई-गुड़ाई


जमीन में नमी कम हो तो बुवाई के तुरन्त बाद सिंचाई करें। इसके बाद भी वर्षा का अभाव रहे तो सिंचाई करें। सिंचाई के समय ध्यान रखे कि खेत में पानी अधिक समय तक भरा नहीं रहे। फसल की खरपतवार मुक्त रखने के लिए दो बार निराई-गुड़ाई अवश्य करें।


जमीन से सफेद मूसली निकालना


सफेद मूसली करीब 80-90 दिन में पक जाती है। जब पौधें की पत्तियाँ पूरी तरह से सूख जाये तो जमीन को खोदकर सितम्बर के महीने में मूल के गुच्छे निकाल ले।


बेचने के लिए सफेद मूसली तैयार करना


बेचने के लिए सितम्बर माह में सफेद मूसली खेत से निकाल ले। जमीन से निकाले गये सफेद मूसली के गुच्छों के साथ लगी हुई मिट्टी अगर अधिक गीली हो तो उन्हें छाया में फैला दे। 4 से 7 दिन में आद्र्रता कम होने पर छाया में एक जगह ढेर कर दे और उन पर बोरियाँ ढक देवें। 6-7 दिन में गुच्छों को पलट दे और जड़ों पर थोड़ा सा उंगलियों से दबाव डालें जिससे छिलका अलग हो जायेगा और दूधिया रंग की जड़ निकल आयेगी। इन छिलके रहित जड़ों को साफ पानी में धोकर धूप में सुखा दे। करीब 7-10 दिन में सफेद मूसली सूख जायेगी व बाजार में बेचने लायक हो जायेगी। सफेद मूसली सूखने पर काफी सख्त हो जाती हैं।


बीज का भण्डारण एवं रखरखाव


सफेद मूसली के पौधों की पत्तियाँ सूखने पर सफेद मूसली की जड़ों के गुच्छे सितम्बर से नवम्बर के बीच निकाल ले। अगर जमीन से निकाले हुए गुच्छों में अधिक आद्र्रता हो तो सफेद मूसली के गुच्छों को 15-20 दिन छाया में फैला दे, जिससे जड़ों में पानी की मात्रा कम हो जायेगी। तत्पश्चात गुच्छों से जड़ों को इस तरह अलग करे कि जड का छिलका नहीं हटे व जहाँ पर जड़े जुड़ी हुई है जिसे स्टेमडिस्क (जड़ पर स्थित तना) कहते हैं। उसका एक छोटा सा भाग प्रत्येक जड़ के साथ आ जाये उसमें सुषुप्त अवस्था में कलियाँ विद्यमान रहती हैं, वे उपयुक्त वातावरण या मौसम आने पर अंकुरित हो जाती है। अगले वर्ष की बुवाई के लिए इन जड़ों को झोपड़ी या कच्चे फर्श वाले मकान - में (20-30 सेमी.) गहरा गड्ढा खोदकर जड़ों को मिट्टी में मिलाकर भण्डारण करे। भण्डारण से पूर्व यह ध्यान रखे कि भण्डारण वाले स्थान पर आद्र्रता नहीं रहे और वर्षा आने पर भीगने की सम्भावना नहीं हो। इसके अलावा भण्डारण का दूसरा तरीका यह है कि 1/2 से 1 किग्रा. जड़ों में बराबर मात्रा में सूखी मिट्टी या रेत मिलाकर प्लास्टिक की थैली में भर दें जिसमें छेद किये हुए हो थैली का ऊपर का मुँह खुला रखे और इन थैलियों को कमरे के ठण्डे स्थान पर रख दे। ध्यान रखे कि थैलियों में कटी हुई या छिलका ऊतरी हुयी जड़े न हो। ये जड़े वर्षा आने से पूर्व मई के दूसरे या तीसरे सप्ताह में अपना अंकुरण शुरू कर देगी। इन जड़ों को मई के अन्त में एक बार थैली से बाहर निकाल ले और अगर कोई जड़ सड़ गई हो तो उसे निकालकर फेंक दे और बाकी जड़ों को वापस मिट्टी के साथ थैली में भर दे। प्लास्टिक की थैली की जगह कागज या कपड़े की थैली भी काम में ली जा सकती है।


उपज एवं लाभ


एक हैक्टेयर जमीन से करीब 1000-2000 कि.ग्रा. सफेद मूसली की गूदेदार जड़े या 200-250 कि.ग्रा. सूखी हुई मूसली की उपज प्राप्त की जा सकती है।


फसल सुरक्षा


खड़ी फसल में कोई विशेष बीमारी या कीट का प्रकोप नहीं होता है। क्लोरोसिस के निवारण के लिए प्रयोग चल रहे हैं। बीज के भण्डारण में कुछ जड़े सड़ जाती है अतः भण्डारण से पूर्व जड़ों का बाविस्टीन एक ग्राम प्रति लीटर पानी के घोल से उपचारित करना लाभदायक पाया गया है।