औषधीय खेती - 9- मेहंदी

(द्वारा -  वर्धमान महावीर खुला विश्वविद्यालय, कोटा
किताब - जलग्रहण विकास-क्रियान्यवन चरण, अध्याय - 9)
सहयोग और स्रोत - इण्डिया वाटर पोटर्ल-


||{मेहंदी} वानस्पतिक नाम: (Lausonia)||


भूमि एवं जलवायु


यह उष्ण एवं शुष्क जलवायु वाला पौधा है। मेहंदी की खेती सभी प्रकार की मृदाओं-कंकरीली, हल्की, भारी एवं दूसरी प्रकार की कृषि के लिए अनुपयुक्त भूमियों में सम्भव है। अत्यधिक जल भराव वाली क्षारीय एवं लवणीय भूमि इसके लिए उपयुक्त नहीं है।


खेत की तैयारी


खेत को गहरी जुताई करके तैयार किया जाता है। खेत की तैयारी के समय ही 175 क्विंटल गोबर की अच्छी सड़ी हुई खाद व नीम की खली 40 किग्रा, प्रति हैक्टेयर की दर से भूमि में मिला दे। खेत में रोपाई हेतु कतार से कतार की दूरी एक मीटर रखते है।


किस्में



  1. हिना (सुगन्धित)

  2. रजनी (गहरे रंग वाली)


बिजाई की विधि


मेंहदी की बिजाई प्रायः बीजों द्वारा की जाती है। मेहंदी का बीज काफी बारीक होता है अतः मार्च-अप्रैल के महीने में छायादार जगह पर उठी हुई क्यारियाँ बनाकर मेहंदी के बीज को छिड़क दिया जाता है। एक हैक्टेयर के लिए 6 से 8 कि.ग्रा. बीज की नर्सरी तैयार करनी चाहिए। क्यारियों में बीज छिड़ककर हल्की सिंचाई की जाती है तथा ध्यान रहे है कि 15-20 दिन तक क्यारियाँ ऊपर से सूखने न पावें। 15 से 25 दिन में मेहंदी के लगभग सारे बीज उग जाते है। खरपतवार उगने पर इन्हें अवश्य निकाल देना चाहिए अन्यथा मेहंदी की पौध नर्सरी में ही नष्ट हो सकती है। आवश्यकता पड़ने पर नीम की खली का घोल पौधों पर किया जा सकता है, इससे पौधें स्वस्थ तथा कीट रहित रहते हैं।


खेत में रोपाई


अंकुरण के तीन माह बाद या जुलाई-अगस्त में जब नर्सरी में पौध 40-45 से.मी. तक बड़ी हो जाती है तो इसकी रोपाई खेतों में की जाती है। रोपाई के लिए कतार से कतार की दूरी एक मीटर तथा पौधें से पौधें की दूरी 40 से.मी. रखनी चाहिए। पौधें लगाते समय खुरपी से 15 से.मी. गहरा गड्ढा करके दो पौधे एक साथ लगाकर मिट्टी से अच्छी तरह दबा दे ताकि जड़ से पास खोखला स्थान न रहे। तेज धूप के समय रोपाई का कार्य नहीं करना चाहिए।। रोपाई के समय से पूर्व एण्डोसल्फान चूर्ण 25 कि.ग्रा. प्रति हैक्टेयर की दर से मिट्टी में मिला दे ताकि दीमक के प्रकोप से पौधों को बचाया जा सके।


खाद एवं उर्वरक


पौधों की उचित बढ़वार के लिए 40 कि.ग्रा. नत्रजन पौध रोपण के समय व इतनी ही मात्रा के दो बराबर हिस्सों को साल में दो बार देना चाहिए।


निराई-गुड़ाई


फसल रोपाई के एक माह बाद खेत में निराई करना आवश्यक होता है ताकि खेत को खरपतवार से मुक्त किया जा सके।


सिंचाई


मेहंदी की जड़ काफी गहरी जाती है इसलिये सिंचाई की अधिक आवश्यकता नहीं होती। अधिक सिंचाई करने पर मेहंदी के पत्तों में रंजक तत्वों की कमी आ जाती है तथा गुणवत्ता क्षीण हो जाती है। सामान्यतः यह फसल वर्षा पर आधारित फसल के रूप में लेते हैं, जहाँ पर पानी की सुविधा हो, एक-दो सिंचाई आवश्यकतानुसार कर सकते हैं।


कटाई


बुवाई के पश्चात आगामी मार्च-अप्रैल में इसकी प्रथम कटाई जमीन से दो-तीन इन्च ऊपर से करे। पहली कटाई में विशेष उत्पादन नहीं मिलता परन्तु ये कटाई करना अत्यन्त आवश्यक है। दो साल बाद वर्ष में दो कटाई की जानी चाहिए। प्रथम मार्च- अप्रैल व दूसरी अक्टूबर-नवम्बर में करनी चाहिए। काटी गई फसल को छोटी ढेरियों में छाया में सुखाया जाता है। सूख जाने पर इन ढेरियों को इकट्ठा कर लिया जाता है तथा एक बड़ी ढेरी बनाकर दो तीन दिन तक इसे और सूखने दे परन्तु ध्यान रहे कि पत्तों का रंग न उड़ने पाये। सूखी हुई शाखाओं को ठण्डे से पीटकर पत्तियों को झाडू लेते हैं। एवं सूखी पत्तियों को पीसकर पाउडर बना लेते हैं।


उपज


वर्षा पर आधारित फसल में औसत उपज 10 क्विंटल प्रति हैक्टेयर लेकिन सिंचाई की सुविधा होने पर उपज 10-15 क्विंटल प्रति हैक्टेयर हो जाती है।