(द्वारा - वर्धमान महावीर खुला विश्वविद्यालय, कोटा
किताब - जलग्रहण विकास-क्रियान्यवन चरण)
सहयोग और स्रोत - इण्डिया वाटर पोटर्ल-
||जलग्रहण विकास में प्रारम्भिक सर्वे एवं क्षेत्र की चर्तुसीमा का अवलोकन||
किसी भी योजना का बेहतर क्रियान्वयन सुनिश्चित करने के लिये प्रारम्भिक सर्वे आवश्यक है। जलग्रहण क्षेत्रों की आधारभूत आवश्यकताओं के अनुरूप विभिन्न प्रकार के सर्वे कर, आँकड़ों को एकत्रित किया जाता है। जलग्रहण विकास परियोजना के लिये उस क्षेत्र की भौगोलिक स्थिति, सामाजिक व आर्थिक स्थिति, उपलब्ध संसाधन, रोजगार की स्थिति, पर्यावरण, वनस्पति गत संख्या की जानकारी ली जाती है।
इन जानकारियों में से कुछ आंकड़े ग्राम वार मीटिंग कर एकत्र की जाती है एवं कुछ फील्ड भ्रमण के पश्चात् एकत्र की जाती है। किसी भी जलग्रहण योजना प्रारम्भ के पूर्व निम्न जानकारियाँ प्रारम्भिक सर्वे कर एकत्र की जानी आवश्यक है।
जलग्रहण क्षेत्र में आने वाले ग्रामों के नाम, पंचायत समिति व तहसील का नाम, जलग्रहण क्षेत्र का कुल रकबा, सिंचित व असिंचित भूमि, सवाई चक्र, चारागाह भूमि, जंगलात व अन्य भूमि के विवरण की जानकारी लेना, ग्राम वार जल संख्या, गाँव के बड़े, मध्यम व सीमान्त कृषकों व उनकी आर्थिक स्थिति की जानकारी एकत्रित करना। ग्रामवासियों का शैक्षणिक स्तर स्कूलों व पढ़ने वाले बच्चों की संख्या, ग्राम में जल संसाधन जैसे कुँए, टयूबवैल, जमीन में पानी की गहराई, पीने के पानी की उपलब्धता आदि की जानकारी प्राप्त करना।
पशुधन संबंधी जानकारी जैसे विभिन्न प्रकार के पशुओं की संख्या, उपयोगी व अनुप्रयोगी पशु, वर्तमान में दुग्ध उत्पादन, उन्नत नस्ल के पशुओं की संख्या व पशुओं की मुख्य बिमारियाँ व किस प्रकार उनका उपचार करना है उनकी जानकारी प्राप्त करना।
कृषि संबंधी जानकारी जैसे रबी व खरीफ में कौन-कौन सी फसलों का उत्पादन करना है उनकी उत्पादक क्षमता व क्षेत्र में उरर्वक का उपयोग किया जाना व कितनी मात्रा में उपयोग करते हैं। कितनी भूमि में दो फसलें लेते हैं व कितनी भूमि में एक ही फसल की पैदावार की जाती है व गाँवों के पशुओं के लिये पर्याप्त चारा उपलब्धत होता है या नहीं चारे की प्रजातियाँ व प्रति हैक्टेयर उत्पादन, वृक्षों की प्रजातियाँ इत्यादि जानकारी एकत्रित करना।
गाँव में रोजगार हेतु स्वयं सहायता समूहों की संख्या व क्या रोजगार के साधन उपलब्ध हैं तथा गाँवों में कितने प्रयोक्ता समूह कार्यरत हैं इन सभी की जानकारी एकत्रित करना। गाँव की मुख्य समस्यायें क्या-क्या हैं, पानी की उपलब्धता है, कितना जल स्तर है, कृषि संबंधी समस्या, फसलों में कोई बिमारी तो नहीं लगती, फसल तैयार होने के पश्चात मंडी तक पहुँचने के लिये सड़क है या नहीं, भूमि की उत्पादक क्षमता, भूमि में खाद तो नहीं है, पशुओं की प्रगति, चारे की व्यवस्था व पशुओं को कोई बिमारियाँ तो नहीं है इसके अतिरिक्त गाँव में किसी भी प्रकार की समस्या हो तो उसकी जानकारी लेना। उक्त सभी जानकारी प्रारम्भिक सर्वे करके उपलब्ध की जा सकती है।
इसके अतिरिक्त फील्ड पर जाकर भौगोलिक सर्वे भी किया जाता है इससे इस क्षेत्र में कौन-कौन से निर्माण कार्य कहाँ-कहाँ करवाये जाने हैं जैसे एनिकट निर्माण, चैक डैम, नाड़ी, तालाब इत्यादि के निर्माण हेतु सही स्थान का चयन करना व क्षेत्र के नालों की स्थिति की जानकारी प्राप्त करना व उन पर कौन से स्टेप पर तकनीकी दृष्टि से निर्माण करवाये जाने हैं यह सुनिश्चित करना।
6.2 प्रारम्भिक सर्वे
किसी भी योजना का बेहतर क्रियान्वयन सुनिश्चित करने के लिये प्रारम्भिक सर्वे करना आवश्यक है सभी प्रकार के जलग्रहण क्षेत्रों की आधारभूत आवश्यकताओं के अनुरूप विभिन्न प्रकार के सर्वे कर आंकड़ों को एकत्र किया जाता है। जलग्रहण विकास परियोजनाओं के लिये उस क्षेत्र की भौगोलिक स्थिति, सामाजिक स्थिति, आर्थिक स्थिति, उपलब्ध संसाधन, रोजगार की स्थिति, पर्यावरण व वनस्पति की जानकारी आवश्यक है। इन जानकारियों हेतु कुछ आंकड़े ग्रामवार पी.आर.ए. सहभागी ग्रामीण आंकलन एवं कुछ क्षेत्र में भ्रमण कर एकत्र करवाये जाते हैं। किसी भी जलग्रहण योजना प्रारम्भ के पूर्व निम्न जानकारियाँ प्रारम्भिक सर्वे कर एकत्र की जानी है।
6.2.1 क्षेत्र सर्वे (Area Survey)
जलग्रहण क्षेत्र किस पंचातय समिति व किस तहसील के अंतर्गत आता है। जलग्रहण क्षेत्र के अंतर्गत कितने ग्रामों का क्षेत्रफल आता है। जलग्रहण क्षेत्र के कुल क्षेत्रफल में सिंचित भूमि का रकबा, असिंचित भूमि, चारागाह भूमि, जंगलात व अन्य भूमि की जानकारी प्राप्त करनी होती है। गाँव की जनसंख्या, गाँव में बडे, मध्यम व सीमांत कृषकों की संख्या, अनुसूचित जाति, जनजाति व अन्य वर्गो के लोगों की संख्या, उनकी सामाजिक व आर्थिक स्थिति की जानकारी एकत्र करना। ग्रामवासियों का शैक्षणिक सत्र, स्कूलों व पढ़नेवाले बच्चों की संख्या, रा. में आगनबाड़ी, पंचायत भवन की जानकारी प्राप्त करना, गाँव में जल संसाधन, जल स्त्रोत जैसे नदी, कुँए, टयूबवैल, हैंडपम्प व जल स्त्रोतों में वर्तमान जल स्तर व भीषण कार्यो के समय जल स्तर कम होता है इसकी जानकारी व पीने के पानी की उपलब्धता आदि का सर्वे किया जाता
6.2.2 कृषि सर्वे (Agriculture Survey)
कृषि संबंधी जानकारी जैसे गाँव में कृषि भूमि का क्षेत्रफल, खरीफ व रबी फसलों के प्रकार, फसलों की प्रति हैक्टेयर उत्पादन क्षमता, उरर्वक का उपयोग उसका प्रकार व कितनी मात्रा में उपयोग में लिया जाता है। कितनी भूमि में वर्ष में दो फसलें ली जाती है। व चारें की उपलब्धता पशुओं के अनुपात में चारें का उत्पादन होता है या नहीं खाली पडी़ भूमि का रकबा, चारागाह भूमि की उपलब्धता, फलदार वृक्षों की संख्या, वृक्षों की प्रजातियाँ आदि का सर्वे किया जाता है।
एक कृषि जलवायु, सामाजिक वार्षिक एवं एम.पी.के. खाद का प्रयोग का भी सर्वे किया जाता है। भू जल स्तर बढाने के लिए बूँद-बूँद सिंचाई व अन्य सिंचाई पद्धति के प्रयोग के बारे में जानकारी प्राप्त की जाती है। इसके अलावा कृषक वर्मी कम्पोस्ट का उपयोग करता है या नही, तय हिभू कल्चर व कम पानी वाली फसलों की जानकारी बायो फांमिग, मछली पालन, कुछ कल्टीवेशन, समय पर बुवाई और उत्तम किस्म के खाद, बीज व भूमि के निस्तारण के उपयोग की कृषकों को जानकारी है इसका सर्वे किया जाता है। कृषकों को ऐसी फसल जिसमें कम बीमारी लगती है या बीमारी लगने के पश्चात् उसका उपचार तथा कौन से कीटनाशकों का प्रयोग करना है। इसकी जानकारी है या नही आदि का सर्वे किया जाता है।
6.2.3 पशुपालन सर्वे (Animal Survey)
पशुपालन संबधी जानकारी जैसे गाँव के प्रत्येक पशुपालक के पास कितने पशु है, उपयोग व अनुपयोग पशुओं की गणना, दूधारू पशुओं की संख्या व वर्तमान में दुग्ध उत्पादन की जानकारी प्रात्त करना। पशुओं की बीमारी व उपचार, पशुओं को टीकाकरण, बधियाकरण की जानकारी का सर्वे करना। पशुओं से उत्पादक दूध, मांस, ऊन मुर्गी, अण्डे आदि के लिए बाजार की उपलब्धता व बाजार की गाँव से दूरी की जानकारी।
6.2.4 रोजगार सर्वे(Employment Survey)
गाँव मे रोजगार की उपलब्धता रोजगार न होने से ग्रामवासी पलायन तो नहीं कर रहे है। गाँव में स्वयं सहायता समूहों की संख्या, प्रयोक्ता समूहों की संख्या व उनके द्वारा किये जाने वाले रोजगार की विवरण की जानकारी एकत्रित करना। ग्राम की मुख्य समस्याओं के बारे में जानकारी उपलब्ध करना जैसे शुद्ध पेयजल की उपलब्धता, जल स्तर में कमी, कृषि संबधी समस्या, फसलों की बीमारियाँ, फसल तैयार होने के पश्चात् मंडी तक सड़क आवागमन के साधन, खरीफ व लवणीय भूमि, पशुओं के चारे की व्यस्था व गाँवों में अन्य प्रकार की समस्याओं की जानकारी प्राप्त करना। उक्त सभी जानकारियाँ प्रारम्भिक सर्वे करके उपलब्ध की जा सकती है।
6.3 भौगोलिक सर्वेक्षण (Geological Survey)
जलग्रहण एक भौगोलिक क्षेत्र का होता है। भौगोलिक सर्वे के लिए अभियांत्रिक सर्वेक्षण महत्वपूर्ण है। इसका मुख्य उद्देश्य जल क्षेत्र की रिज लाईन सबसे ऊंची जगह से पानी बहकर जल ग्रहण क्षेत्र में आती है का सीकांकन किया जाता है, क्षेत्र की धरातल से ऊंचाई ऊंचे-नीचे स्थलों का अंकन, नदी नालों किया जाता है। वर्तमान में पूर्ण जलग्रहण क्षेत्र का अभियांत्रिक सर्वेक्षण नहीं किया जाता है। पटवारी द्वारा उपलब्ध करवाये गये रेवन्यू नक्शे पर क्षेत्र का भ्रमण कर स्टेचस की स्थिति अंकित की जाती है। जहाँ अकनीकी दृष्टि से आवश्यक हो, नालों डेªनेज लाईन का सर्वे किया जाता है जिससे की एनिकट व जल संग्रहण ढा़चों की सही स्थिति नक्शे में मार्क कर साईट पर उपयुक्त स्थान पर निर्माण करवाया जा सके इसके अलावा पंक, डैम, नाड़ी, तालाब के निर्माण हेतु सही स्थान का चयन किया जाना है।
सर्वे के पश्चात आंकड़ों को विभिन्न तालिकाओं (लेविल) में संकलित किया जाता है। सभी आंकड़े प्रोडक्शन प्लान के तरह विस्तरित परियोजना रिपोर्ट बनाते समय उपयोग में लिये जाने है।
6.4 अभ्यास के प्रश्न
- जलग्रहण क्षेत्र का प्रारम्भिक सर्वे क्यों आवश्यक है?
- क्षेत्र का भौगोलिक सर्वे क्यों किया जाता है?
6.5 सारांश
जलग्रहण क्षेत्र के विकास हेतु उस क्षेत्र की भौगोलिक स्थिति, समाजिक व आर्थिक स्थिति, उपलब्ध संसाधन, रोजगार की स्थिति, पर्यावरण, वनस्पति गत संख्या की जानकारी योजना बनाने लिए अति आवश्यक है।