जलग्रहण विकास-क्रियान्यवन, रणनीति एवं व्यवस्थाएँ

(द्वारा -  वर्धमान महावीर खुला विश्वविद्यालय, कोटा


किताब - जलग्रहण विकास-क्रियान्यवन चरण, अध्याय - एक)


सहयोग और स्रोत - इण्डिया वाटर पोटर्ल


||जलग्रहण विकास-क्रियान्यवन, रणनीति एवं व्यवस्थाएँ||


जलग्रहण विकास परियोजनाओं की स्वीकृति उपरान्त सबसे आवश्यक कार्यवाही भारत सरकार अथवा अन्य वित्त पोषित संस्था द्वारा जारी मार्गदर्शिका के अनुसार जलग्रहण विकास कार्यक्रम में ली जाने वाली गतिविधियों की आयोजना भलीभांति तैयार करना होता है। वह भी पी. आर. ए. एवं वैज्ञानिक ज्ञान के परस्पर सन्तुलित प्रयोगों एवं सिफारिशों के माध्यम से । इसके उपरान्त जलग्रहण विकास का क्रियान्वयन चरण प्रारम्भ होता है, जिसमें कि विभिन्न मदों,उप मदों के अन्तर्गत गतिविधियों को क्रियान्वयन स्वीकृत कार्य योजना अनुसार किया जाता है। ध्यान देने वाली बात यह है कि आयोजना एवं क्रियान्वयन सम्बन्धी महत्वपूर्ण चरणों में भारत सरकार की मार्गदर्शिका की शत प्रतिशत पालना पूर्ण की जावें। राज्य में जैसा कि विदित है दो प्रकार की जलग्रहण विकास परियोजनाएं वर्तमान में क्रियान्वित में हैं, पहली- ग्रामीण विकास मन्त्रालय भारत सरकार के वित्त पोषण से मरू विकास कार्यक्रम( डी. डी. पी) सूखा सम्भाव्य क्षेत्र कार्यक्रम (डी. डी. ए. पी) समन्वित बंजर भूमि विकास कार्यक्रम ( आई. डब्ल्यू. डी .पी. ) जो कि हरियाली मार्गदर्शिका के अनुसार देश मे क्रियान्वित की जा रही हैं। इसके अतिरिक्त दूसरी- कृर्षि मन्त्रालय, भारत सरकार के वित्त पोषण से राष्ट्रीय जलग्रहण विकास परियोजना ( एन. डब्ल्यू. डी. पी. आर. ए ) का क्रियान्वयन वरसा जन सहभागिता मार्गदर्शिका के अनुसार कराया जा रहा हैं।


दोनो प्रकार की मार्गदर्शिकाओं में दर्शाई गई क्रियान्वयन रणनीतियाँ पृथक-पृथक हैं। मुख्य परिवर्तन/ अन्तर निम्नानुसार हैं-


Û राज्य में डी.डी.पी योजना अन्तर्गत 16 जिलों की 85 चयनित पंचायत समितियाँ हैं, जबकि डी.डी.ए.पी योजना अन्तर्गत 10 जिलों की 32 पंचायत समितियाँ हैं।


Û आई. डब्ल्यू. डी .पी. परियोजना शेष पंचायत समितियों में ली जा सकती हैं।


Û उक्त तीनों ग्रामीएा विकास की योजनाओं में प्रति हैक्टेयर लागत 6000 रू. निर्धारित हैं, जबकि


  परियोजना अवधि 5 वर्ष है।


Û डी.डी.पी, डी.डी.ए.पी योजनान्तर्गत 500 हैक्टेयर तक के लघु जलग्रहण क्षेत्र लिये जाते हैं, जबकि


आई; डब्ल्यम. डी. पी. योजना अन्तर्गत वृहद जलग्रहण क्षेत्र जिनका कि क्षेत्रफल 5000- 8000 हैक्टेयर होता है, लिये जाते हैं।


Û एन. डब्ल्यू.डी. पी.आर.ए. योजना हेतु राज्य के 31 जिलों की 201 पंचायत समितियाँ चयनित हैं। चयन का आधार इस प्रकार है कि वे पंचायत समितियाँ जिनमें कि 30 प्रतिशत से कम भूमि सुनिश्चित सिंचाई के साधनों जैसे- ट्यूब वैल अथवा नहर से सिंचित हैं अर्थात् ये पंचायत समितियाँ बारानी हैं। प्रति हैक्टेसर लागत 8 प्रतिशत से कम औसत ढाल वाले जलग्रहण क्षेत्रों हेतु 4500 रू. प्रति हैक्टेयर तथा 8 प्रतिशत या अधिक ढाल वाले क्षेत्रों हेतु 6000 रू. प्रति हैक्टेयर निर्धारित हैं। परियोजना अवधि 5 वर्ष है।


Û भारत सरकार द्वारा जारी नई कामन मार्गदर्शिका दिनाकं 1.4.2008 से एन.डब्ल्यू. डी. पी. आर ए. के 11 वीं पंचवर्षीय योजना अवधि में चयनित जलग्रहण क्षेत्रों पर लागू हो गई है जिसके अनुसार अधिकतम लागत प्रति हैक्टेयर 12000/रू. निर्धारित है तथा परियोजना की अवधि 4-7 तक हो सकती है।


Û समस्त जलग्रहण विकास परियोजनाएँ जिला परिषदों के माध्यम से क्रियान्वित की जाती हैं।


Û समस्त जलग्रहण योजनाओं में परियोजना क्रियान्वयन संस्था ( पी. आई. ए. ) सामान्यतः पंचायत समिति घोषित की हुई है। इसके अतिरिक्त वन विभाग, गैर सरकारी संस्थाएँ भी कार्यरत हैं।


Û ग्रामीण विकास की जलग्रहण योजनाओं में जलग्रहण विकास दल के रूप में गैर राजकीय, स्थानीय शिक्षित एवं योग्य युवकों/युवतियों को लिया गया है, जो कि कृषि, पशुपालन, कृषि अथवा सिविल अभियान्त्रिकी एवं समाजशास्त्र में विशिष्ट योग्यता रखतें हैं।


एन. डब्ल्यू. डी.पी. आर. ए. योजना के अन्तर्गत जलग्रहण विकास दल के रूप में विभिन्न विभागों में कार्यरत/सामाजिक विज्ञान /पशुपालन विषय के कर्मियों जैसे- सहायक कृषि अधिकारी/कृषि पर्यवेक्षक, पशुपालन विभाग के पशु चिकिज्सक अथवा अन्य सहायक, महिला बाल विकास विभाग की आंगनबाडी़ कार्यकर्ता को लिया गया है। अभियान्त्रिकी संकाय के विशेषज्ञ के रूप में जलग्रहण विकास एवं भू संरक्षण विभाग के पास उपलब्ध कनिष्ठ अभियन्ताओं को नियोजित किया गया हैं।


Û जलग्रहण विकास कार्यदृमों के वास्तविक क्रियान्वयन के सम्बन्ध में भी भिन्न-भिन्न प्रक्रियाएँ स्थापित हैं। जहाँ ग्रामीण विकास के जलग्रहण क्षेत्रों हेतु क्रियान्वयन संस्था हरियाली मार्गदर्शिका के अनुसार ग्राम पंचायतों को घोषित किया हुआ है, वहीं दूसरी और एन. डब्ल्यू. डी.पी. आर. ए योजना के अन्तर्गत क्रियान्वयन की जिम्मेदारी चयनित जलग्रहण क्षेत्र की पंजीकृत जलग्रहण संस्था ( समितियाँ अधिनियम के तहत पंजीकृत ) तथा इसकी 11 सदस्यीय जलग्रहण समिति को प्रदान की गई है। कान मार्गदर्शिका में जलग्रहण संस्था का उल्लेख नहीं है अपितु जलग्रहण समिति का उल्लेख है जो कि ग्राम सभा द्वारा चयनित की जायेगी एवं इसमें 10 सदस्य होगें। जलग्रहण समिति का सोसायटी अधिनियम के अन्तर्गत पंजीकृत होना भी अनिवार्य है।


Û जहाँ एक और ग्रामीण विकास मन्त्रालय की योजनाओं में विस्तृत परियोजना प्रतिवेदन ( पूर्णकालिक अवधि हेतु तैयार किया जाता है, वहीं दूसरी ओर एन. डब्ल्यू. डी.पी. आर. ए अन्तर्गत रणनीतिक कार्य योजना ( पूर्ण परियोजना काल हेतु तैयार की जाती है।


Û विस्तृत परियोजना प्रतिवेदन एवं रणनीतिक कार्य योजना को पूर्णतः पी. आर. ए. अभ्यास के उपरान्त स्थानीय लाभार्थियों की सहभागिता से  मांग/आवश्यकता के आधार पर तैयार किया जाता है। इन कार्य योजनाओं में जलग्रहण विकास दल के सम्बन्धित सभी सदस्य अपने विषय के हिसाब से तकनीकी योगदान प्रदान करते हैं एवं तकनीकी सलाह हेतु सदैव तत्पर एवं उपलब्ध रहते हैं। कार्य योजनाओं को तैयार करते समय अभियांत्रिकी कार्यो की कार्य योजना, उत्पादन कार्यो की कार्य योजना, पशुपालन कार्यो की कार्य योजना, जीविकोपार्जन गतिविधियाँ विकसित करने की कार्य योजना पृथक-पृथक तैयार की जाती है।


Û प्रशिक्षण कार्यो हेतु पृथक से कार्य योजना तैयार की जाती है जिसमें प्रत्येक वर्ष किस-किस प्रकार के प्रशिक्षण, किन-किन को दिये जाने की आवश्यकता है एवं किन-किन संस्थाओं/स्थानों पर उक्त प्रशिक्षण आयोजित होंगे, इसकी रूपरेखा तैयार की जाती है।


Û निकटवर्ती क्षेत्रों में पूर्व विकसित एवं अन्यत्र विकसित ऐसे जलग्रहण क्षेत्र जहाँ पर उत्कृष्ट कार्य हुये हैं, उन क्षेत्रों का भ्रमण स्थानीय लाभार्थियों/जनप्रतिनिधियों एवं जलग्रहण क्रियान्वयन से जुडें विभ्न्नि व्यक्तियों को काराया जाता है जिससे कि प्रतिस्पद्र्वा स्वरूप उनमें उतकृष्ट कार्य करने की भावना विकसित हो तथा वे नवीन प्रयोग क्षेत्रों में प्राथमिकता एवं लगन के साथ अपनाने में सक्षम हों।


Û लाभार्थियों से संमाजस्य स्थापित करने, उनकी जन सहभागिता सुनिश्चित करने के उद्येश्य से योजनाओं की मार्गदर्शिकाओं के अनुसार लाभार्थी अंशदान लिये जाने का प्रावधान है जो कि 5 से 10 प्रतिशत तक निर्धारित हैं। काॅमन मार्गदर्शिका में अधिकतम प्रावधान सघन लागत वाली कृषि व्यवस्थाओं जैसे कि एक्वाकल्चर, उद्यानिकी, कृषि वानिकी, पशुपालन आदि जो कि व्यक्तिगत लाभार्थी की निजी भूमि पर उसके लाभ हेतु किये गये हो, हेतु 20-40 प्रतिशत तक निर्धारित किया गया है।


Û परियोजनाओं की समाप्ति के उपरान्त जलग्रहण विकास के दौरान विकसित परिसम्पतियों के रखरखाव एवं प्रंबधन हेतु भी पृथक-पृथक व्यवस्थाएँ स्थापित हैं। जहाँ एक ओर ग्रामीण विकास की जलग्रहण परियोजनाओं में ग्राम पंचायत को परियोजना पश्चात् रखरखाव की जिम्मेदारी दी गई है, वही दूसरी ओर एन. डब्ल्यू. डी.पी. आर. ए. योजना के अन्तर्गत जलग्रहण संस्था/ जलग्रहण समिति/ग्राम पंचायत को यह जिम्मेदारी मार्गदर्शिका में प्रदान की गई है जलग्रहण विकास कोष में उपलब्ध राशि का उपयोग भी मार्गदर्शिका में उल्लेखित सिद्वान्तों के आधार पर सार्वजनिक हित की गतिविधियों हेतु किया जाता हैं। प्रयास यह किया जाता है कि जिन क्षेत्रों में जलग्रहण विकास पद्वति के आधार पर कार्य पूर्ण हो चुके हैं वे क्षेत्र वास्ताविक रूप में सामाजिक आर्थिक विकास के आर्दश माॅडल के रूप में विकसित हो गये हों, प्राकृतिक संसाधनों के प्रंबधन हेतु प्रभावी प्रक्रियाएँ अमल में लाई जा रही हो एवं जीविकोपार्जन के अनेक विकल्प स्थानीय स्तर पर उपलब्ध हो गये हों।


Û इस प्रकार जलग्रहण विकास परियोजना की प्रकृति को देखते हुए पृथक-पृथक क्रिया विधि काम में लाई जा रही हैं।


यह उल्लेखनीय है कि जलग्रहण विकास कार्यक्रमों से सम्बन्धित मार्गदर्शी सिद्वान्त, विभिन्न राज्यों द्वारा क्रमोन्यन में जारी आदेश/ परिपत्र, जिला स्तरों पर अपनाई जा रही प्रक्रियाएं इत्यदि परिवर्तनशील है, अर्थात, समय-समय पर इन सिद्धान्तों एवं रणनीति में परिवर्तन होते रहे है एवं भविष्य में भी होते रहेंगे। अतः अध्ययनकर्ताओं से अपेक्षा की जाती है कि वे जलग्रहण विकास प्रबन्धन के अति महत्वपूर्ण विषय पर जानकारी उपलब्ध अनेकों माध्यमों से अपडेट करते रहें। भारत सरकार द्वारा जारी मार्गदर्शिकाओं का अध्ययन उपयोगी सिद्व होगा। इसके अतिरिक्त राज्य सरकार एवं जलग्रहण विकास एवं भू संरक्षण विभाग द्वारा जारी विभिन्न परिपत्रों का भी नियमित अध्ययन  प्रभावी सिद्ध होगा।


1.2                                                                         ग्रामीण ग्रामीण विकास की योजनाओं के अन्तर्गत क्रियान्वयन से सम्बन्धित महत्वपूर्ण बिन्दु


1.2.1 परियोजना कार्यन्वयन अभिकरण (Project Implementation Agency)


 


जिला स्तर पर जिला परिषद/ जिला ग्रामीण विकास अभिकरण , राज्य सरकार तथा भारत सरकार के पर्यवेक्षण तथा मागदर्शन के अन्तर्गत सभी क्षेत्र विकास के कार्यान्वयन के लिए केन्द्रक (नाडल) प्राधिकरण जल सग्रंहण क्षेत्रों के चयन परियोजना कार्यान्वयन अभिकरणों की नियुक्ति को अनुमोदित करेगा तथा परियोजना की कार्य योजना विकास योजना आदि को भी अनुमोदित करेगा। जिला परिषद का मुख्य कार्यपालक अधिकारी/जिला ग्रामीण विकास अभिकरण का परियोजना निदेशक जल सग्रंहण विकास परियोजनाओं के लेखों का हिसाब रखेगा और उपयोग प्रमाण, पत्रों लखों परीक्षित विवरणों, प्रगति रिपोर्टो, बंध पत्रों आदि जैसे सभी सांविधिक कागजात पर हस्ताक्षर करेगा।


दि परियोजना का कार्यान्वयन उचित रूप से नहीं किया जाता है या निधियों का दुरूपयोग किया जाता हैं अथवा निधियों को इन मार्गदर्शी सिद्वान्तों के अनुसार खर्च नहीं किया जाता तो जिला परिषद जिला ग्रामीण विकास अभिकरण को किसी भी संस्था/संगठन व्यक्ति से निधियाँ वसूल करने तथा कानून के तहत उपयुक्त कार्रवाई का अधिकार प्राप्त होगा।


ग्राम पंचायतें परियोजना कार्यान्वयन अभिकरणों (पी. आई. ए. ) के समग्र पर्यवेक्षक तथा मार्गदर्शन के अन्तर्गत परियोजनाएं कार्यन्वित करेगी। किसी एक ब्लाक/ताल्लुक के लिए स्वीकृत की गई सभी परियोजनाओं के लिए विकास खण्ड ( मध्यवर्ती ) पंचायत परियोजना कार्यान्वयन अभिकरण हो सकती हैं। यदि ये पंचायतें इस स्थिति में नहीं हो तो जिला परिषद स्वयं परियोजना कार्यान्वयन अभिकरण के रूप में कार्य कर सकती हैं या किसी उपयुक्त समनुरूप विभाग, जैसे कृषि, वानिकी/ सामाजिक वानिकी, भूमि संरक्षण विभाग आदि को या राज्य सरकार के किसी अभिकरण/विश्वद्यिालय/संस्थान को परियोजना कार्यान्वयन अभिकरण के रूप पर्याप्त अनुभव और विशेषज्ञता रखने वाले जिले के किसी प्रतिष्ठित गैर सरकारी संगठन को, इसकी विश्वसनीयता की पूरी तरह जाँच करने के पश्चात परियोजना कार्यान्वयन अभिकरण के रूप में  नियुक्त करने पर विचार कर सकता हैं, तथापि राज्य सरकारों को पंचायती राज संस्थाओं को अधिकार सम्पन्न बनाने तथा उन्हें सक्षम बनाने का प्रयास करना चाहिए ताकि वे अन्ततः जल सग्रहण विकास परियोजनाओं को परियोजना कार्यान्वयन अभिकरणों के रूप में स्वतंत्र रूप से कार्यान्वित करने के उत्तरदायित्व का निर्वाह करने की स्थिति में हो सकें। किसी एक गैर- सरकारी गठन-परियोजना कार्यान्वयन अभिकरण को सामान्यतः 5000-6000 हैक्टेयर क्षेत्रफल की 10-12 जल संग्रहण विकास योजनाएं सौंपी जांएगी, तथापि अपवादात्मक तथा उचित मामलों में किसी एक गैर-सरकारी संगठन-परियोजना कार्यान्वयन अभिकरण को एक जिले में एक जैसे स्वरूप के सभी कार्यक्रमों  में चालू परियोजनाओं सहित एक समय पर अधिकतम 12000 हैक्टेयर क्षेत्र तथा राज्य में अधिकतम 25000 हैक्टेयर क्षेत्र को विकसित करने का कार्य सौंपा जा सकता है।


कोई भी गैर-सरकारी संगठन परियोजना कार्यान्वयन अभिकरण के रूप में चयन किये जाने के लिए तभी पात्र होगा यदि वह जल संग्रहण विकास के क्षेत्र में अथवा ग्रामीण क्षेत्रों में किन्हीं समनुरूप क्षेत्र विकास कार्यकलापों में कुछ वर्षो से सक्रिय रूप में किसी संस्था का चयन करते समय गत तीन वर्षो में उस संस्था द्वारा उपयोग में लाई गई निधियों की मात्रा को भी ध्यान में रखा जाना चाहिए। कर्पाट अथवा राज्य सरकार एवं भारत सरकार के अन्य विभागों द्वारा काली सूची में रखे गये गैर-सरकारी संगठनों को परियोजना कार्यान्वयन अभिकरण के रूप में नियुक्त नहीं किया जाना चाहिए।


परियोजना कार्यान्वयन अभिकरण (पी. आई. ए. ) ग्रा पंचायत को ग्रामीण सहभागिता मूल्यांकन प्रक्रिया के जरिए जल संग्रहण हेतु विकास योजनाएं तैयार करने के लिए आवश्यक तकनीकी मार्गदर्शन उपलब्ध करायेगा। ग्राम समुदायों को संगठित करने और उन्हेंशिक्षण देने की व्यवस्था करने, जल संग्रहण विकास कार्यकलापों का पर्यवेक्षण करने, परियोजना लेखों की जाँच करने तथा उन्हें प्रमाणित करने, कम लागत वाली तथा स्वदेशी तकनीकी जानकारी के आधार पर तैयार प्रौद्योगिकियों को अपनाने हेतु उन्हें प्रोत्साहित करने का दायित्व भी परियोजना कार्यान्वयन अभिकरण का ही होगा इसके अलावा, परियोजना के समग्र कार्यान्वयन की निगरानी और समीक्षा करने तथा परियोजना अवधि के दौरान अवधि के दौरान सृजित परिसम्पत्तियों के परियोजना पूरी होने के पश्चात् संचालन तथा रख-रखाव एवं इनका आगे आद्यैर विकास के लिए संस्थागत व्यवस्था स्थापित करने का उत्तरदायित्व भी परियोजना कार्यान्वयन अभिकरण का ही होगा।


जिला परिषद/जिला ग्रामीण विकास अभिकरण सामान्यतः जल संग्रहण विकास कार्यक्रमों के तहत परियोजनाएं आरम्भ करने के लिए परियोजना कार्यान्वयन अभिकरण की उपयुक्तता या उसकी अनुपयुक्तता के सम्बन्ध में निर्णय लेने के लिए सद्यक्षम प्राधिकरण होगा। तथापि राज्य सरकार किसी भी परियोजना में कार्यान्वयन अभिकरण को विशिष्ट कारणों के आधार पर भूमि संसाधन विभाग, भारत सरकार की पूर्व सहमति से बदलने पर विचार कर सकती हैं।


प्रत्येक परियोजना कार्यान्वयन अभिकरण, अपने कर्तव्यों को जल संग्रहण विकास दल ( डब्ल्यू. डी.टी. ) नामक एक बहु आयामी दल के जरिये पूरा करेगा। प्रत्येक जल संग्रहण विकास दल में कम से कम चार सदस्य होने चाहिए जिनमें वानिकी/पादप विज्ञान, पशु विज्ञान, सिविल / कृषि इंजीनियरी एवं सामाजिक विज्ञान विषयों से एक-एक सदस्य होगा। जल संग्रहण विकास दल में कम से कम एक  महिला सदस्य होनी चाहिए। जल संग्रहण विकास दल के सदस्य के लिए अधिमान्य योग्यता एक व्यावसायिक डिग्री होनी चाहिए तथापि, अभ्यर्थी के सम्बन्धित विषय में व्यावहारिक तौर पर क्षेत्र अनुभव को ध्यान में रखते हुए उपयुक्त मामलो में जिला परिषद/जिला ग्रामीण विकास अभिकरण द्वारा अर्हता में छूट दी जा सकती है। जल संग्रहण विकास दल के एक सदस्य को परियोजना प्रमुख के रूप में पदनामित किया जाएगा। परियोजना कार्यान्वयन अभिकरण को इस बात की स्वतंत्रता होगी कि यदि वह चाहे तो  इस कार्य के लिए पूर्णतया अपने कर्मचारियों को लगा सकता है अथवा सेवानिवृत कार्मियों सहित नये अभ्यार्थियों को भर्ती कर सकता है अथवा सरकार या अन्य संगठनों से कर्मचारियों को प्रतिनियुक्ति के आधार पर ले सकता है। जलग्रहण विकास दल का कार्यालयः सामान्यतः परियोजना कार्यान्वयन अभिकरणों के परिसर/ ब्लाक मुख्यालयों के स्थान पर चयनित गाँवों के समूह के निकट स्थित किसी अन्य नगर में स्थित होगा। जल संग्रहण विकास दल के सदस्यों को मार्गदर्शिका के अनुसार मानदेय देय होगा।


वयन किये गये परियोजना कार्यान्वयन अभिकरण, विशेष रूप से समानुरूप विभागों, जैसे-कृषि, भूमि संरक्षण, वानिकी आदि के मामलों में , विशेषज्ञता से सम्बन्धित कुछेक कार्याकलापों पर अत्यधिक जोर देने की प्रवृति से बचने की दृष्टि से जिा परिषदों/जिला ग्रामीण विकास अभिकरण को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि जिला और ब्लाॅक स्तरों पर विभिन्न समानुरूप विभागों से उस विषय के विशेषज्ञ को योजनाएं तैयार करने में शमिल किया जावें।


ग्राम पंचायते परियोजनाओं के सभी कार्यो को ग्राम सभा के मार्गदर्शन में तथा नियन्त्रण के तहत कार्यान्वित करेगी। जिन राज्यों में वार्ड संभाएं ( पल्ली संभाएं आदि ) है और विकसित किया जाना वाला क्षेत्र उस वार्ड के अन्तर्गत आता है, वहाँ पर वार्ड सभा ( पल्ली सभा ) भी ग्राम सभा के कर्तव्यों का निर्वाह कर सकती है।


छठी अनुसूचित में शमिल क्ष्द्योत्रों , जहाँ ग्राम पंचायतों के स्थान पर पारम्परिक ग्राम परिषदें कार्य करती हैं, वहां पर इन परिषदों को ग्राम पंचायतों/ग्राम सभाओं के उत्तरदायित्व सौंपं जा सकेते हैं। उन मामलों में जहां पर ना तो ग्राम पंचायत है और ना ही पारम्परिक ग्राम परिषद है, वहां पर जलसंग्रहण मार्गदर्शी सिद्वान्तों (2001) के मौजूदा उपबंध लागू होगें।


ग्राम पंचायत परियोजना के निर्विघ्न कार्यान्वयन के लिए जल संग्रहण विकास दल तथा जिलापरिषद/ जिला ग्रामीण विकास अभिकरण के साथ समन्वय तथा सम्पर्क बनाये रखने के लिए उत्तरदायी होंगी। यह जल संग्रहण विकास कार्यो को करने तथा इसके भुगतान करने हेतु स्वयं उत्तरदायी होगी।


ग्राम पंचायत जल संग्रहण परियोजना के लिए एक अलग खाता रखेगी। जिला परिषद/जिला ग्रामीण विकास अभिकरण से परियोजना के लिए प्राप्त सभी धन राशि को इस खाते में जमा किया जाएगा। इस खाते का संचालन ग्राम पंचायत सचिव तथा ग्राम पंचायत अध्यक्ष द्वारा संयुक्त रूप से किया जायेगा। ग्राम पंचायत सचिव, ग्राम पंचायत तथा ग्राम सभा की बैठकें आयोजित करने तथा उनके निर्णयों पर कार्यावाई करने के लिए उत्तरदायी होगा। वह परियोजना सम्बन्धी कार्यकलापों के सभी अभिलेखों तथा लेखाओं को रखेगा। यदि आवश्यक हो तो ग्राम पंचायत जल संग्रहण परियोजना की कार्य योजना/विकास योजना के अनुसार कार्यकलापों कों कार्यान्वित करने में सचिव, ग्राम पंचायत को सहायता देने के लिए 2 या 3 स्वंयसेवकों को मानदेय के आधार पर नियुक्त कर सकती है।


 


  1.2.2 ग्राम सभा की बैठंके  (meetigings of the gram sabha )


ग्राम सभा जल संग्रहण विकास की  आयोजना को अनुमोदित करने/इसमें सुधार करने, इसकी प्रगति की निगरानी तथा समीक्षा करने, लेखों के विवरण को अनुमोदित करने, प्रयोक्ता समूहो/स्वंय सहायता समूहों को गठित करने, विभिन्न प्रयोक्ता समूहों/स्वयं सहायता समूहों या इन समूहों के सदस्यों के बीच के मतभेदों या विवादों का पनटान करने, सार्वजनिक/स्वैच्छिक दान लेने तथा समुदाय एवं निजी अंशदान एवं जिनी को एकत्रित करने की व्यवस्था को अनुमोदित करने, सृजित की गई परिसम्पत्तियों के संचालन तथा अनुरक्षण के लिए प्रक्रिया निर्धारित करने तथा उन कार्यो को अनुमोदित करने के लिए जिन्हें जलग्रहण विकास कोष में उपलब्ध धन से कार्यान्वित किया जा सकता है, वर्ष में कम से कम दो बैठकें आयोजित करेगी।


1.3 कृषि मन्त्रालय की एन.डब्ल्यू.डी.पी.आर.ए. योजना के अन्तर्गत क्रियान्वयन से सम्बन्धित महत्वपूर्ण


    बिन्दु


वरसा जन सहभागिता मार्गदर्शिका के अनुसार


1.3.1 ''जलग्रहण परियोजना खाता खोलना''(Opening of watershed project Account)जलग्रहण कमेटी (डब्ल्यू.सी.) के गठन और जलग्रहण सचिव और कार्यकर्ताओं की नियुक्ति के पश्चात् डब्ल्यू.सी. किसी भी राष्ट्रीयकृत/सहकारी बैंक की किसी स्थानीय शाखा में जलग्रहण संस्था (डब्ल्यू.ए.) के नाम से एक खाता खोलने के लिए आवश्यक कार्यवाही करेगी। यह खाता डब्ल्यू.सी. अध्यक्ष, डब्ल्यू.डी.टी. के एक सदस्य और जलग्रहण सचिव के नाम से संयुक्त रूप से संधारित होगा। डब्ल्यू.सी. के अध्यक्ष और जलग्रहण सचिव के संयुक्त हस्ताक्षरों से रू. 1000/- तक की राशि खाते से निकाली जा सकेगी। रु. 1000/- से अधिक की राशि खाते से निकालने के लिए डब्ल्यू.डी.टी. के एक सदस्य, डब्ल्यू.सी. अध्यक्ष और जलग्रहण सचिव के हस्ताक्षर अनिवार्य होंगे। डब्ल्यू.डी.टी. सदस्य को सह हस्ताक्षर कर्ता होने के लिए उसका सम्बन्धित डब्ल्यू.ए. का सदस्य होना वांछनीय होगा। जलग्रहण परियोजना के लिए निधि जारी करने के सम्बन्ध में जिला नोडल एजेन्सी (डी.एन.ए.) के जिला अध्यक्ष को प्रस्तुत किये आवेदन पर डब्ल्यू.सी. अध्यक्ष और जलग्रहण सचिव के संयुक्त हस्ताक्षर होंगे तथा आवेदन डब्ल्यू.डी.टी. के परियोजना नेता द्वारा विधिवत अनुशंसित किया हुआ होगा। जलग्रहण सचिव इस खाते के तहत प्राप्तियों व व्ययों का अभिलेख जिला अध्यक्ष निधारित तरीकों के अनुसार संधारित करेगा।


1.3.2 ''जलग्रहण विकास (कोर्पस) निधि'' की स्थापना (Establishment of watershed Development fund)


    परियोजना अवधि समाप्त हो जाने के पश्चात् परियोजना के अन्तर्गत निर्मित परिसम्पत्तियों का रखरखाव कार्य परियोजना के स्थायित्व के लिए एक महत्वपूर्ण घटक है। अधिकांश पंचायतें आर्थिक रूप से सक्षम नहीं होती और वे अपने संसाधनों से रखरखाव कार्य करने में सक्षम नहीं होती। इस समस्या से निबटने के लिये सामुदायिक समूहों/पंचायतों आदि के प्रबंधन, सामुदायिक परिसम्पत्तियों के रखरखाव और प्रबन्धन और व्यवस्थापकीय जैसे कठिन कार्यों, सामाजिक, आर्थिक गतिविधयों के लिए सहायता प्रदान करने के लिए 'कोर्पस निधि' प्रस्तावित है। इसमें कुल परियोजना लागत की एक प्रतिशत राशि कोर्पस निधि के रूप में तथा अन्य एक प्रतिशत राशि राज्य सरकार और लाभ प्राप्तकर्ताओं से अंशदान के रूप में लेना प्रस्तावित है, जिसका प्रचलन निम्नानुसार किया जावेगा-


परियोजना अन्तर्गत जलग्रहण में निर्मित सामुदायिक परिसम्पत्तियों के उपयुक्त रखरखाव के सुनिश्चित करने हेतु अनुमोदित परियोजना लागत की एक प्रतिशत राशि ''कोर्पस निधि'' के रूप में चिन्हित की जावेगी।


एक प्रतिशत परियोजना अंशदान जलग्रहण समुदाय और राज्य सरकार के आर्थिक रूप से अंशदान के समरूपे होगी।


इस निधि को सामान्य संसाधनों के उपज की बिक्री करके तथा साख (क्रेडिट) संस्थाओं से उधार लेकर व साथ ही साथ जवाहर रोजगार योजना, पंचायत विकास निधि आदि के तहत रखरखाव स्त्रोतों के द्वारा और आवर्धित किया जावेगा।


डब्ल्यू.सी. बैक की स्थानीय शाखा में ''जलग्रहण विकास (कोर्पस) निधि'' के नाम से एक खाता खोलेगी। यह खाता सावधि जमा/ब्याज परक खाता होगा और इसका संचालन जलग्रहण संस्था के अध्यक्ष तथा डब्ल्यू.डी.टी. के परियोजना लीडर द्वार संयुक्त रूप से किया जायेगा।


उपभोक्ता समूहों के सदस्यों तथा लाभान्वित व्यक्तियों से प्राप्त नकद अंशदान राशि या सामग्री कि बराबर आर्थिक सहायता (जलग्रहण परियोजना खाते से निकाल कर) को जलग्रहण विकास (कोर्पस) निधि में अन्तरित कर दिया जायेगा । डब्ल्यू.ए/डब्ल्यू.सी. द्वारा अन्य किसी रूप में प्राप्त किया गया नकद, संग्रह, जैसे दान/अंशदान, जुर्माने की वसूलियों या दी गई सेवाओं आदि के लिए शुल्क को भी जलग्रहण विकास (कोर्पस) निधि में जमा कराया जायेगा। इसे इतिरिक्त जिला नोडल एजेन्सी (डी.एन.ए.) द्वारा परियोजना लागत की एक प्रतिशत राशि को कोर्पस निधि के रूप में उपर्युक्त खाते में अन्तरित कराया जायेगा। यह राशि जिला नोडल एजेन्सी द्वारा प्रतिधारित समुदाय संगठन घटक में से निकाली जायेगी।


1.3.3 वित्तीय शक्तियाँ  (Financial Powers)


अधिकांश कार्य वास्तव में उपभोक्ता समूहों द्वारा निष्पादित किये जाते हैं, रूपये 1000/तक के व्ययों के लिए जलग्रहण समिति के अध्यक्ष को प्राधिकृत किया गया है और रु. 1000/से अधिक के व्ययों के लिए जलग्रहण समिति के अध्यक्ष तथा जलग्रण विकास दल के सम्बन्धित सदस्य संयुक्त रूप से प्राधिकृत हैं।


जिला अध्यक्ष सामुदायिक संगठन, प्रशिक्षण कार्यक्रम आदि के तहत किसानों को यात्रा भत्ता/महंगाई भत्ता, कार्य दक्ष अतिथियों को मानदेय देने और किये जाने वाले अन्य फुटकर खार्जों के लिए कुछ लागत मानदण्ड (कौस्टनोर्मस) निर्धारित करेगा। ये लागत मानक (कौस्टनोर्मस) यथा सम्भव केन्द्र सरकार की सम्बन्धित योजनाओं के समान ही होंगे।


1.3.4 जिला स्तर को निधि के प्रवाह (फण्ड फ्लो) (Procedure of fund flow to the district level)प्रत्येक मंत्रालय की निधि प्रवाह क्रियाविधि विशिष्ट होगी। कृषि मंत्रालय के मामले में यह क्रियाविधि निम्नानुसार संचालित होगी-


(i) कृषि मंत्रालय, भारत सरकार से राज्य सरकार के नोडल विभाग जैसे कृषि विभाग/मृदा एवं जल संरक्षण/वाटरशेड प्रबंधन/राज्य भूमि विकास निगम लिमिटेड।


(ii) राज्य विभागों से कृषि/मृदा संरक्षण/वाटरशेड प्रबन्धन/राज्य भूमि विकास निगम आदि विभागों के जिलाध्यक्ष तक।


(iii) कृषि/मृदा संरक्षण आदि विभागों के जिला अध्याक्षों से संबन्धित जलग्रहण संस्थान (प्रबन्धन घटन के लिए पी.आई.ए. , विकास घटक के लिए डब्यू.सी. और क्षमता निर्माण घटक के लिए सहायता अभिकरण (सपोर्ट एजेन्सी) , यदि कोई हो) तक।


1.3.5 जलग्रहण बजट जारी करना (Procedure of fund flow to the district level)विभिन्न अभिकरणों को निधि जारी करने सम्बन्धी विस्तृत विवरण इकाई 3 में दिये गये हैं। वरसा जन  सहभागिता मार्गदर्शिका के परिशिष्ट 1 (अ) में विभिन्न अभिकरणों को प्रतिवर्ष जारी की जाने वाली निधि के मानक प्रतिशत सम्बन्धी सूचना संकलित है। परिशिष्ट 1 (ब) में उन जलग्रहण क्षेत्रों जिनका कुल बजट केवल रु. 22.5 लाख है (जहाँ औसत ढलान 8 प्रतिशत से कम है) को जारी की जाने वाली वास्तविक राशि के सम्बन्ध में सूचना संकलित है। परिशिष्ट 1 (स) में जलग्रहण क्षेत्रों जिनका कुल बजट आवंटन रु.30.00 लाख है (जहाँ औसत ढलान 8 प्रतिशत से अधिक है) को जारी की जाने वाली वास्तविक राशि सम्बन्धी सूचना संकलित है।


प्रशासनिक लागत के लिए 10 प्रतिशत आवंटन में से, 4 प्रतिशत राशि सीधी जलग्रहण समिति को जारी की जायेगी, 5 प्रतिशत राशि पी.आई.ए. को और 1 प्रतिशत जिला/राज्य नोडल एजेन्सी के पास रहेगी। जलग्रहण समिति के लिए प्रस्तावित राशि का उपयोग जलग्रहण सचिव और कार्यकताओं को मनदेय देने, जलग्रहण कार्यालय के किराये के भुगतान और कार्यालय के विभिन्न फुटकर ब्ययों को करने के लिए किया जायेगा। अधिकांश ग्रामों में सामुदायिक भवनों/निजी मकानों आदि में निःशुल्क व्यवस्था का प्रबन्ध किया जायेगा। ग्राम स्तर पर निःशुल्क आवास व्यवस्था उपलब्ध न होने की स्थिति में ही डब्ल्यू.सी. कार्यालय भवन किराये पर लिया जाना चाहिए। पी. आई. ए. की प्रशासनिक निधि का उपयोग परियोजना अवधि के लिए संविदा के आधार पर भाडे़ पर लिये गये डब्ल्यू.डी.टी. के 4 सदस्यों के वेतन जलग्रहण क्षेत्र में किराये पर लिये गये डब्ल्यू.डी.टी. कार्यालय का किराया भुगतान डब्ल्यू.डी.टी के यात्रा भत्ता मंहगाई भत्ता. परिवहन, अशंकालीन लेखा सहायक के मानदेय, प्रतिवेदनों के अंकण कार्य और अन्य फुटकर व्ययों के लिए किया जावेगा। इस प्रयोजना हेतु पी.आई.ए. राष्ट्रीयकृत/सहकारी बैंक में बचत खाता खोलेगा, जिसका संचालन पी.आई.ए. के सक्षम प्रधिकारियों द्वारा किया जायेगा। जिला/राज्य नोडल एजेन्सी के प्रशासनिक व्यय का उपयोग विषय विशेषज्ञों द्वारा जलग्रहण क्षेत्रों का दौरा करने, जलग्रहण कार्यक्रमों को सहयोग देने के लिए, अल्पविधि परामर्शियों के यात्रा भत्ता/मंहगाई भत्ता के भुगतान पर किया जायेगा।


सामुदायिक संगठन तथा अन्य गतिविधियों के लिए आंवटित 7.5 प्रतिशत राशि में से 30 प्रतिशत राशि प्रवेशा बिन्दु गतिविधियों के लिए जिला अध्यक्ष द्वारा डब्ल्यू.सी. को सीधे जारी की जायेगी, 2.0 प्रतिशत राशि पी.आई.ए. को ग्राम स्तरीय सामुदायिक संगठनकर्ताओं के मानदेय स्वीकृत करने (साख एवं मितव्ययिता गतिविधियों से सम्बन्धित स्वयं सहायता समूहां और उपभोक्ता समूहों को पोषित करने के लिए ) तथा शेष 2.5 प्रतिशत राशि जिला मुख्यालय पर कार्यक्रम व मार्गदर्शिका के प्रचार के लिए, माइक्रों स्तर पर प्रौद्योगिकीय निवेश  के उत्पादन को सहायता देने हेतु ( अर्थात एन. पी. वी. नीम आधारित कीटनाशियों, रेशम उत्पादन आदि के लिए रेशम कीडों के पालन आदि) ग्राम स्तर पर प्रौद्योगिकी सूचना के लिए सहायता हेतु, जलग्रहण समिति की कोर्पस निधि के लिए प्रावधान हेतु जलग्रहण मार्गदर्शिका आदि के प्रचार-प्रसार पर होने वाले विविध व्ययों के लिए रोक ली जायेगी।


प्रशिक्षण कार्यक्रम की 5.0 प्रतिशत राशि में से पी. आई. ए. को 2.0 प्रतिशत राशि एक्सपोजर विजिट और डब्ल्यू.ए./डब्ल्यू.सी., एस.एच.जी. तथा यू.जी. के प्रशिक्षण के लिए जारी की जायेगी, 2.0 प्रतिशत राशि जिला नोडल एजेन्सी को पी. आई. ए., डब्ल्यू. डी. टी. आदि के लिए अनुस्थापन (ओरियन्टेशन ) और प्रशिक्षण पाठ्यक्रम आयोजित करने के लिए जारी की जायेगी, शेष एक प्रतिशत निधि राज्य मुख्यालय पर, राष्ट्रीय और राज्य स्तरीय प्रशिक्षण संगठनों को सहायता देने, राज्य स्तरीय प्रश्क्षिणार्थियों के प्रशिक्षण के लिए, जिला एवं राज्य स्तर पर वरिष्ठ आधिकारियों पी. आई. ए. के ओरियेन्टेशन के लिए, जिला अध्यक्षों की वार्षिक कार्यशाला के आयोजन स्वसमर्थित संगठनों आदि की आधाभूत आवश्यकताओं के लिए रोक ली जायेगी। कुल मिलाकर परियोजना परिव्यय की 10 प्रतिशत राशि प्रथ वर्ष में, 20 प्रतिशत राशि द्वितीय वर्ष में, 27.3 प्रतिशत राशि तीसरे वर्ष में , 21.2 प्रतिशत राशि चैथे वर्ष में और शेष 21.5 प्रतिशत राशि पाँचवे वर्ष में जारी की जायेगी। प्रत्येक वर्ष निधि दो बराबर किश्तों में जारी की जायेगी। प्रथम किश्त के बाद दूसरी किश्त, पूर्व किश्त की 50 प्रतिशत राशि के उपयोगिता के पश्चा्त जारी की जायेगी।


नोडल विभाग का जिलाध्यक्ष प्रत्यसेक परियोजना राशि में से अपने प्रबन्धन घटक के तहत अंश को रोकते हुए परियोजना क्रियान्वयन एजेन्सी को प्रशासनिक लागत सामुदायिक संगठन और प्रशिक्षण कार्यक्रम के लिए निधि जारी कर सकेगा। जिला अध्यक्ष, पी. आई. ए. से प्राप्त सहमति के आधार पर ई.पी.ए. और कार्य घटक ( वक्र्स कम्पोनेन्ट ) के लिए राशि सीधे डब्ल्यू.ए. को जारी कर सकेगा। परियोजना क्रियान्वयन एजेन्सी को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि जलग्रहण समिति द्वारा डब्ल्यू.ए. के नाम से जलग्रहण परियोजना खाता जिला अध्यक्ष द्वारा ई.पी.ए. और कार्य घटक के लिए निधि जारी करने से पूर्व खोला गया है।


1.3.6 निधि के पुनः आंवटन में लचीलापन (flexibility in re-allocation of funds )


यथासम्भव पी. इाई. ए. मार्गदर्शिका में दर्शाये अनुसार विस्तृत आंवटनों के अन्तर्गत निधि के उपयोजन को प्रतिबंधित करेगा, तथापि विशेष परिस्थितियों में एक उप घटक से दूसरे उप घटक के लिए 10 प्रतिशत की सीमा तक बजट का पुनः आंवटन किया जा सकेगा। विकास घटक की किसी राशि को प्रबन्धन घटक के लिए अन्तरित नहीं किया जायेगा तथापि प्रबन्धन घटक की किसी बचत को विकास घटक के लिए अनतरिक किया जा सकेगा।


1.3.7 क्रियान्वयन चरण का डब्ल्यू.सी. द्वारा सहभागिता प्रबन्धन  


(particpatory management by the watershed committee during impplementation phase )


जिला अध्यक्ष से निधि प्राप्त होने के पश्चा्त डब्ल्यू.सी. विभिन्न कार्यो के क्रियान्वयन के लिए प्राथमिक उत्तरदायित्व का पूर्वानुमान लगाना प्रारम्भ करेगी। पाँच पहलू ऐसे हैं जिन पर क्रियान्वयन चरण के दौरान विशेष ध्यान दिया जाना अपेक्षित हैं, (i)अभिलेखों एवं लेखों केा संधारण, (ii)अंशदान की वसूली, (iii)सामाजिक अंकेक्षण और पारदर्शिता, (iv)समूह एक्शन/ विरोध प्रस्तावों का सरलीकरण (v)तथा समुदाय को सशक्त बनाना।


1.3.8  लेखों व अभिलेखों का रखरखाव ( maintenance of accounts )


उन अभिलेखों और लेखों की सूची जिन्हें कि डब्ल्यू.सी. स्तर और पी. आई. ए./ डब्ल्यू. डी. टी. स्तर पर संधारित किया जाना अपेक्षित है, मार्गदर्शिका के अनुसार परिशिष्ट-1 में दी गई हैं। इन अभिलेखों से विभिन्न प्रगाति प्रतिवेदनों को तैयार करने, निधि जारी करने हेतु मागं पत्र तैयार करने और लेखों के अंकेक्षण के लिए आधार प्राप्त होगा। समितियों के पंजीकरण अधिनियम के तहत डब्ल्यू.ए. के लेखों का वार्षिक अंकेक्षण अपेक्षित होगा। इस प्रयोजन हेतु जिला नोडल एजेन्सी चार्टर्ड एकाउन्टेन्ट्स का एक पैनल बनायेगा, प्राथमिक रूप से सी. ए. जी. द्वारा अनुमोदित सी. ए. होगें। डब्ल्यू.ए. पैनल में से अपनी पंसद के चार्टर्ड अकाउन्टेट् का चयन  कर सकता है। डब्ल्यू.ए. का अध्यक्ष प्रत्येक वर्ष वित्तीय वर्ष की समाप्ति से छः माह के भीतर अंकेक्षित उपयोगिता विवरण जिला नोडल एजेन्सी को भेजेगा।


1.3.9 समुदाय में अंशदान की दर ( beneficiary contribution of the community )


विभिन्न गतिविधियों और समुदायों के लिए अंशदान की दर्रे भिन्न-भिन्न होगीं। वरसा जन सहभागिता मार्गदर्शिका के अनुच्छेद 79, 80 तथा 81 में दिये गये विस्तृत विवरण के अनुसार व्यक्तिपरक गतिविधियों के लिए अंशदान की सीमा 10 से 50 प्रकितशत और समुदाय परक गतिविधियों के लिए न्यूनतम 5 प्रतिशत होगी। अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के लिए अंशदान की सीमा व्यक्तिपरक गतिविधियों के 5 से 25 प्रतिशत और समुदाय परक गतिविधियों के लिए न्यूनतम 5 प्रतिशत होगी। दो घटकों के बजट के कुछ भाग का उपयोग अर्थात भूमि धारत करने वाले परिवारों के लिए फार्म उत्पादन पक्ष्ति और भूमिहीन किसानों के लिए जीविका समर्थन प्रणाली का उपयोग अनुच्छेद 82 के अनुसार उपभोक्ता समूहों और स्वयं सहायता समूहों द्वारा परिक्रामी निधि (रिवोल्विंग फण्ड) के रूप में किया जायेगा।


मृदा संरक्षण उपायों के मामलें में कार्य रिज टू वेली से प्रारम्भ किया जाना चाहिए। इससे अपर रिचेज में सीमान्त भूमि के विकास में सहायता मिलेगी और लोअर रिचेज में हार्वेस्ंिटग स्ट्रक्चर में गाद जमाव भी कम होगा, तथापि अपर रिचेज के कुछ किसान अक्रियाशील होते, ऐसे क्षेत्रों में कार्य किसानों को सहभागी बनने के लिए प्रोत्साहित किये जाने तक स्थगित रखा जाना चाहिए। ऐसी स्थितियों में उपायों के डिजायन में आवश्यक परिवर्तन किये जाये (उपर्युक्त किसानों द्वारा सहभागिता न करने से उत्पन्न प्रभावों को कम करने के लिए )।


वाटर हार्वेस्टिंग स्ट्रक्चर के मामले में केवल उन्ही कार्यो के सम्बन्ध में विचार किया जाये, जिनके लिए वास्ताविक उपभोक्ताओं का लिखित मांग पत्र प्राप्त होता है। ऐसे उपायों के लिए सम्भावित लाभान्वितों को सही रूप में चिन्हित किया जाना चाहिए तथा प्रत्येक उपभोक्ता से समतुल्य लाभ अनुपात में अंशदान प्राप्त किया जाना चाहिए। ऐसे मामले जिनमें कि रन आफ वाटर की उपलब्धता के मुकाबले ऐसे ढांचे की मागं अधिक है, डब्ल्यू.डी.टी. के माध्यम से उचित सरलीकरण करके सामुदायिक परामर्श द्वारा प्राथमिकीकरण कार्य किया जाना चाहिए। ऐसे परिवारों जिनको कि प्रस्तावित उपायों से हानि होने की सम्भावना हैं, से विरोधाभास भी हो सकता है। अतः उपर्युक्त विरोधाभास का समाधान हो जाने के पश्चा्त ही ऐसे कार्यो का क्रियान्वयन प्रारम्भ किया जाये।


1.3.10 सामाजिक अंकेक्षण और पारदर्शिता (social audit and transparency)समुदाय के सदस्यों के बीच विरोधाभास कम करने के लिए ग्राम स्तर पर सामाजिक अंकेक्षण और पारदर्शिता होना एक महत्वपूर्ण तकनीक है। इससे समुदाय में कुछ प्रभावशील व्यक्तियों की अपेक्षा सदस्यों के बहुमत को सशक्त बनाने में , अल्प संसाधन वाले परिवारों की सहभागिता को बढानें में भी सहायता मिल सकेगी। कार्यक्रम में पारदर्शिता लाने की दृष्टि से निम्नलिखित नौं कदम उठानें चाहिए विशिष्ट पहलुओं जैसे रणनीतिक योजना ( स्टेटजिक प्लान) योजना के मुख्य बिन्दु, एस. एस. आर. आदि से सम्बन्धित पोस्टरों को दीवार पर लगाना, समुदाय के सदस्यों को परियोजना दृष्टिकोण ( प्रोजेक्ट उप्रोच), रीतियों आदि के बारे में सदस्यों का अनुस्थापन्न (ओरियेन्ट ) करने की दृष्टि से प्रारम्भिक स्तर पर समुदाय के साथ अनेकों खुली बैंठकों का आयोजन, सहभागिता से प्रस्ताव प्राप्त हेतु औपचारिक प्रार्थना पत्र पद्वति लागू करना, वाटर हार्वेस्टिंग स्ट्रक्चर जिनकी लागत अधिक है, के मामले में सम्बन्धित व्यक्तियों को चैकों के माध्यम से भुगतान करना, सम्बन्धित उपभोक्ताओं के परामर्श से प्रत्येक कार्य का तकनीकी प्राक्कलन तैयार करना, क्रियान्वयन कार्य प्रारम्भ करने से पूर्व सम्बन्धित उपभोक्ताओं के अंशदान का सुनिश्चितयन ( उन मामलों के अतिरिक्त जिनमें कि उपभोक्ता श्रमिक के रूप में अपना अंशदान करते हैं ) एस. एस. आर. के अनुसार श्रमिकों को पूर्ण भुगतान , क्रियान्वयन चरण के दौरान भौतिक एवं वित्तीय प्रगति की समीक्षा हेतु बार-बार डब्ल्यू.सी. को उसके कार्यकारी निकाय के रूप में कार्य करने को बढावा ( फेसिलिटेट ) देना।


1.3.11 कामन मार्गदर्शिका के अनुसार गतिविधियों का क्रियान्वयन


(execution of activities as per common guidelines )


जैसा के पूर्व में अध्यययों में अवगत कराया गया है कि जलग्रहण परियोजनाओं के क्रियान्वयन के लिए ग्राम सभा द्वारा जलग्रहण विकास दल की तकनीकी सहायता से गाँवों में जलग्रहण समिति का गठन किया जाएगा। जलग्रहण समिति में कम से कम 10 सदस्य होगें जिनमें से आधें सदस्य गाँव के स्वयं सहायता समूह, उपभोक्ता समूह, अनुसूचित जाति/जनजाति समुदाय/ महिलाओं तथा भूमिहीन व्यक्तियों के प्रतिनिध होंगे। जलग्रहण विकास दल का एक सदस्य जलग्रहण समिति में प्रतिनिधि के रूप में शामिल होगा। जहाँ एक पंचायत में एक से अधिक गाँव शामिल हो वहाँ वे सम्बन्धित गाँव में जलग्रहण परियोजना के प्रबन्धन हेतु प्रत्येक गाँव के लिए एक पृथक उप समिति गाठित करेगें। जहाँ एक जलग्रहण परियोजना में एक से अधिक पंचायतें शामिल होंगी वहाँ प्रत्येक ग्राम पंचायत के लिए अलग से समितियां गठित की जायेंगी। जलग्रहण समिति को सोसायटी रजिस्ट्रेशन अधिनियम 1860 के अन्तर्गत पंजीकृत कराया जाना होगा।


जलग्रहण समिति जलग्रहण परियोजना के लिए निध्यिाँ प्राप्त करने हेतु एक पृथक बैंक खाता खोलेगी और इस निधि को अपने कार्याकलापों को करने के लिए उपयोग में लायेगी। जलग्रहण समिति के सचिव का चयन ग्राम सभा की बैठक में किया जायेगा जो कि एक स्वतन्त्र वेतनभोगी कार्यकर्ता होगा तथा वर्तमान ग्रामसेवक/पंचायत सचिव से पृथक होगा। काॅमन मार्गदर्शिका के अनुसार जलग्रहण परियोजना की अवधि 4-7 वर्ष हो सकती है जिसमें प्रथम 1-2 वर्ष प्रारम्भिक चरण, द्वितीय 2-3 वर्ष जलग्रहण कार्य चरण तथा तृतीय 1-2 वर्ष समेकन और निवर्तन चरण होगें। प्रारम्भिक चरण की गतिविधियों में ामर्गदर्शिका का आमुखीकरण योजना का प्रचार-प्रसार, प्रशिक्षण, दक्षता वृद्वि एवं दूरस्त स्थलाों का अध्ययन भ्रमण, प्रवेश बिन्दु गतिविधियां, पी. आर. ए. अभ्यास, संस्थागत व्यवस्थाएं विकसित करना, विस्तृत परियोजना प्रतिवेदन तैयार करना इत्यादि सम्मिलित है। वास्तविक कार्य चरण के अन्तर्गत जलग्रहण विकास की रीज टू वैली के आधार पर उपर से नीचे की और चलते मृदा एवं जल संरक्षण उपचार, कृषि एवं अकृषि भूमि में , कृषि एवं पशुपालन, उत्पादन विधियां के साथ-साथ  जीविकोपार्जन एवं फसल के विविधिकरण की गतिविधियां, निकास नाली उपचार अन्तर्गत विभिन्न प्रकार के जल संरक्षण एवं जल भण्डारण ढांचों का निर्माण इत्यादि ली जा सकती है। स्वयं सहायता समूह का सशक्तिकरण भी आवश्यक है। तृतीय चरण के अन्तर्गत द्वितीय चरण में विकसित संसाधनों की उत्पादकता एवं रख रखाव किए जाने पर जोर दिया गया है।


जलग्रहण क्षेत्र के समग्र विकास के लिए विस्तृत परियोजना रिर्पोट ( डी. पी0. आर. ) जलग्रहण समिति की सक्रिय भागीदारी के साथ जलग्रहण विकास दल द्वारा तैयार की जायेगी। इस विस्तृत परियोजना रिर्पोट में सर्वेक्षण संख्याओं के विशिष्ट ब्यौरों, स्वामित्व सम्बन्धी ब्यौरों तथा प्रत्येक वर्ष के लिए प्रस्तावित कार्यो/कार्यकलापों के स्थान पर चित्रण करने वाले एक नक्शे सहित जलग्रहण के स्पष्ट सीमाकंन को अनिवार्य रूप से शामिल किया जाएगा। इस रिर्पोट को युक्तिसंगत ढांचां विश्लेषण जिसमें लक्ष्य, प्रयोजन, परिणाम, कार्यकलाप, निर्विष्टियाँ, चुनौतियाँ, और प्रगाति के सूचक शामिल होते हैं। तकनीकी रूप से परिपूर्ण एवं उच्च गुणवत्तायुक्त विस्तृ परियोजना रिर्पोट को तैयार करने का समस्त उत्तरदायित्व परियोजना क्रियान्वयन संस्था का होगा। ग्राम सभा द्वारा अनुमोदित किए जाने के बाद परियोजना क्रियान्वयन संस्था का विस्तृत परियोजना रिर्पोट को जिला जलग्रहण विकास इकाई के अनुमोदन हेतु प्रस्तुत करेगी।


जलग्रहण परियोजनाओं हेतु विभिन्न घटकवार बजट आवंटन निम्नानुसार होगा-






























































बजट घटक का प्रतिषत



कुल बजट



- प्रषासनिक व्यय



10



- माॅनीटरिंग



1



- मूल्यांकन



1



तैयारी चरण, जिसमें सम्मिलित है''



 



- प्रवेष बिन्दु गतिविधियाँ



4



-संस्थान व क्षमता निर्माण



5



-विस्तृत परियोजना प्रतिवेदन (डी. पी. आर.)



1



जलग्रहण कार्य चरण



 



-जलग्रहण विकास कार्य



50



-संसाधनहीन व्यक्तियों हेतु आजीविका गतिविधियां



10



-उत्पादन व्यवस्था एवं सूक्ष्म उद्यम



13



सघनीकरण चरण



5



कुल



100



 


किश्तें जारी करने की प्रक्रिया (procedurre for release of funds )परियोजना अवधि के दौरान कार्यान्वयन के तीनों चरणों के लिए निधियों का केन्द्रीय भाग जिला जलग्रहण विकास इकाईयों ( डी.डब्ल्यू. यू. ) एजेंसी को निम्नलिखित पद्वति में अथवा नोडल मंत्रालय द्वारा किए गए निर्णय के अनुसार जारी किया जाएगा।



  • प्रारम्भिक चरण के कार्यकलापों को शामिल करते हुए प्रथम किश्त अर्थात केन्द्रीय भाग के 20 प्रतिशत भाग को राज्य स्तरीय नोडल एजेंसी (एस.एल.एन.ए. ) द्वारा परियोजना स्वीकृत किए जाने पर तुरन्त ही जारी कर दिया जाएगा।

  • परियोजना लागत के प्रति केन्द्र के भाग की 50 प्रतिशत की दूसरी किश्त प्रारम्भिक चरण के पूरा होने के पश्चात् और प्रथम किश्त के 60 प्रतिशत भाग के व्यय होने पर उचित  प्रमाणीकरण और दस्तावेजों को प्रस्तुत किए जाने पर जारी की जाएगी।


 



  • 30 प्रतिशत की तीसरी किश्त अर्थात परियोजना लागत के कार्य चरण के प्रति केन्द्र के भाग का 25 प्रतिशत और समेकन चरण के 5 प्रतिशत भाग को जारी की गई कुल निधियों के 75 प्रतिशत व्य के उचित प्रमाणीकरण और इसके समर्थन में संगत दस्तावेज प्रस्तुत किए जाने के बाद जारी की जाएगी।


 



  • समूह कार्यवाही और विरोध समाधान


 



  • 3.12 समूह कार्यवाही और विरोध समाधान का सरलीकरण


(simplification of spacific solutions and group action )समूह कार्यवाही और विरोध समाधापन का सरलीकरण जलग्रहण संसाधनों के सतत् विकास की एक और महत्वपूर्ण आवश्यकता है। इसके लिए सामाजिक पहलुओं के प्रति उच्च स्तर की संवेदनशीलता तथाप्रौद्योगिकी अन्तःक्षेपों के प्रति स्पष्ट समझ आवश्यक है। सामाजिक अन्तःक्षेपों के प्रति आवश्यक सामाजिक कार्यवाही को क्रियान्वयन से पूर्ण कर लिया जावें।


1.3.13 डब्ल्यू.सी. द्वारा कार्य के भुगतान की प्रक्रिया ( payment procedure for the work by w.)


 


कार्यो का क्रियान्वयन तभी प्रारम्भ होवें जबकि वास्ताविक उपभोक्ता समूह आगे आने को इच्छुक है। उपभोक्ता समूहों को उनके स्वयं के खेतों में वांछित गतिविधियों के उत्पादन हेतु कुशल श्रमिकों की पहचान करने की स्वतन्त्रता है। श्रमिकों को भुगतान सीधे ही जलग्रहण सचिव द्वारा नकद ( यदि राशि कम है ) अथवा चैक द्वारा किया जावेगा। वास्ताविक उपभोक्ता से कार्यो के सन्तोषजनक क्रियान्वयन के प्रमाण-पत्र प्राप्त किये जाने के उपरान्त यह किया जाये। जलग्रहण समिति के पदाधिकारियों को पहले से ही श्रमिकों से सम्पर्क स्थापित करने अथवा उपभोक्ता से अंशदान प्राप्त करने से पूर्व ही कार्यो के क्रियान्वयन हेतु खेतों में अंकन करने से बचना चाहिये अन्यथा इससे कार्यक्रम ग्राम स्तर पर भी ऊपरी नीचे की आवधारणा वाला बन जायेगा।


1.3.14 क्रियान्वयन चरण के दौरान प्रबन्धन में लचीलापन लाना


( flexibility in management during implementation phase )


जलग्रहण कार्यक्रम एक समयबद्ध कार्यक्रम है और इसलिए लक्ष्यों का निर्धारण केवल कार्यो को समय पर पूर्ण करने के लिए ही नहीं अपितु सही पुनर्विलोकन और अनुवीक्षण के लिए तकनीकी ( मेंकेनिज्म) प्रवाहित करने हेतु भी आवश्यक है। सहभागिता एप्रोच के अन्तर्गत कार्यक्रम में बडी़ भारी संख्या में स्टेक होल्डर के सक्रिय रूप से सहयोग को सुगम (फेसिटीलेट ) बनाया जाना है, पारदर्शिता बनाये रखी जानी है और अंशदान  वास्ताविक उपभोक्ताओं से ही संकलित किया जाना है। अतः कुछ मामलों में लक्ष्यों के अनुसार निर्धारित समय में कार्य पूर्ण नहीं हो पाते, कार्यक्रम के कुल प्रबन्धन में अंततः कुछ लचीलापन लाना आवश्यक है। अपेक्षित लचीलापन लाने के प्रोत्साहन हेतु निम्न विशिष्ट प्रावधानों पर विचार किया जा सकता है।


क्रियान्वयन चरण के दौरान विभिन्न जलग्रहण क्षेत्रों की प्रति का स्तर भिन्न-भिन्न होता है, इसका कारण इनकी परिपक्वता व सहभागिता एप्रोच की अनुक्रिया में अन्तर होना है। प्रगाति में कुछ मात्रा का अन्तर अधिक अर्थ नहीं रखता, यह प्रगाति धीरे-धीरे बाद में भी हो सकती है। तथापि यदि कुल जलग्रहण क्षेत्रों में समग्र विकास की प्रगाति यदि अत्यधिक धीमी है और निधि का उपयोग असम्भव है, तो यह परामर्श दिया जाना सही होगा कि अंशदायी मानकों, पारदर्शिता आदि का अनुवीक्षण किये बिना उस जलग्रहण में वित्तीय लक्ष्यों को प्राप्त करने के प्रयासों की अपेक्षा निधि को उसी पी.  आई. ए. के अन्तर्गत समीप के जलग्रहण में हस्तांतरित कर दिया जाये। इस व्यवस्था से जलग्रहण समिति के सदस्यों में स्वतः ही गंभीरता आयेगी और बजट हस्तांन्तरण किये जाने की आवश्यकता को कम किया जा सकेगा, विशेषत यदि नियमित आधार पर प्रगाति निर्धारण का सही रूप सेबोधन किया जाये।


समेकित विकास की दृष्टि से जलग्रहण के सम्पूर्ण क्षेत्र के लिए प्रस्तावित सम्पूर्ण घटकों के लिए विस्तृत प्लान तैयार करने की प्रवृत्ति है। यह देखा गया है कि सम्पूर्ण जलग्रहण क्षेत्र की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए उपलब्ध निधि अपर्याप्त है। दूसरी ओर यह भी देखा गया है कि कुछ परिवार कार्यक्रम में भागीदारी करने के लिए कतई इच्छुक नहीं होते, विशेष रूप ये यदि उन्हें अंशदान देना पड़ता हो। अतः दृष्टिकोण ( अप्रोच) में परिवर्तन करने की आवश्यकता है तथा कार्यक्रम को मांग अनुरूप बनाना होगा, इसमें क्रियान्वयन केवल उन्हीं क्षेत्रों में प्रारम्भ किया जायेगा जहां किसान अपेक्षित अंशदान करने के इच्छुक हैं। इस दृष्टिकोण से जो परिवार वित्तीय मानकों (अंशदान, परिक्रमी निधि आदि ) के अनुसार आगे जाने के लिए तैयार नहीं होते, उन्हें कार्यक्रम में शामिल नहीं किया जाये, तथापि इन परिवारों को जब कभी उनकी मनःस्थिति हो, कार्यक्रम में सम्मिलित होने का अधिकार होगा।


सामान्यतः ग्रामों और पी. आई. ए. का अन्तिम रूप से चयन सम्पूर्ण परियोजना अवधि के लिए किया जाता है, चाहे बाद की अवधि में उनकी निष्पादकता संतोषजनक न पाई जाये। निष्पादन के अवधिक पुनर्विलोकन के लिए उद्येश्य परक प्रक्रिया विकसित करना आवश्यक है ताकि कुछ परियोजनाओं को बीच में ही बंद या स्थागित किया जा सके, यदि उनकी निष्पादकता ठीक नहीं है या निधि का सही प्रबन्धन नहीं पाया जाता है।


डी.डी.पी., डी. पी. ए. पी. , डब्ल्यू. डी. पी. योजनान्तर्गत जलग्रहण विकास कार्यक्रमों के क्रियान्वयन के दौरान वांछित परिणाम हासिल करने एवं उद्यश्यों की पूर्ति करने, उपलब्ध धनराशि का सदुपयोग सुनिश्चित करने और अधिक से अधिक पारदर्शिता क्रियान्वयन प्रक्रिया के दौरान लाने के सम्बन्ध में राज्य सरकार के स्तर से विशिष्ट आदेश समय-समय पर जारी किये गये हैं। इस व्यवस्था से जहां एक और जलग्रहण विकास कार्यक्रमों का क्रभावी क्रियान्वयन सुनिश्चित होता है वहीं कार्या की मानीटरिंग एवं मार्गदर्शन उपलब्ध होता है। जलग्रहण विकास एवं भू संरक्षण विभाग द्वारा इस सम्बन्ध में जारी परिपत्रों का सदेंश निम्नानुसार हैं-


1.4.1 परिपत्र-1( circular-1 )


जलग्रहण क्षेत्र में आने वाले ग्रामीण समुदाय के प्रत्यक्ष लाभ के उद्येश्य से प्राकृतिक संसाधन विकास गतिविधियों का क्रियान्वयन प्राथमिकता के आधार पर कराया जाता है। इस सम्बन्ध में निम्नानुसार व्यवस्था स्थापित की गई हैं-



  1. जलग्रहण क्षेत्र लिये जाने का कारणः जलग्रहण कार्यक्रम लिये जाने का मुख्य उद्येश्य प्राकृतिक संसाधनों की पहचान कर उनके सदुपयोग की क्षमता विकसित करना जिससे कि ग्रामीण समुदाय द्वारा प्राकृतिक संसाधनों का कुशलतापूर्वक सतत्/निरन्तर उपयोग किया जाता रहे, विशेष रूप से समुदाय के गरीब तबके के द्वारा। ग्रामीण अर्थव्यवस्था क्षेत्र में पाये जाने वाले प्राकृतिक संसाधनों की स्थिति, प्रकार, मात्रा, प्रचुरता पर निर्भर करती हैं, अतः ग्रामीण समुदाय के साथ-साथ प्राकृतिक संसाधनों का सक्रिय समन्वय स्थापित किया जाना बेहद आवश्यक है। अतः ऐसे कार्य जिनसे कि समुदाय को लाभ प्राप्त नहीं होता हो, नहीं लिये जाने चाहिए।

  2. जलग्रहण क्षेत्र की आवश्यकता जनसंख्या की बढती दर को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि प्राकृतिक संसाधनों पर दबाव उनके दोहन एवं कुप्रबन्ध की वजह से अत्यधिक हो गया है। प्राकृतिक आपदायें अथवा अन्य कारक जैसे-बरसात की विषमता, हवाएँ, अकाल, बाढ प्राकृतिक संसाधनों पर प्रतिकूल प्रभाव डालती हैं। परिणामस्वरूप प्राकृतिक संसाधनों में क्षय/कमी दृष्टिगत होती चली जाती जलग्रहण परियोजनाएं लिये जाने का मुख्य उद्येश्य इस सम्पूर्ण प्रक्रिया को परिवर्तित करना है जिससे कि बहुमूल्य संसाधन जैसे मिटटी एवं जल समुदाय हेतु पर्याप्त गुणवत्ता एवं मात्रा अनुसार उपलब्ध रहे। जलग्रहण परियोजनाओं का उद्येश्य कृषि एवं पशुपालन क्षेत्र में उत्पादकता बढाते हुए आत्मनिर्भरता प्राप्त करना एवं स्थायी रोजगार के स्थानीय स्तर पर साधन उपलब्ध कराकर स्थानीय जनसमुदाय के सामाजिक आर्थिक विकास सुनिश्चित करना भी है। अतः जलग्रहण परियोजनाओं के अन्तर्गत ऐसे कोई कार्य सम्मिलित नहीं किये जाने चाहिए जिससे कि समुदाय की जीविकापार्जन में उन्नति अर्जित नहीं होती हो। जलग्रहण परियोजनाओं की कार्य योजना तैयार करते समय इस बिन्दु का ध्यान रखा जाना चाहिए।

  3. प्रभाव दर्शाते कार्यो पर अधिक जोर हरियाली मार्गदर्शिका के अनुसार 85 प्रतिशत राशि भौतिक कार्यो हेतु प्रबंधित की गई है। अतः यह आवश्यक हो जाता है कि इस प्रकार की गतिविधियां क्रियान्वित की जावें जिन्हें मापा अथवा आका जा सके एवं भविष्य में दीर्घकालिक अवधि हेतु उपयोग, वह भी परियोजना समाप्ति उपरान्त सुनिश्चित किया जा सके। इसका तात्पर्य यह है कि प्रत्येक गतिविधि से आउट-पुट मापदण्ड निकल कर आने चाहिए।

  4. उपरोक्त परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए यह निर्णय लिया जाता है कि निम्न प्रकार की गतिविधियों का क्रियान्वयन नवीन परियोजनाओं में किया जावें।



  • फार्म पौण्ड अथवा टांके का निर्माण केवल मात्र गरीबी की रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाले लाभार्थियों, अनुसूचित जाति/जनजातित के लाभार्थियों अथवा लघु एवं सीमान्त कृषकों के खेतों पर ही किया जावें।

  • नवीन परकोलशन टैंक का निर्माण गांव की समुदायिक भूमि पर कराया जावें। विद्यमान तालाबों, नाडियों इत्यादि के गहरीकरण का कार्य नहीं लिया जावें। तालाब अथवा टैंक के साइडों में पिचिंग (पत्थरों द्वारा स्थरीकरण ) का कार्य आवश्यक है।

  • नालों एवं गलियों में नये चैकडेम का कार्य।

  • गाँव के कुँओं में भू जल पुनर्भरण/रिचार्ज हेतु परकेलेशन टैंक अथवा अन्य जल भण्डारण संरचनाओं का निर्माण ( नई एवं अद्र्व पक्की मात्र )।

  • ऐसे कार्य, जैसे सम्पूर्ण मृदा कार्य, मृदा, के बण्ड, मृदा के अवरोध, कणा बण्ड इत्यादि, जो पूर्णतया अस्थायी प्रकृति के है एवं वर्षाकाल के दौरान उनके नष्ट होने की संभावना बन सकती है, नहीं लिये जाने चाहिए। इसके स्थान पर ऐसे कार्य जिसमें कि जल का सुरक्षित निकास सम्भव हो सके, जैसे-चैकडैम्स, वेस्ट वियर अथवा अद्र्व पक्के बण्ड निर्मित किये जाने चाहिए। पहाडी़ क्षेत्रों में कन्टूर ट्रेन्चेज, बैंच टेरेसिंग, ग्रेडेड टेरेस (जिनमें कि मामूली ढलान ढाल के लम्बवत हो ) पत्थरों की सहायता से तैयार अर्दन बण्ड, पत्थरों से निर्मित पिचिंग को, गली प्लाग (छोटे नालों में ), कन्टूर बण्ड ( पतली सूखे पत्थरों से निर्मित पिचिंग सहित) का निर्माण निर्धारित मापदण्डों के अनुसार किया जा सकता है, जिससे कि वर्षा जल का बहाव नियंत्रित हो सके एवं जल का अन्तःप्रवाह बढ सके। यह गतिविधि वानस्पतिक आवरण के साथ भी की जा सकती है।

  • सामुदायिक भूमि अथवा राजकीय भूमि में चारागाह विकास की गतिविधि के सम्बन्ध में यदि ग्रामसभा में सर्वसम्मति से निम्न आशय का प्रस्ताव पारित कर दिया जाता है तो उक्त कार्य प्राथमिकता के आधार पर लिया जा सकता हैं-(अ) परियोजना अवधि की ससमाप्ति के उपरांत विकसित चारागाह भूमि का रखरखाव एवं प्रबंधन पंचायत द्वारा किया जावेगा, (ब) 50 प्रतिशत चारागाह भूमि में खुली चराई पर पूर्णतः प्रतिबंध लगाया जावेगा एवं लोगों को चारा काटकर ले जाने तथा पंचायत द्वारा निर्धारित न्यूनतम शुल्क जमा कराने की सहमति बनती हो।

  • राजकीय बंजर गोचर अथवा नदी नालों के सहारे की भूमि पर किये   जाने वाले सामान्य प्रकृति के पौधारोपण कार्य तब ही लिये जावें जबकि स्थानीय ग्राम पंचायत अथवा वन विभाग न्यूनतम  3 वर्ष की अवधि हेतु रखरखाव हेतु सहमत हो। यदि पौधारोपण के रखरखाव की समुचित एवं प्रभावी व्यवस्था स्थापित कर अमल में नहीं लाई जाती है तो पौधों की जीवितता की सम्भावना न्यूनतम रह सकती है। इस उद्येश्य की पूर्ति हेतु सहभागिता वन प्रबंधन की प्रक्रिया अपनाई जा सकती है, जिसमें कि ग्राम कि वन सुरक्षा एवं प्रबन्ध समिति गाठित कर वन विभाग द्वारा पंजीकरण कराया जा सकता है। मार्गदर्शिका में दर्शाये अनुसार वन रक्ष्द्याक का नियोजन भी पौधारोपण के कार्य को विकसित करने में प्रभावित होता है। लाभार्थियों को पौधारोपण कार्य हेतु अन्तिम भुगतान पौधों की जीवितता के मद्देनजर किया जा सकता है। स्थानीय जन समुदाय की मांग आवश्यकता एवं चाहत के अनुसार पौधारोपण का कार्य लिया जाना चाहिए।

  • 20 हजार से 40 हजार की लीटर भराव वाला गोल टैंक जिसमें कि कैचमेंट/आगोर विकसित कर दिया गया हो, लिया जा सकता है। इससे वर्षा जल संकलित होकर टैंक में एकत्रित हो सकेगा एवं उत्पादक कार्यो हेतु काम में लाया जा सकेगा। यह गतिविधि प्राथमिकता के आधार पर गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाले लाभार्थियों, अनुसूचित जाति जनजाति वर्ग के लघु एवं सीमान्त कृषकों तथा सामान्य वर्ग के सीमान्त कृषकों की भूमि पर क्रियान्वित की जानी चाहिए। टैंक, हैण्डपम्प एवं उच्च जलाशय ( पी. वी. सी. के भी हो सकते हैं ) का निर्माण पौधों की सिंचाई व्यवस्था हेतु मय बूंद-बूंद सिंचाई व्यवस्था के किये जाने पर विचार किया जा सकता है।

  • स्वयं सहायता समूहों एवं कृषकों को प्रेरित किया जाना चाहिए कि वे किसान नर्सरी लगावें (25000 पौध प्रति कृषक ) इस हेतु उन्हें पौलीथीन बैग, बीज एवं अन्य आदान परियोजना से उपलब्ध कराया जा सकता है। यह ध्यान देना चाहिए कि जलग्रहण क्षेत्र हेतु उपलब्ध प्रजाति के बीज ही उपलब्ध कराये जावें। उक्त आदान गरीबी की रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाले लाभार्थियों, लघु एवं सीमान्त कृषकों को जलग्रहण क्षेत्र के भीतर निःशुल्क उपलब्ध कराया जा सकता है। उद्यानिकी पौधों के सम्बन्ध में राष्ट्रीय बागवानी मिशन द्वारा संचालित विभिन्न योजनाओंको जलग्रहण क्षेत्र में प्राथमिकता के आधार पर समेंकन के माध्यम से क्रियान्वित किया जा सकता है।

  • दक्षिणी राजस्थान में केशवबाडी़ नाम से कार्यक्रम लिय जा सकता है, जिसमें 30 फलदार पौधों एवं 150 वानिकी पौधों का रोपण तथा उन्नत कृषि विधियों का प्रयोग बी.पी.एल./लघु एवं सीमान्त/ अनुसूख्ति जाति, जनजाति परिवारों को उपलब्ध कराये जा सकते हैं। सुनिश्चित रोजगार गारन्टी कार्यक्रम के साथ भी समेकन पर विचार किया जा सकता है।

  • कम से कम 50 प्रतिशत कृषकों को शुष्क खेती की विधियों को अपनाने हेतु प्रेरित किया जावें एवं परियोजना क्षेत्र में शुष्क उद्यानिकी अपनाने हेतु जोर दिया जावें।

  • ऊर्जा संरक्षण, गैर पारम्परिक ऊर्जा के स्त्रोतों का विकास, बायोगैस,, सूक्ष्म सिंचाई, छत के जल का संरक्षण इत्यादि कार्यो का प्रदर्शन भी पंचायत घर राजकीय विद्यालय,बी.पी.एल, स्वयं सहायता समूह, अनुसूचित जाति, जनजाति के निवास स्थानों पर किया जा सकता है।

  • विशिष्ट प्रकृति के कार्यो को सम्मिलित करने से पूर्व जिला परिषदों द्वारा राज्य मुख्यालय की  पूर्वानुमति ली जानी चाहिए। जिला परिषदों के स्तर से इस प्रकार की गतिविधियों के औचित्य को दर्शातें तकनीकी प्रस्ताव मुख्यालय को भेजे जाने चाहिए। यदि प्रस्ताव भेजे जाने की 30 दिवस की अवधि के भीतर कोई निर्णय प्राप्त नहीं होता है तो जिला परिषद की साधारण सभा द्वारा यह प्रस्ताव पारित किया जा सकता है कि इस प्रकार के कार्य लियें जावें एवं कार्य प्रारम्भ कर दिया जावें। इसे मुख्यालय की अनुमति परक माना जावेगा।

  • समस्त प्रकार के कार्यो के क्रियान्वयन के दौरान मार्गदर्शी सिद्वान्तों की पालना अवश्य की जानी चाहिए। विस्तृत परियोजना प्रतिवेदन में यदि कोई परिवर्तन परियोजना काल में किया गया है तो संशोधित परियोजना प्रतिवेदन का अनुमोदन करा लिया जाना चाहिए।



  1. वास्तविक भौतिक कार्य निम्नलिखित संस्थाओं के माध्यम से परियोजना क्रियान्वयन संस्था की देखरेख/पर्यवेक्षण में कराये जाने चाहिए।



  • फार्म पौण्ड अथवा टंाका- लाभार्थियों स्वयं द्वारा अथवा स्वयं सहायता समूहों द्वरा निर्मित किया जाना चाहिए।

  • परकुलेशन टेंक- ग्राम पंचायत / उपभोक्ता समूह।

  • नये चैकडैम - ग्राम पंचायत/ उपभोक्ता समूह।

  • गाँव के कुँओं/भू जल के पुनर्भरण हेतु निर्मित किये जाने वाले ढाचें- व्यक्तिगत लाभार्थी/स्वयं सहायता समूह/उपभोक्ता समूह/ग्राम पंचायत।

  • गोचर विकास कार्यक्रम - स्वंय सहायता समूह/उपभोक्ता समूह/ग्राम पंचायत/ ग्राम्य वन सुरक्षा एवं प्रबंध समिति।

  • रसोई सब्ज बाग/बाडी विकास / नर्सरी विकास/ वर्मी कम्पोस्ट/ औषधीय खेती/ रतनजोत खेती- व्यक्तिगत लाभार्थी/स्वयं सहायता समूह।

  • रतनजोत की खेती सरकारी बंजर भूमि/बोचर भूमि पर- ग्राम पंचायत/गरीबी की रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाले लाभार्थी स्वयं सहायता समूह।

  • राजकीय बंजर/गोचर भूमि अथवा नदी नालों के तटों पर सामान्य प्रकृति के पौधारोपण कार्य अथवा चारा विकास कार्य- ग्राम पंचायत/वन विभाग/ग्राम्य वन सुरक्षा प्रबंध समिति/जिला परिषद द्वारा सुझाई अन्य व्यवस्था।

  • ऊर्जा के संरक्षण, गैर पारम्परिक उपयोग, सूक्ष्म सिंचाई इत्यादि से सम्बन्धित प्रदर्शन कार्य केवल मात्र गरीबी की रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाले, स्वयं यहायता समूहों, अनुसूचित जाति अथवा जनुसूचित जाति के लाभार्थी समूहों द्वारा।



  1. भौतिक कार्यो का प्रबोधन



  • परियोजना क्रियान्वयन संस्था द्वारा कार्यो का प्रबोधन किया जावेगा तथा ऊपर दर्शाई प्रक्रिया/ व्यवस्था अनुसार कार्य व्यक्तिगत/समूहगत प्रणाली के आधार पर किये जावेगें।

  • परियोजना क्रियान्वयन संस्था द्वारा किये गये कार्यो का मध्यवर्ती प्रबोधन कार्य परियोजना अधिकारी ( भू संसाधन ) जिला परिषद द्वारा किया जावेगा और नियमित रूप से समीक्षा वार्षिक, छमाही, त्रैमासिक और मासिक बैठकों में की जावेगी।

  • राज्य स्तर पर मुख्यालय की प्रबोधन शाखा द्वारा, जिला परिषद द्वारा कराये गये कार्यो की मध्यवर्ती मूल्यांकन एवं नियमित समीक्षा की जावेगी।



  1. कार्यो की क्रियान्वयन की विधि यदि जिला परिषद द्वारा पृथक से उल्लेखित नहीं है तो पंचायत समिति ही परियोजना क्रियान्वयन संस्था होगी।

  2. कार्यो के क्रियान्वयपन हेतु ग्रामीण कार्य निर्देशिका लागू होगी जिसके आधार पर समस्त प्रकार के तकमीने तैयार किये जायेगें एवं प्रशासनिक एवं तकनीकी स्वीकृति प्राप्त की जावेगी।

  3. ग्राम पंचायत द्वारा कार्यो का क्रियान्वयन प्रत्येक जलग्रहण क्षेत्र हेतु उपलब्ध जलग्रहण विकास दल के माध्यम से या जाना सुनिश्चित किया जावेगा।


1.4.2 परिपत्र-2 ; (circular-2)


भारत सरकार के ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा जारी हरियाली मार्गदर्शिका के अनुसार जलग्रहण परियोजनाओं की क्रियान्वित राज्य में मरू विकास कार्यक्रम, सूखा संभाव्य क्षेत्र कार्यक्रम तथा बंजर भूमि विकास कार्यक्रम के अन्तर्गत की जा रही है। जैसा कि विदित है कि जलग्रहण कार्यक्रम के अन्तर्गत केवल जल सग्रहण ढाचों के निर्माण का कार्य ही नहीं कराया जाना है बल्कि क्षेत्र के प्रत्येक कृषक के लिए एक प्रभावी उत्पादन योजना बनाकर सतत उत्पादन वृद्धि सुनिश्चित की जानी है और जलग्रहण क्षेत्र में आने वाली सामुदायिक भूमियों पर चारागाह विकास एवं वृक्षारोपण कर स्थानीय ग्रामवासियों की चारे और ईधन की आवश्यकता की पूर्ति की जानी है ताकि उनके बेहतर जीवनयापन के लिए दीर्घकालीन प्रबन्ध सुनिश्चित हो सके। कार्यक्रमों की समिक्षा के उपरान्त दृष्टिगत हुआ कि जलग्रहण जैसे महत्वपूर्ण जन समुदाय के कार्यक्रम की क्रियान्विति की ओर जिला पंचायत समिति स्तर के सम्बन्धित अधिकारियों द्वारा अपेक्षित ध्यान नहीं दिया जा रहा है जिसके कारण संसाधन हीन लोगों को अपेक्षित लाभ प्राप्त नहीं हो रहा है।


उपरोक्त तथ्यों के मद्देनजर जलग्रहण कार्यक्रम की प्रभावी क्रियान्विति हेतु निम्नाकिंत आदेश प्रसारित किये जाते हैं-


(i) जलग्रहण विकास दल के चारों सदस्यों को दो माह की अवधि में प्रशिक्षित करने तथा कार्यशील बनाने की व्यक्तिगत जिम्मेदारी अधिशासी अभियन्ता/ परियोजना अधिकारी (भू संसाधन ) की होगी। यदि निर्धारित अवधि में दल के सदस्यों को प्रशिक्षित कर कार्यशील नहीं बनाया गया तो इसके लिए अधिशासी अभियन्ता/परियोजना अधिकारी(भू संसाधन ), सहायक अभियन्ता तथा कनिष्ठ अभियन्ता व्यक्तिगत रूप से जिम्मेदार होगें तथा उनके विरूद्ध अनुशासनात्मक कार्यवाही की जावेगी।


(ii) जलग्रहण परियोजना शुरू होने से पूर्ण करने तक विभिन्न गतिविधियों का सम्पादन किया जाता है। समय पर कार्य शुरू कर पूर्ण करने हेतु विभाग द्वारा परिपत्र क्रमांक एफ.2(104 )/ ग्राम/ मूस/2/05 दिनांक 1.8.2006 के जरिये गतिविधियों के क्रम का निर्धारण किया जाकर इनकी पूर्णता अवधि तय की गई है। अधिशासी अभियन्ता/परियोजना अधिकारी (भू संसाधन) सहायक अभियन्ता एवं कनिष्ठ अभियन्ता सुनिश्चित करेगें किक परियोजना के कार्यो का निष्पादन विभागीय परिपत्र दिंनाक 1.8.2006 में उल्लेखित क्रमानुसार प्रभावी ढग से किया जा रहा है। निर्धारित क्रम में कार्य नहीं किए जाने की स्थिति में इसे मार्गदर्शिका का उल्लघंन माना जायेगा तथा दोषी कर्मियों के विरूद्ध अनुशासनात्मक कार्यवाही की जावेगी।


(iii) विभागीय परिपत्र क्रमाक एफ.8( 107) ग्रावि/भूस/2/06 दिनांक 11.10.2006 के द्वारा जलग्रहण परियोजनाओं के निष्पादन हेतु सहायक अभियन्ता एवं कनिष्ठ अभियन्ताओं के दायित्व निर्धारित किये गये हैं, परन्तु उनके द्वारा दायित्वों का प्रभावी एवं पूर्ण रूप से निर्वहन किया जा रहा है। पुनः निर्देश दिये जाते हैं कि परिपत्र दिनांक 11.10.2006 की भावना के अनुरूप कार्यो का निष्पादन सुनिश्चित किया जावें।


(iv) परियोजना क्रियान्वयन एजेन्सी सुनिश्चित करें कि जलग्रहण परियोजनाओं हेतु पूर्ण रूप से गठित जलग्रहण विकास दल कार्यो का निष्पादन विभागीय परिपत्र क्रमांक एफ.15 (4) गा्रम/भूस/2/06 दिनांक 4.9.06 के अनुसार करता है। जलग्रहण विकास दल के सदस्यों को पाबन्द किया जावें कि वे विस्तार कार्यकर्ता के रूप में कार्य करें और अन्य विभागों यथा कृषि, उद्यानिकी, वन, पशुपालन तथा महिला एवं बाल विकास विभाग की गतिविधियों को स्वीकृत जलग्रहण परियोजना क्षेत्रों में प्रभावी ढंग से लागू किया जावें।


(v) सहायक अभियन्ता एवं कनिष्ठ अभियन्ता, जलग्रहण विकास दल के सदस्यों हेतु कार्य योजना बनावें एवं उसके अनुसार कार्य किये जाने की साप्ताहिक समीक्षा करें।


(vi) जलग्रहण परियोजना क्षेत्र का नियमित रूप से निरीक्षण किया जावे ताकि मार्गदर्शिका के अनुसार कार्यो के निष्पादन में गुणवत्ता नियंत्रण एवं उत्पादन में वृद्धि सुनिश्चित हो एवं संसाधन हीन व्यक्तियों को योजना से दीर्घकालीन लाभ प्राप्त हो सकें।


1.4.3. परिपत्र-3 (circular-3)


ग्रामीण कार्य निर्देशिका-2004 के अनुच्छेद संख्या 7.3.3 हेतु राज्य सरकार द्वारा लिये गये निर्णयानुसार वर्णित तालिका के क्रम संख्या 4 में वर्णित परियोजना अधिकारी (अभियान्त्रिकी संवर्ग ) जिला परिषद/ अधिशासी अभियन्ता कार्यकारी विभाग ( अन्य स्थिति में संबधित विभाग के अधिशासी अभियन्ता ) के साथ परियोजना अधिकारी ( भू सुधार/ अधिशासी अभियन्ता, भू सुधार को  भी जोडा़ जाता है।


तालिका के क्रं.सं. 4 में वर्णित अधिकारियों को तकनीकी स्वीकृति की सीमा राशि रू. 25.00 लाख के स्थान पर राशि रू. 30.00 लाख की स्वीकृति जारी करने के अधिकार प्रदान किये जाते हैं। अन्य शर्ते यथावत रहेंगी।


1.4.4 परिपत्र-4 (circular-4)


बिषयः जलग्रहण विकास क्षेत्रों में अन्य विभागों की गतिविधियों के प्राथमिकता आधारित क्रियान्वयन बाबत (   )


विभाग द्वारा विभिन्न जलग्रहण विकास परियोजनाओं का क्रियान्वयन राज्य में करवाया जा रहा है। जलग्रहण क्षेत्रों का चयन वाटरशेड एटलस एवं मार्गदर्शिका में दिये गये प्राथमिकता/मापदण्डों के आधार पर किया जाता है तथा ऐसे क्षेत्र विकास हेतु चयनित किये जाते हैं जिनमें कि मिटटी का कटाव, वर्षा जल के बहाव की अत्यधिक सम्भावना के साथ-साथ स्थानीय निवासियों की सामाजिक आर्थिक स्थिति गिरी हुई होती है।


भारत सरकार द्वारा जलग्रहण क्षेत्रों के उपचार हेतु जो प्रति हैक्टेयर लागत के हिसाब से धनराशि प्राप्त  होती है वह जलग्रहण क्षेत्र हेतु अपर्याप्त है। सामान्यतः जल संरक्षण के कार्य सुगमता से क्रियान्वित करा लिये जाते हैं, परन्तु अन्य आवश्यक सम्बद्ध उत्पादन एवं रोजगारोन्मुख गतिविधियाँ शेष रह जाती हैं।


अतः यह आवश्यक समझा गया है कि चयनित जलग्रहण क्षेत्र को विकास के आदर्श माॅडल के रूप में विकसित  किये जाने के उद्येश्य से जलग्रहण विकास की विधियों के अतिरिक्त अन्य सम्बन्ध विभागों के कार्यक्रम में सहायता, प्राथमिकता के आधार पर कराई जावें। इससे ये क्षेत्र चंहुमुखी समग्र विकास के माॅडल के रूप में विकसित होंगे तथा अन्य स्थानों पर गतिविधियाँ अपनाई जा सकेंगी।


इस विभाग के स्तर पर विगत माह में इस हेतु गंभीर प्रयास प्रांरभ किये गये है। दिनांक 9-11 अप्रैल 2006 के दौरान अधिशासी अभियन्ता भू संसाधन ) की बैठक में निर्णय लिया गया कि-


अ. प्रत्येक सम्बन्ध विभाग ( कृषि, उद्यान, पशुपालन, वन, महिला बाल विकासइत्यादि ) अपने विभाग से सम्बन्धित प्रचार-प्रसार की विस्तृत सामग्री जो कि ग्रामीण जन हेतु तैयार की गई हो, इस आयुक्तालय को 25  अप्रैल 06 तक उपलब्ध कराने की व्यवस्था करें।


ब. प्रत्येक सम्बद्ध विभाग उनसे सम्बन्धित प्रत्येक त्रैमास में किये जाने वाले कार्यवाही हेतु बिन्दु/गतिविधियाँ जो कि जलग्रहण क्षेत्रों में प्राथमिकता के आधार पर ली जा सकती है, की सूचना इस आयुक्तालय को 25 अप्रैल 06 तक उपलब्ध कराने की व्यवस्था करें।


स. राज्य स्तर पर प्रत्येक त्रैमास हेतु विभागाध्यक्षों की एक बैठक इस आयुक्तालय में आयोजित की जावे तथा जिला स्तर पर प्रत्येक माह हेतु जिला स्तरीय अधिकारियों की बैठक मुख्य कार्यकारी अधिकारी, जिला परिषद की अध्यक्षता में आयोजित की जावें।


राज्य के सर्वांगीण विकास को ध्येयगत उक्त बिन्दुओं पर शीघ्रातिशीघ्र प्रभावी एवं सतत् कार्यवाही अपने स्तर से कराने का श्रम करें।


                                                                                                                                      परिशिष्ट-1


1.5 जलग्रहण कार्यक्रम के अन्तर्गत जलग्रहण समिति तथा पी. आई. ए. द्वारा किये जाने वाले विभिन्न अभिलेखों के प्रकार


 


(क) जलग्रहण समिति के अभिलेख



  1. डब्ल्यू. ए. प्रस्ताव ( रिजोल्यूशन ) रजिस्टर

  2. डब्ल्यू. सी. प्रस्ताव रजिस्टर

  3. माप पुस्तिका

  4. प्राप्ति पंजिका

  5. भुगतान बाउचर

  6. स्टाॅक रजिस्टर

  7. कैश बुक

  8. मेटेरियल फार्म ( सामग्री प्रपत्र )

  9. लेजर ( डब्ल्यू. एस. सी. )

  10. निधि जारी करने हेतु डब्ल्यू. सी. का मांग पत्र

  11. डब्ल्यू. डी. एफ. तथा परिक्रामी निधि का अभिलेख ( कोर्पस फण्ड )

  12. जिला प्रमुख/डी. डब्ल्यू. सी. द्वारा निर्धारित अन्य कोई अभिलेख


(ख) पी. आई. ए./ डब्ल्यू. डी. टी. के अभिलेख



  1. कैश बुक

  2. लेजर

  3. स्टाॅक रजिस्टर

  4. जिला प्रमुख/डी. डब्ल्यू. सी. द्वारा निर्धारित अन्य कोई अभिलेख।


1.6 स्वपरक प्रश्न


 



  1. ग्राम सभा की बैठक क्यों आवश्यक है?

  2. जलग्रहण बजट कैसे जारी किया जाता हैं?

  3. समुदाय में अंशदान की दरें किस प्रकार हैं?


1.7 सांराश


जिला स्तर पर जिला परिषद, राज्य सरकार तथा भारत सरकार के पर्यावेक्षण तथा मार्गदर्शन के अन्तर्गत सभी क्षेत्र विकास कार्यक्रमों के कार्यान्वयन के लिए परियोजना कार्यान्वयन अभिकरण केन्द्रक (नोडल ) प्राधिकरण होगा। ग्राम पंचायतें परियोजनाओं के सभी कार्यो को ग्राम सभा के मार्गदर्शन में तथा नियन्त्रण के तहत कार्यान्वित करेंगी। कृषि मंत्रालय की एन. डब्ल्यू. डी. पी.  आर. ए. योजना में जलग्रहण परियोजना खाता खोलना, कोर्पस निधि की स्थापना, जिला स्तर पर फण्ड प्लो, बजट जारी करना, लेखों व अभिलेखों का रख्रखाव मुख्य बिन्दु हैं।


1.8 संदर्भ सामग्री



  1. जलग्रहण विकास एवं भू संरक्षण विभाग के वार्षिक प्रतिवेदन।

  2. भू एवं. जल संरक्षण- प्रायोगिक मार्गदर्शिका श्रृखंला-3 श्री एस. सी. महनोत एवं श्री पी. के. सिहं।

  3. प्रशिक्षण पुस्तिका- जलग्रहण विकास एवं भू संरक्षण विभा द्वारा जारी।

  4. जलग्रहण मार्गदर्शिका- संरक्षण एवं उत्पादन विधियों हेतु दिशा-निर्देश-जलग्रहण विकास एवं भू-संरक्षण विभाग।

  5. जलग्रहण विकास हेतु तकनीकी मैनुअल- जलग्रहण विकास एवं भू संरक्षण विभाग द्वारा जारी।

  6. राजस्थान में जलग्रहण विकास गतिविधियाँ एवं उपलब्धियाँ- जलग्रहण विकास एवं भू संरक्षण विभाग।

  7. कृषि मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा जारी राष्ट्रीय जलग्रहण विकास परियोजना के लिए जलग्रहण विकास पर तकनीकी मैनुअल।

  8. ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा जारी- दिशा-निर्देशिका।

  9. ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा जारी- हरियाली मार्गदर्शिका।

  10. जलग्रहण विकास एवं भू संरक्षण विभाग द्वारा जारी।

  11. विभिन्न परिपत्र- राज्य सरकार/ जलग्रहण विकास एवं भू संरक्षण विभाग।

  12. जलग्रहण विकास एवं भू संरक्षण विभाग द्वारा जारी स्वयं सहायता समूह मार्गदर्शिका।

  13. इन्द्रिा गांधी पंचायती राज एवं ग्रामीण विकास संस्थान द्वारा विकसित संदर्भ सामग्री-जलग्रहण प्रकोष्ठ।

  14. कृषि मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा जारी वरसा जन सहभागिता मार्गदर्शिका।

  15. प्रसार- शिक्षा निदेशालय, महाराणा प्रताप कृषि एवं तकनीकी विश्वविद्यालय, उदयपुर द्वारा विकसित सामग्री।

  16. जलग्रहण प्रबन्धन - श्री बिरदी चन्द जाट।

  17. आई. एम. टी. आई. कोटा द्वारा विकसित प्रशिक्षण सामग्री।


18. भारत सरकार द्वारा नई काॅमन मार्गदर्शिका।