आकाश कामिनी गंगा

||आकाश कामिनी गंगा||


उत्तराखण्ड के बारे में कहावत प्रसिद्ध है कि- 'जितने कंकर, उतने शंकर'देवभूमि उत्तराखण्ड में भगवान शिव का निवास स्थान हिमालय क्षेत्र को माना जाता है। गढ़वाल में शिव के प्रमुख मन्दिरों में केदारनाथ, मद्महेश्वर, तुंगनाथ, रुद्रनाथ और कल्पेश्वर का विशेष महत्व माना गया है। पंचकेदारों में तुंगनाथ सबसे ऊँचाई में स्थित मन्दिर है। यह मन्दिर पंच शिलाओं रावण शिला, चन्द्रशिला, नारद शिला, गरुड़शिला एवं धर्मशिला के मध्य में, समुद्रतल से लगभग 3800 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है।


तुंगनाथ के शीर्ष से एक जलधारा का उद्गम होता है, जिसे आकाश गंगा कहते हैं। आकाश गंगा की उत्पत्ति के सम्बन्ध में कहा जाता है कि- एक बार ब्रह्मा जी के पांच मुखों में से एक मुख ने भगवान शिव को नीचा दिखाने व अपनी कीर्ति का बखान करने के लिए झूठ बोला थाभगवान शिव ने झूठ बोलने वाले मुख को काट दिया, किन्तु यह भगवान शिव के हाथ से चिपक गया। तब भगवान शिव, विष्णु के पास गये और आग्रह किया कि ब्रह्मा जी के इस मुख ने मुझे नीचा दिखाने के लिए झूठ बोला और मैंने इसे काट दिया, किन्तु यह मेरे हाथ से चिपक गया है। कृपा कर मुझे इससे छुटकारा पाने का कोई उपाय बतायें। तब भगवान विष्णु बोले कि यदि तुम मेरी छाती पर त्रिशूल का प्रहार करोगे तो तुम्हें इस चिपके मुंह से छुटकारा मिल सकेगाइस पर शिव ने विष्णु की छाती पर त्रिशूल से प्रहार किया और तब विष्णु की छाती से 3 जलधारायें निकली।


पहली धारा आकाश गंगा के रूप में, तुंगनाथ में सप्तऋषियों को मिली। दूसरी धारा मन्दाकिनी के रूप में केदारनाथ धाम में गिरी तथा तीसरी धारा ब्रह्मा के सिर में गई और सरस्वती नाम से कालीमठ क्षेत्र में प्रवाहित हुईआकाश गंगा तुंगनाथ की पहाड़ियों से उतरती हुई मखमली घास के मैदानों में अठखेलियां करती हुई प्रवाहमान होती है। इसके प्रवाह क्षेत्र में दुर्लभ जड़ी-बूटियों, वनस्पतियों, जीव-जन्तुओं और पुष्यों का फैला साम्राज्य मन मोह लेता हैइस क्षेत्र में मोनाल, कस्तूरी मृग के अलावा कई रंगों के बुरांश के फूल तीर्थ यात्रियों एवं पर्यटकों को मन्त्रमुग्ध करते हैं। आकाश गंगा अन्ततः मन्दाकिनी नदी के जल में समाहित हो जाती है।


 


स्रोत - उतराखण्ड के पूर्व मुख्यमंत्री और वर्तमान में मानव संसाधन विकास मंत्री भारत सरकार रमेश पोखरियाल निशंक की किताब ''विश्व धरोहर गंगा''