आर्थिकी और पर्यावरण को संवारेगी कल्पवृक्ष सहजन की खेती

||आर्थिकी और पर्यावरण को संवारेगी कल्पवृक्ष सहजन की खेती||


-स्वास्थ्य के लिए भी उपयोगी है सहजन


-हर साल बढ़ रही है सहजन की मांग



'मोरिन्गेसी' परिवार का सहजन : सेंजन, सोजना, सुरजना, शोभाजन, मरूगई, मुनगा, मोरिंगा, ड्रमस्टिक, नेवरडाई ट्री, वेस्ट इंडियन बेन ट्री, हर्स रेडिश ट्री आदि नामों से विश्वविख्यात है जबकि इसका वानस्पतिक नाम मोरिंगाअलीफेरा है। इसका मूल स्थान भारत के उत्तर-पश्चिम में उप-हिमालयी अथवा मैदानी क्षेत्रों में माना गया है लेकिन अपने चमत्कारिक पोषक व औषधीय गुणों से भरपूर होने के कारण यह पूरे विश्व में वितरित हो गया है और जादुई स्वर्गिक' वृक्ष के नाम से भी जाना जाता हैविश्व में इसकी 13 ज्ञात प्रजातियां पायी जाती हैं। तेजी से बढ़ने वाला सहजन का पौधा एक वर्ष में 7 मी. तक बढ़वार ले सकता है और10 मी. तक की कुल ऊंचाई।


विश्व में सहजन की खेती भारत, पाकिस्तान, अफगानिस्तान, बांग्लादेश, फिलीपीन्स, श्रीलंका, मलयेशिया, कम्बोडिया, मध्यपूर्व, अफ्रीका, मैक्सिको, मध्य-अमेरिका आदि के उपोष्ण कटिबंधीय 1000 मी. तक की ऊंचाई वाले क्षेत्रों में की जाती है।आज विश्व स्तर पर अनुमानित सहजन बाजार 27,000 करोड़ रुपये से अधिक है, जिसको 2020 तक 47,250 करोड़ रुपये को पार करने की संभावना है औरयह प्रतिवर्ष प्रतिशत की दर से बढ़ रहा है।


भारत में सहजन का वितरण


भारत में सहजन का प्रयोग हजारों वर्ष पूर्व से होता आ रहा है और इसका उल्लेख सुश्रुत संहिता में शिगोन के नाम से किया गया है। हमारा देश विश्व में सहजन की पत्तियों का 80 प्रतिशत उत्पादन करता है जिसका आयात करने वाले प्रमुख देश चीन, अमेरिका, जर्मनी, कनाडा, दक्षिण कोरिया और यूरोपीय देश हैं।देश में सहजन का बाजार प्रति वर्ष 26-30 प्रतिशत की दर से बढ़ रहा है और आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, तमिलनाडु, बिहार, मध्य प्रदेश आदि राज्यों में किसान इसकी व्यवसायिक खेती कर सम्पन्नता प्राप्त कर रहे हैं। तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और ओडिशा में सहजन के पत्तों का निर्यात एक बड़ा व्यवसाय बन चुका है। छत्तीसगढ़ के राजनांश जिले को मुनगा जिला' के नाम से भी जाना जाता है, क्योंकि यहां प्रत्येक घर में सहजन का पौधा मिल जाता है। अपेडा एग्री-एक्सचेंज के अनुसार 2016 में देश का निर्यात बाजार 30 प्रतिशत की दर से बढ़ रहा है और सहजन बाजार में नवीनतम प्रवृत्ति जैविक पत्तियों और सौर विधि से इसे सुखाने के उपयोग की ओर है।


रसायनिक अव्यव, विशिष्ट गुण और उपयोग


100 ग्राम सहजन की पत्तियों में प्रोटीन 6.7 ग्राम, वसा 1.7 ग्राम, लवण 2.3 ग्रामआयरन 7 मिग्रा, विटामिन ए 11300 आईयू, कैलियम 440 मिग्रा, विटामिन सी 220 मिग्राकार्बोहाइड्रेट 125 ग्राम आदि 90 से अधिक पोषक तत्व पाये जाते हैं।आश्चर्यजनक रूप में इसकी पत्तियों में विटामिन सी संतरे से 7 गुना, विटामिन ए गाजर से 4 गुना, विटामिन ई बादाम से 3 गुना, कैलियम दूध से 4 गुना, पोटैशियम केले से 3 गुना, आयरन पालक से 3 गुना और प्रोटीन दही से 2 गुना अधिक पाया जाता है। इसमें 46 प्रकार के एंटी आक्सीडेंट, 36 प्रकारके दर्द निवारक गण और 18 प्रकार के एमिनो एसिड पाये जाते हैं। इन्हीं गुणों की खान होने के कारण सहजन का प्रत्येक भाग यथापत्ते, फूल, छाल, गोंद और फलियां पौष्टिक हैं जिनसे आयर्वेदिक दवाएं तैयार कर 300 से अधिक रोगों यथा हड्डियों की कमजोरी, त्वचा-विकार, गर्भावस्था समस्याएं, संक्रमण, पाचन विकार, फेफड़ों की समस्या, मूत्र विकार, कैंसर, आंतों की रसोली, दृष्टि-दोष, दमा, तपेदिक, मस्तिष्क की चोट, मधुमेह, रक्त-अल्पता, जरावस्था दोष, पित्ताशय विकार, मूत्र-विकार, हड्डियों के दर्द, किडनी-व्याधि, लीवर आदि का उपचार किया जाता है, इसीलिए सहजन की खेती को चिकित्सा-फसल के रूप में मान्यता मिल चुकी है। राष्ट्रीय सम्मान प्राप्त सहजन के विशेषज्ञ डा. बीके असाटी के अनुसार विश्व की सभी फसलों को तुलना में सहजन की पत्तियों में पोषक तत्व सर्वाधिक हैं। पत्तों को सुखाकर चूर्ण, गोलियां, कैप्सूल, टानिक आदि बनाए जाते हैं तो इन्हें सलाद रूप में कच्चा भी खा सकते हैं, इसीलिये सहजन का उपयोग विशेषकर शिशुओं और प्रसृता माताओं के बीच कुपोषण से निपटने के सस्ते स्रोत के रूप में किया जा रहा है जिससे विकासशील देशों की बहुत महंगे आयातित सामानों पर निर्भरता व चिकित्सा-व्यय बहुत कम हो जायंगे।


विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी दक्षिण अफ्रीका के कई देशों में कुपोषित लोगों के आहार में सहजन को सम्मिलित करने की सलाह दी है तो फिलीपींस और सेनेगल में कुपोषण उन्मूलन कार्यक्रमों के अन्तर्गत बच्चों के आहार में इसे ग्रहण करवाया जा रहा है। विश्व की पांच प्रसिद्ध स्वयंसेवी संस्थाओं ट्रीज फार लाइफ इंटरनेशनल, द क्रिचियन एंड मिशनरी एलायंस, चर्च वर्ल्ड सर्विस, हंगर आर्गोनाइजेशन एंड वालंटियर पार्टनरशिप फारवेस्ट अफ्रीका द्वारा सहजन को उष्ण कटिबंधीय प्रदेशों के लिए प्राकृतिक पोषण के रूप में अनुशासित किया गया है। स्वीडिश यूनिवर्सिटी आफ एग्रीकल्चरल साइंस द्वारा निकारगुआ में किए गए एक अध्ययन के अनुसार गायों को सहजनपत्ति मिश्रित चारा खिलाने से उनके दूध में 50 प्रतिशत वृद्धि हुई है तो उनके भार में एक-तिहाई से अधिक की।


सहजन का प्रयोग सांभर, दाल, अचार, फली केक, चाय, स्मदी, लीफ संस आदि भोज्य पदार्थ बनाने में तो होता ही है साथ ही जलशुद्धि, कागज, राव, रस्सी बनाने में भी। इसके बीजों से 'बेन' नामक 40 प्रतिशत तक न सूखने वाला तेल निकाला जाता है जिसका प्रयोग जाडेलों आदि में लार्केट के तौर पर तथा इन दवाओं, सौंदर्य-पसाधनों, जैव-ईधन आदि कोजगने में किया जाता है।


सहजन के फल मधुमक्खियों को आकर्षित करते हैं जिनसे न केवल शहद का उत्पादन किया जा सकता है जाल्क आजको रसायनिक खेती के दौर में समाप्त हो रही समाजपुष्पों को सख्या बाढ़ा कर उनके परागण से अन्य कृषि उत्पादों में भी वृद्धि कर आधिको को आगे मंउन्नत कर सकते हैं। सहजन के वक्षों को अजो भाकारी पेड़ों के तौर पर बजर, खालो वाष्पक्षेत्रों में स्णाया जा रहा है जिससे स्वस्ट पारिस्थितिक जैव विविधता निर्माण में सहायता मिलेगा अतः सहजन को योन सुपरडयालेखक के शब्दों में पृथ्वी का कल्पवृक्ष भी कहा जा सकता है। सहजन को आदर्श खेतो हेतु उपाकाटबंधीय या उपोष्ण कटिबंधीय जलवायुयुक्त 000 मी. तक की ऊचाई वाले क्षेत्र जहाँ तापमान 25-35 से.व वर्षा 2502000मिली तक हो सदा प्रकार के अंतर्गत बलुई दोमट मिट्टी जिसका पीएच मान अल्प क्षारीय 5-0 हो उपयुक्त मानी जाती है इसका कृषि हेतु पालना हानिकारक होता है।


सहजन की खेती का महत्व


सिजाय रक्षा बाड़ के, सहजन नगण्य पम और लागत के 10 वर्षो तक बहुत अच्छी आप देने वाला वृक्ष है जिसे खाली बंजर जमीनों, खेतो को मेड़ोंपर और घर में लगाकरन केवल किसान पोषक सब्जी से अपना स्वास्थ्य सुधार रहे हैं बल्कि यदा-कदा इसे बेचकर अपनी आय भी बढ़ा रहे हैं। चमत्कारिक फसल के तौर पर स्थापित हो चको सहजन की स्थानीय और दवा बनाने वाली कम्पनियों द्वारा परे देश में और विदेशों में अत्यधिक मांग, कोट-व्याधि से मुक्तता, सिंचाई की कम आवश्यकता, मिश्चित तौर पर खेती, कमलागत पर उच्च दाम और फसल विकास हेतु आदर्श कारकों की उपस्थिति आदिविशिष्ठ गुणों के कारण इसको खेतो बहुत आसानी से की जा सकती है जिससे किसान अपनी आय बढ़ाकर पलायन के अभिशाप से मुक्त हो सकते हैं।


सहजन का खेता हेत सरकारी प्रयास


देश के न्यूटीफार्स प्रायोगिक परियोजना के अंतर्गत सहजन प्रचुर पोषणवाली फसलके तौर पर सम्मिलित की गयी है। छत्तीसगढ़ ही देशकाएक मात्र राज्य है, जहां इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय, रायपुर के अंतर्गत संचालित उद्यानिकी महाविद्यालय, राजनाशंव में सहजन के 240 से अधिक जर्मप्लाज्म संगहित किये गए हैं । मध्य प्रदेश में उद्यानिकी एवं खाद्य प्रसंस्करण विभाग, बैतुल द्वारा सहजन पत्ती क्रय कराये जाने हेतु किसानों एवं संबंधित विक्रेता कंपनी से मल्य अनुबंध कराया जा रहा है ताकि किसानोंकी आय सुनिश्चित हो सके।


सहजन उत्पादक राज्यों में इसकी खेती को विशेष वरीयता दी जा रही है। सहजन कोखेती न केवल सीमांत किसानों के परिवारजनों को पोषण और बेहतर आर्थिक सुरक्षादे रही है बल्कि यह कृषि और सामाजिक वानिकी का भी आवश्यक अंग बनने में सक्षम है जिसके निमित्त केंद्र व राज्य सरकारों का दायित्व है कि ठोस योजनाओं और अनुदान के माध्यम से देश के शुष्क, सदूर,पिछड़े और क्षीण आर्थिको पलायन से त्रस्त मध्य हिमालयी पर्वतीय क्षेत्र के किसानों को इस व्यापक संभावनायक्त लाभकारी खेती हेतु प्रोत्साहित करेंऔर साथहीसहजनके उत्पादन और उपभोगको भी विकसित करें।