अयोध्या के फैसले का चहुंओर स्वागत


||अयोध्या के फैसले का चहुंओर स्वागत||


अपने देश में राममंदिर या मस्जिद जैसे धार्मिक सवाल नासूर बने हुए थे। यहां तक 161 साल का यह विवाद 40 दिन और फैसला 45 मिनट में यूं ही समाप्त हो गया। देशभर में इस फैसले की इन्ततारी थी। सो अब देश के लोग अपने रोजगार व विकास की बात को लेकर मुखर रहेंगे।  


देश की शीर्ष अदालत ने नौ नवम्बर 2019 को शनिवार सुबह अयोध्या पर जो फैसला सुनाया उसका इंतजार तो राम की नगरी के लोगों को जाने कब से था। बरसों बाद मनचाही मुराद पूरी होने पर उनकी खुशी का कोई ठिकाना न रहना भी लाजिमी था। उन्होंने अपनी खुशी जताई भी और मर्यादा में रहकर अपनी भावनाएं व्यक्त करने की मिसाल भी पेश की। ये वही अयोध्या है जहां विवादित ढांचा गिराए जाने की घटना ने पूरे देश में सांप्रदायिक सद्भाव को बिगाड़ दिया था।


एक दिन पहले जैसे ही साफ हुआ कि शनिवार सुबह फैसला आ जाएगा, अयोध्या नगरी में कुछ खामोशी छाई दिखी, सुरक्षा बलों की गश्त भी बढ़ गई थी। मगर, गंगा-जमुनी तहजीब में जीती अयोध्या सुबह अपने ढर्रे पर ही चलती दिखी। मंदिरों और मठों में घंटे-घड़ियाल बज रहे थे और लोग दर्शन पूजन में व्यस्त रहे। दुकानें भी आम दिनों की तरह ही खुली रहीं। बाहर से आए कुछ श्रद्धालु जरूर कसमकश में दिखे और अपने घरों को लौटते दिखे।


फैसले के बाद सरयू तट पर उमड़ी भीड़
फैसले के लगभग घंटे भर बाद सरयू नदी के तट पर श्रद्धालु जुटने लगे। शाम को लोगों ने यहां अपने खुशी जताने के लिए जगह-जगह भंडारे का आयोजन किया। तट पर उपस्थित तीर्थ पुरोहित जगदंबा प्रसाद पांडेय ने बताया कि एक दिन पहले रात को पुलिस ने यहां स्थानीय लोगों को छोडकर किसी के आने पर रोक लगा दी थी।


...और सबने अपने घरों पर दीये जलाए
फैसले के बाद सरयू तट पर पहली आरती में बड़ी संख्या में पहुंचकर लोगों ने मंदिर बनाने के फैसले पर अपनी खुशी का इजहार किया। साथ ही अपने-अपने घरों पर दीये भी जलाए। घाट से लेकर हनुमान गढ़ी तक की हर दुकान और गली दीये की रोशनी से नहा उठी, मानों अयोध्या फिर दीवाली मना रही हो। फैसले का अयोध्या में हिन्दू व मुस्लिम पक्षकारों ने खुले दिल से स्वीकार किया। विराजमान रामलला के अभिन्न मित्र त्रिलोकीनाथ पांडेय ने कहा कि यह बड़ी खुशी का दिन है।


शनिवार को ठीक सुबह 10.30 बजे मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई ने सबसे बड़े फैसले पर संविधान पीठ का आदेश पढ़ना शुरू कर दिया। गत 161 वर्षों से चले आ रहे इस कानूनी विवाद पर फैसला सुनाने को जस्टिस गोगोई ने आधे घंटे का समय मांगा और पूरा निर्णय 45 मिनट में पढ़ दिया। कोर्ट के दस्तावेजों के मुताबिक, इस विवाद की शुरुआत 1858 से हुई थी।


फैसला अयोध्या
10.30 बजे सुबह फैसले की कॉपी पर संविधान पीठ के पांचों न्यायाधीशों ने हस्ताक्षर किए। शिया वक्फ बोर्ड की जमीन पर नियंत्रण की याचिका खारिज कर दी गई (सर्वसम्मति से)। मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई ने फैसला सुनाना शुरू किया, बोले लगभग आधा घंटा लगेगा। 


10.30 बजे जस्टिस गोगोई ने कहा, धार्मिक तथ्यों नहीं, बल्कि एएसआई की रिपोर्ट को ध्यान में रखकर कोर्ट फैसला ले रहा है, मस्जिद कब बनी स्पष्ट नहीं।


10.39 बजे निर्मोही अखाड़े का दावा भी खारिज, कहा-निर्मोही अखाड़ा शबैत नहीं यानी उसे प्रबंधन का अधिकार नहीं। जस्टिस गोगोई ने फैसला पढ़ते हुए कहा कि राम जन्मभूमि स्थान न्यायिक व्यक्ति नहीं है, जबकि भगवान राम न्यायिक व्यक्ति हो सकते हैं 


10.55 बजे मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि खाली जगह पर मस्जिद नहीं बनी थी, सुन्नी वक्फ बोर्ड के लिए शांतिपूर्ण कब्जा दिखाना असंभव है। 


10.54 बजे यह सबूत मिले हैं कि हिंदू राम चबूतर और सीता रसोई पर अंग्रेजों के जमाने से पहले भी पूजा करते थे। रिकॉर्ड में दर्ज साक्ष्य बताते हैं कि विवादित जमीन का बाहरी हिस्सा हिंदुओं के अधीन था। 


10.45 बजे एएसआई रिपोर्ट के मुताबिक, खाली जमीन पर मस्जिद नहीं बनी थी। एएसआई ने यह नहीं बताया कि मंदिर को गिराकर मस्जिद बनाई गई, मुस्लिम गवाहों ने भी माना, दोनों पक्ष पूजा करते थे।


10.44 बजे पुरातत्व विभाग एक वैज्ञानिक प्रक्रिया है, जिसने पाया कि नीचे हिंदू मंदिर था। गुबद के नीचे दो समतल की स्थिति में था। हिंदु अयोध्या को राम का जन्मस्थान मानते हैं। 


10.59 बजे 1856-57 से पहले आंतरिक अहाते पर हिंदओं पर कोई रोक नहीं थी, संघर्ष की वजह से वहां शांतिपर्ण पूजा के लिए रेलिंग बनाई गई। मुस्लिमों का बाहरी अहाते पर कोई अधिकार नहीं रहा। सुन्नी वक्फ बोर्ड यह सबूत नहीं दे पाया कि यहां उसका एकमात्र अधिकार है। मुस्लिमों को मस्जिद के लिए दूसरी जगह मिलेगी। संविधान कभी धर्म से भेदभाव नहीं करता। 


11.15 बजे मुख्य न्यायाधीश ने फैसला सुनाने के बाद सभी पक्षों का धन्यवाद किया. विवादित ढांचे की जमीन हिंदुओं को दी जाए। मंदिर के लिए ट्रस्ट बनाएगी सरकार। पांच जजों ने एकमत से दिया फैसला। 


11.07 बजे केंद्र सरकार तीन महीने में योजना तैयार करेगी, बोर्ड ऑफ ट्रस्टी का गठन होगा। सुन्नी वक्फ बोर्ड को केंद्र या राज्य सरकार द्वारा अहम जगह पर पांच एकड़ जमीन दी जाए। फिलहाल अधिकृत जमीन का कब्जा रिसीवर के पास रहेगा। 


होती रहीं सौहार्द की बातें.


हिंदू पक्ष के वकील 
के.परासरन पूर्व एडिशनल सॉलिसिटर जनरल पेश हुए. बहस करते हुए पौराणिक तथ्यों के आधार पर मंदिर होने की दलीलें पेश की. 


पीएस नरसिम्हा सुप्रीम कोर्ट में पूर्व एडिशनल सॉलिसिटर जनरल पेश हुए और उन्होंने पुराणों की बात को मजबूती से पेश किया। 


रंजीत कुमार हिन्दु पक्षकार की ओर से पूर्व सॉलिसिटर जनरल स्प्रीम कोर्ट में पेश हुए और उन्होंने पूजा का हल मांगने वाले गोपाल सिंह विशारद की ओर से बहस की।


हरिशंकर जैन अखिल भारत हिंदू महासभा की ओर से सुप्रीम कोर्ट में पेश हुए। उन्होंने मंदिर के पक्ष में दलीलों को रखा था।


सीएस वैद्यानाथन पेश हए और उन्होंने एएसआई की रिपोर्ट की प्रासंगिकता व वैधता के आधार पर पक्ष को सबल किया।


पीएन मिश्रा अखिल भारतीय श्रीराम जन्म भूमि पुनरुद्धार समिति की ओर से सुप्रीम कोर्ट में बहस की ओर अपनी बात रखी। 


सुशील कुमार जैन निर्मोही अखाड़ की ओर से सुप्रीम कोर्ट में पेश हुए और उन्होंने न्यायालय में बहस की और मंदिर पर दावा पेश किया था। 


वरिष्ठ वकील जयदीप गुप्ता ने निर्वाणी अखाड़ा के धर्मदास की ओर से अदालत में बहस की.


मुस्लिम पक्ष के वकील


वरिष्ठ अधिवक्ता राजीव धवन मुस्लिम पक्षकारों की ओर से सुप्रीम कोर्ट में पेश हुए थे। उन्होंने मालिकाना हक मामले में मुख्य बहस की थी। 


शेखर नाफडे भी सुप्रीम कोर्ट में पेश हुए थे। उन्होंने यह सिद्ध करने का प्रयास किया कि मालिकाना हक के केस पर कोर्ट अब सुनवाई नहीं कर सकता।


वरिष्ठ अधिवक्ता मीनाशी अरोड़ा मुस्लिम पक्ष की ओर पेश हुई थीं। उन्होंने एएसआई की रिपोर्ट के खिलाफ बहस की थी।


जफरयाब जिलानी मुस्लिम पक्ष की ओर से कोर्ट में पेश हुए। उन्होंने इमाम के वेतन आदि के सबूत पेश कर वहां मस्जिद होने का सबूत पेश किया था।


निजामुद्दीन पाशा ने पवित्र कुरान की आयतों के आधार पर देश की सबसे बड़ी अदालत में इस्लामिक कानून पर बहस की थी।


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हमारी कॉलोनी में सन्नाटा पसर चुका था, मैं भी सोने की तैयारी कर रहा था। इस बीच मेरे लैंडलाइन फोन की आवाज घनघनाती है। मैंने फोन उठाया तो दूसरी तरफ से मुख्यमंत्री कल्याण सिंह के आवास से फोन था। मुझे तत्काल सीएम आवास पहुंचने को कहा गया। तब तक मेरा ड्राइवर घर चला गया था। मैने अपनी असमर्थता जताई तो पल भर में सीएम आवास से ही कार मेरे घर पर पहुंच गई। कुछ भी पता नहीं था कि इतनी रात सीएम आवास में ऐसा क्या काम पड़ गया? मैं जैसे ही वहां पहुंचा, तो बैठक कक्ष में कैबिनेट के कई अहम सदस्य मौजूद थे। यूपी सचिवालय के अधिकारियों की फौज-फर्रा भी वहीं डटी थी, बैठक में शामिल होते ही, मुझे मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने खुद बताया कि अयोध्या में प्रस्तावित श्रीरामजन्म मंदिर के लिए विवादित स्थल से लगती 2.77 एकड़ जमीन अधिग्रहीत की जानी है, इसीलिए यह बैठक बुलाई गई है। तब तक फाइल तैयार हो चुकी थी, अब मुख्यमंत्री ने सभी मंत्रियों से पूछा कि इस पर फाइल पर हस्ताक्षर कौन करेगा? इस पर वरिष्ठ कैबिनेट मंत्री लालजी टंडन ने खुद मुख्यमंत्री के हस्ताक्षर कराने का प्रस्ताव रखा। लेकिन कल्याण सिंह ने फिर वही सवाल दोहराया कि फाइल पर अंतिम हस्ताक्षर आखिर किसके होंगे। मुख्यमंत्री या अन्य मंत्रियों के दिल में क्या हिचक थी, यह मैं नहीं जानता लेकिन मैं इस अवसर को बेहद खास मान रहा था। आखिर इस जमीन पर ही राममंदिर बनना था। इसलिए मैंने खुद आगे बढ़कर अपने हस्ताक्षर का प्रस्ताव दिया। बतौर पर्यटन मंत्री मैं ऐसा कर भी सकता था। 
(यह बात केदार सिंह फोनिया यूपी में तत्कालीन पर्यटन मंत्री ने वरिष्ठ पत्रकार संजीव कण्डवाल के मार्फत बताई)