बद्रीनाथ

|| बद्रीनाथ|| 


मुझे इस वर्ष उत्तराखंड के प्रसिद्ध तीर्थ स्थल बद्रीनाथ के दर्शन का सौभाग्य प्राप्त हुआ इस वर्ष 30 अप्रैल को बद्रीनाथ मंदिर के कपाट खोले जाने थे। सौभाग्य से हमें प्रथम दिन प्रथम दर्शन का मौका मिला 27 अप्रैल रात 11:00 बजे दिल्ली से बद्रीनाथ के लिए रवाना हुए। अगले दिन सुबह हरिद्वार पहुंच कर पता चला कि जिस प्राइवेट गाड़ी (टैम्पो ट्रैवलर) से हमें बद्रीनाथ जाना है उसे ऋषिकेश आरटीओ ऑफिस चेक कर क्लीयरेस देगा कि यह गाड़ी आगे पहाड़ी रास्ते पर जायेगी या नहीं इस प्रक्रिया में लगभग 3-4 घंटे का समय लगा। इस दौरान हम लोगों ने हरिद्वार हर की पौड़ी पर स्नान कर नाश्ता करने के बाद थोड़ी देर विश्राम किया। लगभग सुबह 11.00 बजे ड्राइवर ऋषिकेश आर.टी.ओ. से गाड़ी पास करवाकर आया और आगे की यात्रा आरंभ हुई।


सीली पहाड़ी रास्तों पर यात्रा करना बड़ा ही रोमांचक लग रहा था। साथ ही खतरनाक कच्चे रास्ते को देख दिल भी दहल रहा था । ऐसा प्रतीत हो रहा था कि माँ गंगा भी हमारे साथ-साथ यात्रा पर चल रही हैं यहां से चलने के बाद हम कछ देर के लिये रूद्रप्रयाग रुके वहां अलकनंदा और मंदाकिनी नदी के संगम को देख मन बहुत प्रसन्न हुआ।


मौसम बहुत ही सुहावना था। ठंडी हवा चल रही थी। श्रीनगर पहुंचते-पहुंचते हमें शाम हो गई थी और यहां पता चला कि इस पहाड़ी रास्ते पर रात्रि 8.00 बजे के बाद गाडियां नहीं चलाई जाती हैं । श्रीनगर एक बड़ा शहर है तो रात यही रुकने का निर्णय लिया । होटल की खिड़की से रात्रि में पहाड़ों पर बसे घरों की लाइटों की खूबसूरती का दृश्य आज भी आंखों में बसा है। रात में होटल में हम सब ने तय किया कि सुबह जल्दी उठ कर माँ धारी देवी के दर्शन भी करेंगेधारी देवी मंदिर श्रीनगर से लगभग 16 कि.मी. की दूरी पर है। सुबह नहा-धोकर बिना कुछ खाए-पिए हम सब ने माँ धारी देवी के दर्शन किए । माँ धारी देवी उत्तराखंड की प्रसिद्ध देवी हैं और गढ़वाल में इनकी बहुत मान्यता है । जब हम मंदिर पहुंचेतो वहां सुबह की आरती का समय था आरती में शामिल होकर मन को बहुत शांति मिली। उस स्थान पर मन में एक अलग–सी अनुभूति हो रही थी जिसे शब्दों में बयां करना मुश्किल हैदर्शन के पश्चात बाहर आकर चाय-नाश्ते के बाद आगे का सफर शरु कियाअब सपीली पहाडियों के साथ-साथ मंदाकिनी नदी हमारी यात्रा में शामिल हो गई। रास्ते में कई जगह 2013 की त्रासदी के अवशेष देख मन बहुत दुखी हुआ लेकिन साथ ही वहां बने नए रास्तों को देख भारत सरकार के काम की सराहना किए बिना नहीं रहा जा सकता । हमारा अगला पडाव था हनमान चटटी, वहां हनुमान जी का एक छोटा-सा मंदिर है जिसके दर्शन किएवहां के स्थानीय लोगों से बातचीत कर यह पता चला कि इस जगह का नाम हनुमान चट्टी क्यों पड़ा पुराने समय में यह यात्रा बहुत कठिन थीआवाजाही का और कोई साधन नहीं था । केवल पैदल ही यह यात्रा की जाती थी जिस कारण महीनों का समय लग जाता था। इस यात्रा के दौरान छोटे-छोटे पड़ाव बनाए गए थे जहां रात्रि विश्राम किया जा सके । कुछ सेठ लोग इन जगहों पर कुछ खाने-पीने का सामान खाना पकाने की व्यवस्था उपलब्ध करवाते। 


थे। इन जगहों को चट्टी कहा जाता था। इसी परंपरा को चलाते हुए वहां लंगर चल रहा था। लगभग शाम चार बजे के करीब हम लोग बद्रीनाथ धाम पहुंचने वाले थेठंड बहुत बढ़ गई थी। हल्के-फुल्के गर्म कपड़ों में अब ठंड को रोक पाना संभव नहीं था। हम लोगों ने धर्मशाला पहुंच कर सबसे पहले अपने साथ लाए गर्म कपड़े निकाले । ठंड बहुत थी चाय पीने के बाद हमलोग हिन्दुस्तान सीमा के आखिरी गांव-माणा गांव देखने चले गए क्योंकि बद्रीनाथ मंदिर के कपाट अभी खुले नहीं थीमाणा गांव तक पहुंचते-पहुंचते ठंड बढ़ने के साथ-साथ ऑक्सीजन लेवल भी कम था । हमारे एक साथी को सांस लेने में कुछ दिक्कत महसूस होने लगी। हमें वहां से ऊपर पैदल सरस्वती नदी के उद्गम स्थल को देखने जाना था। उन्होंने वहीं रुकने का निर्णय लिया । बाकी हम सब आगे बढ़े। सरस्वती नदी के उद्गम स्थल को देखा । वहीं भीम पुल भी है। जिसके विषय में पौराणिक कथाओं के अनुसार पांडवों ने उस मार्ग से स्वर्गारोहण किया था। उस दौरान सरस्वती नदी को पार करने के लिए भीम ने वहां शिला रख कर वह पुल बनाया जिसे पार कर पांडव स्वर्ग को गए थे। सरस्वती उदगम स्थल पर सरस्वती का जलप्रवाह तेज है और उसका शोर भी बहुत है। परंतु कुछ ही दूर जाकर सरस्वती शांत हो जाती हैं। इस संबंध में भी एक कथा है कि वहीं एक पर्वत पर व्यास जी भागवत पुराण लिखवा रहे थे और गणेश जी उसे लिख रहे थे। गणेश जी को सरस्वती नदी के शोर बहुत है। परंतु कुछ ही दूर जाकर सरस्वती शांत हो जाती हैं। इस संबंध में भी एक कथा है कि वहीं एक पर्वत पर व्यास जी भागवत पुराण लिखवा रहे थे और गणेश जी उसे लिख रहे थे। गणेश जी को सरस्वती नदी के शोर के कारण व्यास जी की आवाज सुनने में कठिनाई हो रही थी। इसलिए उन्होंने माँ सरस्वती से अनुग्रह किया कि वे तनिक शांत हों तो वह भागवत पुराण लिख सकेंवहां गणेश जी का एक छोटा-सा मंदिर है और वह पर्वत देखने में पूरी तरह एक बड़ी पुस्तक की तरह दिखता है। वहां हम सब दर्शन कर अपनी धर्मशाला आ गएठंड बहुत थी खाना खा जल्दी से रजाइयो में दुबक गए। प्रातः चार बजे बद्रीनाथ मंदिर के कपाट खोले जाने थेप्रातः जल्दी उठ मंदिर की ओर प्रस्थान किया जहां तप्त कुंड में स्नान करने के बाद बद्रीनाथ जी के दर्शन करने थे। चारों तरफ बर्फीले पहाड़, हाथ-पैर सुन्न करने वाली ठंड के बीच उबलते पानी के कुंड को देख प्र ति को नमन किया । तप्त कुंड में स्नान करने के बाद भगवान बद्रीनाथ विशाल के दर्शनों के लिए लाईन में लग गएपहाड़ों के बीचों-बीच भगवान बद्रीनाथ जी के फूलों से सजे मंदिर की शोभा ही निराली थी।


माना जाता है कि यह स्थान भगवान श्री विष्णु जी की तपस्थली है। तब तक सूर्यदेव ने भी दर्शन देने शुरु कर दिए थेनर-नारायण पर्वत पर सूर्य की किरणें कभी सोने की लगती तो कभी चांदी की कुदरत के इन नज़ारों के बीच भगवान बद्रीनाथ जी के मंदिर की शोभा ही निराली है। लगभग प्रातः 6.30 बजे हमने भगवान बद्रीनाथ के निर्वाण रूप के दर्शन किए। ऐसा प्रतीत हो रहा था कि मानो हम एक अलौकिक दुनिया में आ गए हों । मंदिर प्रांगण में कुछ देर बैठने के बाद वहां से जाने का मन नहीं हो रहा था । दर्शन करने के पश्चात सेना की तरफ से चाय-नाश्ते का इंतजाम था वहां से चाय पीकर हम धर्मशाला की ओर चले गए.


इस यात्रा वृतांत में मैं एक और चीज़ का जिक्र जरुर करना चाहूंगी । दिल्ली से बद्रीनाथ यात्रा के दौरान जो एक चीज़ मुझे दिखाई दी वह था माननीय प्रधानमंत्री मोदी जी का स्वच्छता अभियान । पूरे पहाड़ी रास्तों में इतनी सफाई थी कि कोई भी यात्री कूड़ा बाहर फेंकता नज़र नहीं आया। रास्ते इतने साफ कि मन खुश हो जाए। साथ ही साथ हिन्दुस्तान के आखिरी गांव माणा तक सुलभ शौचालय का निर्माण भी सराहनीय है। यह सब देख कर लगा कि माननीय प्रधानमंत्री जी का स्वच्छ भारत अभियान का सपना मूर्त रूप ले रहा है.


स्रोत - समाचार भारती, समाचार सेवा प्रभाग, आकाशवाणी