बेहतर है


बेहतर है


कौन सुनेगा, यहाँ सबकी अपनी कहानी है।
अपने दर्द हैं, अपनी परेशानी है।
बेहतर है, खामोश रहें।
किसी पर आस लगाने से,
बाद में पछताने से,
राह के पत्थर की तरह,
ठोकर खाने से,
बेहतर है,  खामोश रहें।
वो गुजरी हुयी बातें, 
वो गुजरा हुआ कल, अच्छे लगते  हैं।
गिले-शिकवे कुछ ही पल, अच्छे लगते  हैं।
बोझ लगने लगे जब हर रिश्ता,
बेहतर है, खामोश रहें।
बढ़ चलो उस ओर,
है मंजिल तेरी जिस ओर।
यूं कोसते रहने से खुद को ,
बेहतर है, कुछ नया करें।


ये कविता काॅपीराइट के अंतर्गत आती है, कृपया प्रकाशन से पूर्व लेखिका की संस्तुति अनिवार्य है।