भिलंगना नदी

||भिलंगना नदी||


टिहरी जनपद में विभिन्न जलधाराओं, घने जंगलों, मखमली घास के मैदानों, हिमचोटियों एवं वन्य जीवों से युक्त है भिलंगना घाटी। भिलंगना घाटी का अन्तिम गांव गंगी है। गंगी से खतलिंग ग्लेशियर तक के नजारे स्वप्नलोक सरीखे हैं। साहसिक पर्यटकों के लिए खतलिंग ग्लेशियर एक आदर्श पर्यटन स्थल है। समुद्रतल से लगभग 3658 मीटर की ऊँचाई पर स्थित खतलिंग ग्लेशियर में हिम शिलाओं की झूलती दृश्यावली अलौकिक दिखाई देती है।


खतलिंग ग्लेशियर के समीपवर्ती क्षेत्र में कई मनोरम ताल एवं झीलें हैंखतलिंग ग्लेशियर के दो स्थानों पर नैसर्गिक हिम गुफाएं हैं। इसी स्थल पर एक जलधारा निकलती है, जो बाद में एक नदी का आकार ले लेती है। यही भिलंगना नदी है। झूलते या लटकते ग्लेशियर की उपलब्धता के कारण यह विख्यात है। इस ग्लेशियर में जोगिन (6466 मीटर), कीर्तिस्तंभ (6402 मीटर), बर्तेकांता (6579 मीटर), स्फटिक (6905 मीटर), हिमशिखरों के बीच फैले हिमखण्डों के अन्दर गर्जन के साथ जलधाराओं का प्रवाह होता है। यहीं से अनेक जलधारायें भिलंगना के जल में समाहित हो जाती हैं।


केदारखण्ड के अनुसार किरात व भिल्ल जन-जातियों का निवास क्षेत्र होने से इस नदी का नाम भिलंगना पड़ा था। भिलंगना का उद्गम स्थान स्थानीय बोली में 'फटिंग पिठवाड़ा' कहलाता है, जिसे थलया सागर भी कहते हैं। आस्थावान लोग तो इस स्थान को 'आदि कैलाश' और भिलंगना को आदि गंगा' भी कहते हैं।


भिलंगना के जिस उद्गम क्षेत्र को स्थानीय भाषा में फटिंग पिठवाडा या थलया सागर नाम दिया गया है, वस्तुतः वह खतलिंग ग्लेशियर नाम से जाना जाता है। इस क्षेत्र में छोटे-बड़े 27 तालों का समूह है, इनमें खतलिंग हिमनद का जल एकत्र होता रहता है। यह पर्वत श्रेणी गंगोत्तरी क्षेत्र की केदार गंगा (उत्तरी ढाल) और भिलंगना (दक्षिणी ढाल) का जलप्रवाह बनाती है। इस शृंखला में भृगुपंथ, फटिंग पिठवाड़ा और मेरु शिखर (क्रमश: 6772, 6904 व 5672 मीटर ऊँचे) हैंस्थानीय बोली में भिलंगना के शीर्ष को विशोन पर्वत कहते हैं।


भिलंगना की मूलधारा दक्षिण दिशा को बहती हुई गडोलिया तक लगभग 70 किमी० का मार्ग तय करती है। इस प्रवाह मार्ग में उसके बायें तट पर गंगी, मेडू तथा रीह गांव हैं। गडोलिया से यह नदी पश्चिम दिशा को बहती हुई टिहरी झील में समा जाती है। पहले इसका संगम पुरानी टिहरी में गणेश प्रयाग में होता था।


भिलंगना के शीर्ष क्षेत्र पाचरी सौड़ में 6 सहायक जल धाराओं का मिलन होता है। जिनमें एक सहायक धारा पूर्व दिशा में भरती कांठा के पश्चिम ढाल का जल लाती है और दूसरी सहायक धारा पश्चिम दिशा में कुशकल्याण पर्वत शिखर के ऊपरी सहस्रताल क्षेत्र का जल लाती है। आगे चलकर इन्हीं दो दायें-बायें पसरे पर्वतों की सहायक जलधारायें गंगी, मेडू और घुत्तू के निकट भिलंगना नदी में मिलती हैं।


भिलंगना के दायें तट पर हटकुणी पर्वत से आने वाली गैरगाड़ जलधारा भाटगौं के निकट से होकर आती है, और जंदरवाली नामक स्थान पर भिलंगना नदी से मिलती है। आगे चलकर इसमें पाख गांव के ऊपर और नीचे दो और जलधारायें मिलती हैं जो हिन्दाव-अखोड़ी क्षेत्र से आती हैं। इन जल धाराओं में जौला गाड़ पंगराणा का भरपूर जल एकत्रित रहता हैदायें तट पर मिलने वाली सहायक नदियों में 'बालखिल्य' (बालखिला) नदी बड़ी महत्वपूर्ण है, जो कुशकल्याण क्षेत्र से निकलकर दक्षिण दिशा में बहते हुए कठूड-थातीकठूड क्षेत्रों का जल समेट कर घनसाली में भिलंगना से मिलती है। बालखिला की सहायक जलधाराओं में गोनगड़ और आरगड़ उल्लेखनीय हैंभिलंगना के यहां तक का जलप्रवाह क्षेत्र चीला-भिलंग नाम से जाना जाता है।


इस क्षेत्र में बालखिल्य शिवलिंग तथा हिमदाव में हिमदखेश्वर महादेव की महत्ता है। वर्तमान समय में इस घाटी में बूढाकेदार, चमियाला, घुत्तू तथा घनसाली कस्बे विकसित हुए हैंखतलिंग-सहस्रताल और मासरताल साहसिक पर्यटकों की पसन्दीदा जगह बन गये हैं। घनसाली से घुत्तू-रीह-गंगी, कल्याणी, खतलिंग, मासरताल तक सम्पूर्ण पथारोहण मार्ग 81 किमी० का है।


 


स्रोत - उतराखण्ड के पूर्व मुख्यमंत्री व मानव संसाधन विकास मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक द्वारा रचित 'विश्व धरोहर गंगा'