भोर हो गया

यह उतराखण्ड में यमुना नदी के आर-पार बसे समुदाय जौनसार, रवांई और जौनपुरी भाषा के लोक गीत है। जिसे पाठको तक पंहुचाने के लिए गीत और भावार्थ सहित हिन्दी रूपान्तर किया गया है।


||भोर हो गया||


रइणों रातों बियाणी बाई घुघोती, रइणों रातों बियाणी  ........2
गाडु बाशों चीलाडों बाई घुघोती, गाडु बाशों चीलाडों .............2
डाण्डु बिवजे मुनाडों भाई घुघोती, डाण्डु बिवजे मुनाडों .......... 2 
सीया पाणी के जाली बाई घुघोती, सीया पाणी के ............. ....2 
तेईके सुने मिरगटों बाई घुघोती, तीणें पाणी गजाडों ................2
रइणों रातों बियाणी बाई घुघोती, रइणों रातों बियाणी ...............2
गईणों घामों लागीगा बाई घुघोती, गईणों घामों लागीगा ..........2


हिन्दी रूपान्तर
बहिनो भोर हो गया भाई घुघती, बहिनो भोर हो गया भाई घुघती -2
कोकीला की सुनो चहचहाअट, हो ही गया भोर भाई घुघुती -2
ऊंचे पहाड़ो सी सुनाई दी आवाज, मोनाल ने दी बांक घुघुती -2
सीता तड़के उठ जायेगी घुघुती, जायेगी पानी भरने घुघुती -2
वहां पीयेंगे पानी मृग घुघुती, वे खेलेंगे अठखेलिया घुघुती -2
बहिनो भोर हो गया भाई घुघती, बहिनो भोर हो गया भाई घुघती -2
दूर पहाड़ो में दिखी घुघुती, सूरज की किरणे घुघुती।2।


भावार्थ
किसी जमाने में जब कोई मनोरंजन के साधन नहीं हुआ करते थे तब लोग ऐसे गीतो का सहारा लेते थे। जौनसारी जनजाति समुदाय के लोग इस गीत को राब्याणी का गीत कहते है। रातब्याणी मतलब रातखुलने का इलारम। इस गीत में सीता के नाम का प्रतीकस्वरूप उपयोग किया गया है कि सीता भोर होने पर तुरन्त बर्तन उठाकर पानी भरने को दूर जलधारे पर पंहुच जाती है। कल्पना की गई कि एकतरफ सीता अपने बर्तन में पानी भरने की चेष्टा कर रही है तो वहीं दूसरी तरफ उस जलधारे के पास हिरन सूरज की पहली किरणो के साथ अठखेलियां कर रहे हैं।